Wednesday, 22 May 2019

नरेंद्र मोदी: एक चमत्कारिक नेता (अंतिम दिन प्रधानमंत्री पर कुछ बातें): अस्मुरारी नंदन मिश्र

नरेंद्र मोदी: एक चमत्कारिक नेता (अंतिम दिन प्रधानमंत्री पर कुछ बातें)
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मुझे यह मानने में कभी गुरेज़ नहीं रहा कि श्री नरेंद्र मोदी एक चमत्कारिक नेता हैं। मैं जब भी उन्हें देखता हूँ और उनके इस विकास पर नज़र डालता हूँ, तो चकित होकर रह जाता हूँ। मुझे लगता है कि जयललिता के लिए जान देनेवालों की बात हटा दी जाए, तो ऐसा दूसरा नेता मैंने नहीं देखा।
मैं नेता का एक बड़ा गुण मानता हूँ कि वह जनमानस को अपने आकर्षण से सम्मोहित कर ले। नरेंद्र मोदी ने यह ख़ूब किया और इसे आश्चर्यजनक
अस्मुरारी नंदन मिश्र
स्तर तक पहुँचाया। यह पहले ऐसे नेता रहे, जिनके बारे में इनके अनुयायी भी कुछ विश्वास के साथ नहीं कह सकते। अनुयायियों की जानकारी से भी बहुत दूर का यह व्यक्तित्व एक ऐसी प्रभा-मंडल बनाता है, जिससे लोग खिंचे चले आए। उसे सुनते हैं, उसे जाँचते नहीं; विश्वास करते चले जाते हैं। यह आदमी सीधे नेता के रूप में अवतरित होता है, उसके पहले का जीवन एक रहस्य-रोमांच से भरा उपन्यास है। इस उपन्यास के पहले लिखा हो या न हो, लेकिन यह तय है कि इसका जीवित और मृत व्यक्ति से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है।
यह आदमी जब स्टेशन नहीं बना था, तब वहाँ चाय बेच आता है। न जाने किस हिमालय में कब तक तपस्या-रत रहता है? इसी बीच राजनीति भी करता रहता है। वह अपने कहे के अनुसार ही हाई स्कूल तक, फिर इंजीनियरिंग की और अंततः इंटायर पॉलिटिकल साइंस में पीजी हो जाता है। फिर डिग्री भी उस फाॅण्ट में जारी करवा देता है, जिसे अभी ईजाद होना था। कभी वह ख़ुद को कुंवारा बताता है, कभी शादीशुदा। एक साथ इत‌नी विरोधी बातें बोलता हुआ भी कोई अगर विश्वसनीय बना रहता है, तो इसे चमत्कार न मानें, तो क्या कहें?
उसके बाद इस आदमी का ऐसा अकाट्य प्रभाव है कि गंगा किनारे के
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
सिकंदर या बिहार के तक्षशिला से लेकर राडार साइंस और ईमेल-आविष्कार तक की ऐतिहासिक-वैज्ञानिक उटपटांग बातों के बावज़ूद वह एक चिंतक, कवि, विचारक आदि बना रह जाता है और उसका विरोधी पप्पू बना दिया जाता है।
समर्थक तीन तरह के होते हैं। एक तो वे जिनको सीधा लाभ होता है, जैसे कार्यकर्ता अथवा निजी संबंध रखनेवाले या जुड़े ठेकेदार या पूँजीपति। दूसरे वे जो किसी भावनात्मक मुद्दे के कारण जुड़ाव महसूस करते हैं। तीसरा जो वोट भर देते हैं, ऐसे समर्थक सहजता से बदल जाते हैं। नरेंद्र मोदी इसलिए भी चमत्कारिक हैं कि प्रथम दो तरह के लोग लोकतंत्र की कुर्बानी देकर भी मोदी को लाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे लोग हर किसी के फ्रेंडलिस्ट में होंगे, जो मोदी जी को तानाशाह रूप में भी देखना पसंद करते हैं। मैंने 'इंदिरा इज़ इंडिया' का समय नहीं देखा है, लेकिन 'मोदी हिंदुस्तान का बाप है' का समय देखा है। बहुत लोग हैं, जिन्हें ऐसे वक्तव्य से किसी तरह की आपत्ति नहीं है‌।यह प्रभाव है।
नरेंद्र मोदी इसलिए चमत्कारिक नेता हैं, क्योंकि इनके समर्थक ख़ुद इनके प्रवक्ता बनने को तैयार बैठे हैं। नोटबंदी से क्या-क्या लाभ हुए, यह जानकारी और विचार उतनी मात्रा में मोदी जी को भी नहीं पता था, जितना उनके समर्थकों को।
मैं बनारस में रहा हूँ। वहाँ यदि 'हर-हर...' का नारा लगा, तो क्या हिन्दू, क्या मुसलमान; क्या आस्तिक, क्या नास्तिक 'महादेव' का उद्घोष कर उठता है। और उसी काशी में महादेव को मोदी से रिप्लेस कर दिया गया, किसी को आपत्ति नहीं हुई। बनारस को चाहे क्योटो बनाइए, चाहे कुबेरपुरी, लेकिन उसके मंदिरों की क्षति वहाँ के लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। मोदी ने वह किया। यहाँ तक कि जब चौदह में जीत मिली तो कुछ लोगों ने कहा कि भारत आज आज़ाद हुआ। ऐसे लोग न केवल आज़ादी के कठिन संघर्ष को नकार चुके थे, बल्कि भाजपा के ही एक सर्वमान्य नेता(प्रधानमंत्री) को भी नकार रहे थे। मोदी ने यह संभव करवाया। धर्म और राष्ट्र दोनों से ऊपर की सत्ता दिखाई। मैं इसे चमत्कार न मानूँ, तो क्या मानूँ?
