Sunday 20 January 2019

कविताएं पर्यावरण के लिए

1.

हमीं
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हमीं दफना जाएँगे
सारे खेत
और बाग
सारी फसलों, जंगलों को
हमीं लगा जाएँगे आग

हमीं सोख जाएँगे
सारा पानी
पेट्रोल
सारा लोहा सोना कोयला
हमीं कर जाएँगे गोल

जब तू आएगा, मेरे लाल
दुनिया रहेगी
ठन-ठन गोपाल!

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युवा कवि राकेश रंजन के काव्य संग्रह 'दिव्य कैदखाने में' से साभार

2

तुम्हारी इच्छाओं से
कम होती जा रही पृथ्वी की परिधि
तुम्हारी इच्छाओं से प्रदूषित हो रहा क्षितिज
जहां आकाश से धरती के मिलने की संभावना
अपवित्र होती जा रही
और सुनो कवि
पृथ्वी पर दुबारा मिलना
अब इतना कठिन है
की उसकी व्याख्या
वर्तमान में कोई कविता नही कर सकती

आर्य भारत

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