चुनाव: अनामिका
"अपनी चपलतम मुद्राओं में भी नर्तक
सम तो नहीं भूलता,
पहिया नहीं भूलता धुरा,
तू काहे भूल गई, अनामिका?"
"तू कौन है, याद रख-"
शास्त्रों ने कहा!
तू,-तू-मैं-मैं करती दुनिया ने
उंगली उठाई-
"आखिर तू है कौन-
किस खेत की मूली?"
मैं तो घबरा ही गई,
घबराकर सोचा-
"इस विषम जीवन में
मेरा सम कौन भला?
नाम-तक की कोई चौहद्दी
तो मुझको मिली नहीं-
यों ही पुकारा किए लोग-'अनामिका!'
एक अकेला शब्द 'अनामिका'-
आगे नाथ, न पगहा।
पापा ने तो नाम रखते हुए
की होगी यह कल्पना
कि नाम-रुप के झमेले
बांधें नहीं मुझको
और मैं अगाध ही रहूँ,
आद्या जैसी
घूमूँ-फिरूँ जग में
बनकर जगतधातृ जगत्माता।
चाहती हूँ कि
साकार करूँ-
बेचारे पापा की कल्पना और
भूल जाऊँ घेरेबन्दियाँ, लेकिन हर पग पर हैं बाङे!
अचकचा जाती हूँ
जब पानी पूछते हुए
लोग पूछ देते हैं आज तलक-
"आप लोग होते हैं कौन!"
रह जाती हूँ मौन
अपनी जङें टटोलती!
पर मजे की बात यह है कि
एक खुफिया कार्रवाई
एकदम से शुरू हो जाती है तबसे ही
मेरे उद्गम-स्त्रोतों की
और ताङ से गिरकर
सीधा खजूर पर अटकती हूँ
जब मेरी जातिके लोग
झाड़ देते हैं रहस्यवाद मेरा
और मिलाकर हाथ कहते हैं ऐन चुनाव की घङी,
"हम एक ही तो हैं, मैडम,
एक कुल-गोत्र है हमारा!
अब की चुनाव में खङा हूँ
आपके भरोसे!"
"मत याद रख, भूल जा"-
गाता है जोगी
सारंगी पर गाता!
मुस्काके बढ़ जाती हूँ आगे!
●●●
कवयित्री अनामिका के कविता संग्रह 'पानी को सब याद था' से साभार
No comments:
Post a Comment