मुझे तृष्णा हुई
मैं प्यासा था
मैंने प्रेम कहा
मिली देह
झिंझोड़ा उलट पलट कर देखा
मिला आनंद
गोंता लगाना ही चाहता हूँ
अचानक
दिखती है बिस्तर पर पड़ी वितृष्णा
आकंठ प्यास में डूब जाता हूँ मैं
नेपथ्य में
कहीं बज रहा है रडियो
जिन्दगी .....
कैसी है पहेली हाय...
&&&&&अरमान&&&&&&
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