Wednesday, 20 March 2013

अरमान आनंद की कविता जुर्माना

(जुर्माना)

तुम मुझे
जब गौर से देखोगे
मेरे होठों पर मिलेंगे
मेरे माशूका के दांत
मेरी पीठ पर मेरी बीबी के नाख़ून
झुके हुए कन्धों पर टंगा हुआ दफ्तर
मेरी ऊँगली क काले धब्बों पर
चुनी हुई सरकार
और नीचे से
ठोंक दिया गया है मेरा संस्कार
मैं
हर रोज
आदमी होने का
जुर्माना भरता हूँ।
********अरमान*********

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