Thursday, 21 March 2013

इच्छाएं (2)

ढो रहा हूँ आज मैं

अपने मरे हुए जज्बात की लाश

ऐसा नहीं  की

मुझे उम्मीद हो

इसके जिन्दा हो जाने की

नहीं, बिलकुल नहीं

ये लाश अब सड रही है।

इसकी सड़ांध

एहसास दिलाती है।

मेरे अन्दर की

बची खुची इंसानियत का

महसूस कर रहा हूँ

एक दर्द

भावनाओं के मृत हो जाने की टीस

संवेदनात्मक अपंगता की चुभन

फिर जी करता है

करूँ रूद्र तांडव

सती-सी

मेरे शरीर से लिपटी

मेरी भावनाएं

लिथर बिखर कर

व्याप्त हो जाएँ

सगर संसार में....

*******अरमान*********

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