Wednesday 17 April 2013

साल सोलहवां


जब भी खिलखिलाता हूँ
मैं सोलह का हो जाता हूँ।
जब भी मुस्कुराता हूँ
मैं सोलह का हो जाता हूँ
तेरी यादों के साथ ही
लौट आता है मेरा सोलहवां साल
जब भी यादों में तुझे प्यार करता हूँ
सोलह का हो जाता हूँ
जब भी देखता हूँ
झुरमुट में लिपटा हुआ कोई कमसिन जोड़ा
किसी के बालों में उलझा हुआ कोई अल्हड सा छोरा
सोलहवें की कसम मैं दिल खोल गाता हूँ
तेरा अक्स मेरी आखों से छुटता नहीं।
सोलह से मेरा रिश्ता अब टूटता नहीं।
अरमान

No comments:

Post a Comment

Featured post

कथाचोर का इकबालिया बयान: अखिलेश सिंह

कथाचोर का इकबालिया बयान _________ कहानियों की चोरी पकड़ी जाने पर लेखिका ने सार्वजनिक अपील की :  जब मैं कहानियां चुराती थी तो मैं अवसाद में थ...