क्या लालटेन के साथ गांधी का भी युग चला गया नीतीशजी ! : प्रेमकुमार मणि
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर चुनावी सभा में यह जुमला जरूर सुनाते हैं कि लालटेन का युग चला गया . लालटेन उनके जानी दुश्मन लालू की पार्टी का चुनाव चिन्ह है . नीतीश कुमार की समझदारी पर कोई सवाल नहीं है ,लेकिन एक कहावत है कि किसी को अपना चेहरा नहीं दिखता ,केवल दूसरों का दिखता है . अपना चेहरा भी दिखता तब वह ऐसा कैसे कह सकते थे . क्योंकि उनकी पार्टी का चिन्ह पाषाणकालीन तीर है . वह भी धनुष के बगैर . लेकिन यह सब उन्हें कैसे दिख सकता है ?.
हम लालटेन पर आते हैं . मेरी एक कहानी है - ' लालटेन बाजार ' . कोई चालीस साल पहले लिखी गयी थी और तभी छपी भी थी . नगर के बीच में गरीबों की छोटी -सी बस्ती है . रिक्शा -ठेला चलाने वाले लोग , कुछ अन्य दिहाड़ी मजदूरों के साथ इसमें रहते हैं . बस्ती में बिजली -बत्ती का प्रबंध नहीं है ,इसलिए पूरे नगर में यह मोहल्ला लालटेन बाजार कहा जाता है . लालटेन और गरीबों में एक अंतर्संबंध है . इसीलिए जब लालूप्रसाद की पार्टी को यह चुनाव चिन्ह मिला था ,तब मैंने कहा था ,यह बहुत ही प्रतीकात्मक है .
लालटेन की प्रतीकात्मकता बहुत कुछ चरखे की तरह है . चरखा पुराने ज़माने का एक यंत्र है ,जिसे अंग्रेजी में मशीन कहते हैं . गाँधी ने उसे आधुनिक भारत का अभिनव प्रतीक बनाया .जहाँ सुई भी नहीं बनती थी ,वहां चरखे को पुनर्जीवित करना आद्योगिक- क्रांति की बुनियाद रखना था . वह निर्वर्गीकरण अभियान भी था , क्यों इस देश के शोहदे -परजीवी शारीरिक -श्रम को हेय मानते थे .इन तथाकथित कुलीन अशरफ-सवर्णों को गांधी ने अपनी तरकीब से मिहनतक़श जुलाहा बना दिया . लालटेन में भी चरखे जैसा ही कुछ जादू है . रौशनी का गतिमान छोटा यंत्र ;जिसमे लैंप या चिराग को हवा के थपेड़ों से बचाये रखने की जुगत होती है ,लालटेन है . पूरी दुनिया में हज़ारो साल तक इसने मनुष्य का मार्गदर्शन किया . इसकी ही रौशनी में चलकर ह्वेनत्सांग चीन से भारत आया . कहते हैं चीनियों ने ही लैंप को सुरक्षित रखने की युक्ति इज़ाद की थी . फिर यह पूरी दुनिया में लैन्टर्न के नाम से मशहूर हुआ और भारतवासियों ने अपनी बोली में पीट-पाट कर इसे लालटेन बना लिया . बिजली - बल्ब तो एडिसन (1847 -1931 ) ने बस सवा सौ साल पहले ईजाद किया ,उसके पूर्व का और बाद का पूरा जमाना लालटेन की ही रौशनी में आगे बढ़ा . पूरा रेनेसां अथवा नवजागरण और प्रबोधन आंदोलन ,पूरी औद्योगिक- क्रांति इसी लालटेन की रौशनी में आगे बढ़ी . शेक्सपियर के नाटक इसी की रौशनी में खेले गए . टॉलस्टॉय और चेखब ने इसी की रौशनी में अपनी आत्मा को पन्नों पर उकेरा . अपने देश में टैगोर ने इसकी ही मद्धिम लौ में 'गीतांजलि ' की रचना की . प्रेमचंद इसी लालटेन की लौ में लेखक बने . कितनों का नाम लें नीतीशजी ! कलेजे पर हाथ रख कहिये ,क्या इसी लालटेन की रौशनी में हम और आप नहीं पढ़े -बढे ?
और आज हम इस लालटेन को गुजरे ज़माने की चीज बताते हैं ,तब मुझे अफ़सोस होता है . यह हमारी सांस्कृतिक कृतघ्नता है . जैसे हम अपने पूर्वजों को गुजरे ज़माने के लोग कहें ,ऐसा . अरबियन नाइट्स में एक कहानी है अलादीन का चिराग . एक गरीब दरजी अलादीन को एक फ़क़ीर ने दयावश एक लैंप या लालटेन दिया . उसकी जादुई रौशनी में अलादीन ने खूब तरक्की की और जल्दी ही अमीर बन गया . उसे खूबसूरत बीवी मिली और मौज में उसके दिन कटने लगे . लेकिन इस अमीरी ने उसके मन पर एक दम्भ ला दिया . अलादीन और उसकी बीवी फ़क़ीर को तो भूल ही गए ,उस लैंप को भी भूल गए . धीरे -धीरे अलादीन फिर गरीब हो गया . उसे फिर से फ़क़ीर की याद आयी और जैसा कि कथाओं में होता है फ़क़ीर उसे पुनः मिल भी जाता है . अलादीन ने याचना भरे शब्दों में फिर से गरीबी दूर करने के मन्त्र देने की बात कही . फ़क़ीर ने पूछा - वह लैंप ,जिसे मैंने दिया था कहाँ है ? लैंप की खोज हुई तब बीवी ने कहा ,पुराने ढंग का लैंप था ,कबाड़ी वाले के हाथ बेच दिया . अलादीन ने फ़क़ीर को बात बतलायी तो फ़क़ीर हँसा - दुःख और संघर्ष के समय और साथियों को भूलने का यही नतीजा होता है . जाओ तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता .तुम इसी हाल पर रहने लायक हो .
नीतीशजी ! आप चुनाव लड़िये और भाषण भी दीजिए .लेकिन चक्का ,चरखा ,लालटेन जैसे क्रन्तिकारी यंत्रों का ,जिसने मानव -प्रगति के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है ,मज़ाक मत उड़ाइये . आप तो ऐसे नहीं थे . क्या हो गया है आपको ? कैसी सोहबत में रह रहे हैं आप ? आपके मुंह से ऐसी बातें सुनकर मुझे शर्म आती है .
और हाँ ,आपने लालटेन की तौहीन की तो आपकी सहयोगी पार्टी की एक नेत्री जो इस चुनाव में उम्मीदवार भी हैं ,ने गोडसे को देशभक्त कह कर भगवा इतिहास की नयी इबारत लिख दी है . यानी गाँधी की हत्या देशभक्ति थी या है . कुछ वर्ष पूर्व आप जोर -शोर से बिहार में गांधी-उत्सव मना रहे थे . अब गांधी जी की इस तौहीन पर आप चुप क्यों हैं ? दरअसल यह गांधी जी का सवाल भी नहीं है ,यह देश का सवाल है . हम किस रास्ते पर बढ़ रहे हैं ? एक छोटी -सी बात पर कि मोदी प्रधानमंत्री उम्मीदवार क्यों बने ? आपने 2013 के जून में भाजपा से कुट्टी कर ली थी . लेकिन इतने गंभीर मसले जो कि एक घिनौनी हरकत भी है ,पर आपकी आत्मा अब क्यों नहीं डोल रही है ?
क्या लालटेन की तरह गांधी का युग भी चला गया नीतीशजी ?
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