यहाँ तक कि चौदह के चुनाव प्रचार के लिए जो-जो शब्दावली गढ़ी गयी थी, सब-के-सब किसी कृष्ण-विवर में तिरोहित हो गयी। छोड़िए घोषणापत्र और जुमलों को, वह हर पार्टी और नेता कर रहे हैं, लेकिन गुजरात माॅडल का एक ऐसा स्वर्गीय आदर्श दिखाया गया, मानो वह कोई जादू की छड़ी हो। जादूगर आकर एक बार उसे घुमा देगा, सब कुछ अलौकिक हो जाएगा। लेकन पाँच साल तक यह शब्दावली गधे के सिंग की तरह गायब रहती है। फिर भी समर्थकों के अंदर आलोचकीय कीड़ा नहीं कुलबुलाता।
कहने का मतलब यह कि जो एक साथ इतने लोगों को पप्पू(न जाने यह शब्द अर्थच्युत कैसे हो गया)  बना सकता है, और वह भी इस स्तर तक कि उसी पप्पूपने पर गर्व हो जाए, उसे चमत्कार न कहेंगे, तो क्या कहेंगे?
ऐसा चमत्कारिक व्यक्तित्व दो कारणों से बना- एक धार्मिक कट्टरता और दूसरा पूँजी की सुरक्षित गोद। जब सांप्रदायिकता और पूँजी का कॉकटेल तैयार होता है, तो अकाट्य हो जाता है। देर तक बना रहनेवाला नशा। गुजरात के बाहर मोदी को मान्यता सबसे अधिक गुजरात दंगे ने दिलवाई, लेकिन इस मान्यता से कट्टर समर्थक मिलते हैं, जीत दिलवाने वाले वोटर्स नहीं। पूँजी ने वह काम किया। विकास-पुरुष की ऐसी छवि बनी, जिसके पास सब कुछ ऐतिहासिक था और हरेक समस्या का निदान था। बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, सीमा-सुरक्षा, कृषि, व्यापार सब बदल जाना था। यह अद्भुत था। सभी मीडिया संस्थान एक स्वर से इस देव-पुरुष के चरण चूम लेने की बेताबी में थे और इनके दर्शन से जनमानस को कृतकृत्य करने को तैयार खड़े(या बिछे!) थे। ऐसे ही देवता का अवतार हो सकता है, और हुआ। वैसे भी अब कोई भी देवता कभी खंभे से निकलेंगे, तो खंभा फाड़नेवाला अर्थतंत्र ही होगा। यही सच है।
मोदी की सफलता का एक कारण जनता से संवाद करने का कौशल है। वे जानते हैं किसे कैसे इंप्रेस किया जाए। जब चौदह में कुछ साथी उनके इतिहास ज्ञान पर टिप्पणी कर रहे थे, तब मैंने कहीं लिखा था- "लोग इतिहास की जानकारी चेक करते रहेंगे, यह आदमी इतिहास बना लेगा।" वे इसमें सफल रहे। इधर के उनके राडार वाले ज्ञान को ही समझ लें। वे इस झूठ को जनता तक ले जाना चाहते थे कि मैं एयर स्ट्राइक का नेतृत्व कर रहा था। उन्होंने कह दिया कि हमने ही कहा। जनता रडार साइंस नहीं जानती, उसने सिर्फ़ यही सुना कि प्रधानमंत्री रात दो बजे तक निर्देश देते रहे। उनका काम हो चुका था। जनता को रडार-साइंस पढ़ाने वाला कौन है? इसी तरह यहीं फेसबुक पर उनके(भाजपा के) एक समर्थक ने लिखा मोदी को जाननेवाले जानते हैं कि प्रज्ञा ठाकुर पर उनका बयान एक झूठ है, वे दूसरों को मूर्ख बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। जिसे ऐसा समर्थन और ऐसे समर्थक मिल रहे हों, उसे चमत्कारिक न कहा जाए, तो क्या कहा जाए?
ऐसा नहीं है कि इस देवता में नकारात्मकता ही थी। सांसदों द्वारा किसी गाँव को गोद लेने की योजना कमाल की है। स्वच्छता पर अतिरिक्त ज़ोर भारत जैसे लापरवाह देश के लिए ज़रूरी है। मैं कहना चाहता हूँ कि स्वच्छता को चेतना के सामने लाने का काम महात्मा गाँधी के बाद नरेंद्र मोदी ने किया। सक्षम व्यक्तियों से सब्सिडी छोड़ने की अपील सही कदम था।(मैं ख़ुद गैस-सब्सिडी छोड़ चुका हूँ। मानता हूँ कि बेवकूफ़ी ही की है।) शौचालय बनवाने में मदद, आयुष्मान योजना आदि कुछ अन्य अच्छे कदम रहे। अच्छाइयाँ और भी हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इन योजनाओं में शौचालय को छोड़ बाकी सब नाटक रूप में परिणत होकर रह गये। खु़द सांसद मोदी ने गोद लेकर किस गाँव की तस्वीर बदली, यह सवाल है?
लेकिन यह सवाल नहीं होना ही चमत्कार है।
शक न करें। सामान्य ज्ञान का एक सवाल बिना किसी कन्फ्यूजन के करें कि इक्कसवीं सदी का सबसे चमत्कारिक नेता कौन है-
हर-हर मोदी!
अस्मुरारी नंदन मिश्र
22 मई 2019

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