युवा कवि रामाज्ञा शशिधर की कविता मुठभेड़ सत्ता की विषाक्त जड़ता के प्रति एक प्रतिक्रिया है। यह कोमल सपनो का आन्दोलन है। जीवन्तता की जद्दोजहद के लिए छेड़ा हुआ जिहाद है। जिसे सत्ता और उसे बघनखे मौत की आक्रांत शांति देने की फ़िराक में हैं।
कविता की शुरुआत गिलहरी से होती है। जो प्रतिनिधि है उस तमाम मासूम जनता की जिसे चुपके से सत्ता अपनी हवस और शौक का शिकार बना रही है। फुदकती हुई मासूम गिलहरी का पेड़ की छाल में बदल जाना दरअसल सत्ता द्वारा आम जनता की आजादी को निचोड़ उसे संसाधन में परिणत करने के बाद बाजार में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है ।उस बाजारीकरण के प्रति उसकी कर्तव्यनिष्ठा है सत्ता जिसकी दलाली करती है।
कवि सत्ता के स्वभाव की नयी व्याख्या में व्यक्त करता है कि सत्ता ने पगडंडियों को ध्वस्त कर दिया है बुटों और एडियों से उसके नामोनिशान मिटा दिए हैं। पगडंडियों के साथ मिटाए हैं उसने दिशाओं के स्वरुप और संस्कार। दिशाओं के साथ उसने आजादी की तमाम संभावनाओं कभी गला रेत दिया है।
अक्षरों के अक्षारता पर उसने स्याही उड़ेल कर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। सत्ता को सबसे बड़ा डर इन अक्षरों से है। इसलिए उसने अपने अखबार और छापेखाने बनवाए हैं। सयाहियों की फैक्टरियां बनवाई। जो उन नन्हे विद्रोही शब्दों पर तेज़ाब की तरह उड़ेली जाती हैं जिनसे सत्ता की मंसूबों के अधूरे रह जाने का खतरा होता है।
मगर कोमल सपनों का आना जारी है।मई जून की दोपहरी में जली दूब का सावन में पनपना जारी है। ये वो सपने है जिनके नसीब में सत्ता की सलीबें आती हैं। सत्ता से टकराने को ठोस विचारों का तय होना जारी है और साथ ही जारी है एक मुठभेड़ जो शिकार और शिकारी का,बहेलिये के हाथ से छूटने को छटपटाते नन्हीं चोंच का,सत्ता के बघनखों में फंसे आजादी के गानों का।
........अरमान आनंद
कविता
मुठभेड़
तुमने पत्थर उठाया
दे मारा नवजात गिलहरी को
पेड़ की छाल में बदल गया वह
तुमने एड़ियों से रगड़ दी पगडंडी
चुपचाप गायब हो गयी दिशाएं
उड़ेल दी स्याही पृष्ठों पर
मर गए सारे के सारे अक्षर
मैंने देखे हैं पृथ्वी के वास्ते कोमल सपने
चिन्हित किये हैं ठोस विचार
उन्हें टांग दिए हैं सलीब पर तुमने
जो आज तक मुठभेड़ कर रहे हैं जीवित
तुम्हारे खिलाफ।
........रामाज्ञा शशिधर
No comments:
Post a Comment