Sunday 7 April 2013

पहेली

मुझे तृष्णा हुई

मैं प्यासा था

मैंने प्रेम कहा

मिली देह

झिंझोड़ा उलट पलट कर देखा

मिला आनंद

गोंता लगाना ही चाहता हूँ

अचानक

दिखती है बिस्तर पर पड़ी वितृष्णा

आकंठ प्यास में डूब जाता हूँ मैं

नेपथ्य में

कहीं बज रहा है रडियो

जिन्दगी .....

कैसी है पहेली हाय...

&&&&&अरमान&&&&&&

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