Sunday, 14 April 2013

इंतज़ार

वो हर जगह

जहाँ से गुज़र चुकी हो तुम

जिसका साथ छोड़ चुकी हैं

तुम्हारी खुशबुएँ /तुम्हारी यादें

मिट चुके हैं जहाँ से निशां तुम्हारे

शायद अब वहां

इंतज़ार भी नहीं किसी को

तुम्हारा.....।

नयी शाखें नयी पत्तियां

नयी कोयल नयी बुलबुल

ये कोई नहीं जानता

कभी तुम गुनगुनाती थी यहाँ

सब खुश हैं

इस बहती नयी बयार में

शायद तुम भी अपने नए नीड़ में

चहक रही होगी।

सबकुछ सामान्य से भी

बेहतर होने के बाद

कुछ कमी सी है।

क्यों लगता है कि

बाग़ के हरे भरे पेड़ों के बीच

बहुत हद तक छुपा हुआ वह ठूंठ

चाह कर भी अपनी मौजूदगी छुपा नहीं पाता।

हवाओं में फैली बेइंतेहा खुशबुएँ हैं

मगर किसी एक की चाह में

वो थम सी जाती हैं

क्यूँ सुबह सुबह सैकड़ों फूलों के खिलने पर

बूढा माली मुस्कुरते हुए

सर झुका कर सोचा करता है कुछ।

फिर कंधे से गमछा और आँखों से धुंधला गया सा चश्मा उतार कर

पोछा करता है

कभी आँखें कभी चश्मा

दूर तक फैले ये मखमली घास

बहुत बारिश के बाद भी

कहीं कहीं इस इंतज़ार में सूखे से हैं

की माहवर लगे पाँव से छू कोई जिन्दा कर दे इन्हें

मदमस्त घुमती फिज़ा भी

क्यूँ सन्न हो जाती है कभी कभी

और हर रोज़ जरूर आता है इक लड़का

बूढ़े बहरे माली को

घंटों समझाने

बाबा....

उसने कहा था

मैं जरुर आउंगी.....।

*********अरमान**************

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