Thursday 21 March 2013

प्रेम कविता 2 -अरमान

****हिंसा****

लबों से पिसते लब

टकराती हुई नाक

गर्म साँसें

हवाओं में फैली सिस्कारियां

तुम्हारे ब्रा के हुक सुलझाने में उलझे मेरे हाथ

फंसी हुई टांगें

जी चाहता है

फाड़ कर छाती तुम्हारी

समा जाऊं तुझमें

मगर आम लोग इसे हिंसा कहते हैं।

******अरमान*******

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