Friday, 31 August 2018
मंजूषा नेगी पाण्डेय की कविताएँ
देश इमरजेंसी से भी बदतर दौर में पहुंच गया है- मनोज वर्मा
मंगलवार को तकरीबन एक दर्जन के आस-पास कवियों, लेखकों, वकीलों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार और दलित कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे पड़े और उनमें से पांच को गिरफ्तार कर लिया गया। ये राष्ट्रव्यापी छापे और गिरफ्तारियां बताती हैं कि देश इमरजेंसी से भी बदतर दौर में पहुंच गया है। इमरजेंसी में कम से कम लोकतंत्र भंग होता है। लेकिन यहां तो पूरे संविधान को ही भंग कर दिया गया है। और लोकतंत्र की हत्या कर तानाशाही लागू कर दी गयी है। प्रोफेसर अपूर्वानंद से शब्दों को उधार लें तो पूरा देश ही जेल में तब्दील हो गया है।
कवियों और लेखकों के खिलाफ असहिष्णुता के मुद्दे से शुरू हुआ मौजूदा सत्ता का सफर इस कार्रवाई के साथ अपना एक चक्र पूरा कर लिया। दाभोलकर, कलबुर्गी और पनसारे की हत्याओं के परोक्ष समर्थन के बाद अब सरकार ने इस तबके के उत्पीड़न की कार्रवाई खुद अपने हाथ में ले ली है। इसके साथ ही मौजूदा सत्ता और उसकी राजनीति एक दूसरे चरण में प्रवेश कर गयी है। इसके साथ ही इस बात की भी गारंटी हो गयी है कि पूरे देश की राजनीति कम से कम बीजेपी के सत्ता में बने रहने तक इसी तरह से गरम रहने वाली है।
इन कार्रवाइयों के पीछे तात्कालिक तौर पर दो-तीन कारण गिनाए जा सकते हैं। पहला दाभोलकर, कलबुर्गी और पनसारे की हत्या को सीधे-सीधे आतंकी कार्रवाई के तौर पर देखा जाने लगा था। और सनातन संस्था के लोगों के सीधे शामिल होने के चलते हिंदू संगठनों की छवि को करारा झटका लगा था। इस मुद्दे को दरकिनार करने के लिए भी इस तरह की किसी बड़ी कार्रवाई की जरूरत पड़ गयी थी।
दूसरा, एक और मामला है जिससे खुद बीजेपी के आधार के बीच ही अंतरविरोध खड़ा हो गया है। वह है एससी-एसटी एक्ट और पिछड़ा आयोग का मुद्दा। पार्टी का सवर्ण आधार इसको लेकर बेहद सशंकित है। उसके बीच पार्टी के समर्थन को लेकर फिर से बहस शुरू हो गयी थी। उस आधार को फिर से भरोसा दिलाने के लिहाज से भी सरकार के लिए ये कार्रवाई बेहद मुफीद दिखी।
तीसरा, कारपोरेट समूह में भी सरकार को लेकर एक बहस शुरू हो गयी थी। जिसके भरोसे को पुख्ता करना सरकार की तात्कालिक जरूरत बन गयी थी। दरअसल ये सारे कार्यकर्ता ऐसे आंदोलनों और संगठनों से जुड़े हुए हैं जो जमीनी स्तर पर जनता की लड़ाइयों की अगुवाई कर रहे हैं। जिसमें कारपोरेट द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ ये जगह-जगह लिखने से लेकर जमीनी स्तर पर लड़ाई के योद्धा बने हुए हैं। लिहाजा इनके खिलाफ कार्रवाई कर मोदी सरकार कारपोरेट को ये संदेश देना चाहती है कि उसका भी भविष्य उसी के हाथ में सुरक्षित है।
सबसे प्रमुख और इन सबसे ऊपर बीजेपी की आने वाले चुनावों में दिख रही हार है। जिसके चलते बौखलाहट में भी इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि अभी किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन आगामी आम चुनाव और लोकतंत्र के लिए ये शुभ संकेत नहीं है। अभी सरकार ने इस कार्रवाई को ऐसे लोगों के साथ शुरू किया है जो लेखक, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता हैं और जिनका कोई बड़ा सामाजिक और संगठित आधार नहीं है। लेकिन अपनी गतिविधियों से वो सरकार को बड़ा नुकसान पहुंचाते रहे हैं।
लिहाजा ये उन्हें चुप कराने और बैठा देने की कोशिश का हिस्सा है। और इसके जरिये अपने पक्ष में एक ध्रुवीकरण कराने की मंशा भी इसमें शामिल है। लेकिन अगर चीजें फिर भी सफल होती नहीं दिखीं तो समाज के दूसरे हिस्सों और फिर राजनीतिक तबके से जुड़े लोगों की बारी आएगी। और फिर आखिरी तौर पर लोकतंत्र को कुछ दिनों के लिए बंद कर देने का भी फैसला हो जाए तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। उसके लिए एक ऐसी स्थिति खड़ी की जा सकती है जिसमें कहा जाए कि देश में चुनाव संपन्न कराने के हालात ही नहीं हैं।
जिस भीमा-कोरेगांव के नाम पर देशभर में ये छापेमारी और गिरफ्तारियां हो रही हैं उसका सच बिल्कुल आइने की तरह साफ है। उस हिंसा के लिए मुख्य तौर पर संभाजी भेड़े जिम्मेदार हैं जो आरएसएस के घनिष्ठ सहयोगी हैं और पीएम मोदी के साथ उनके गहरे रिश्ते जगजाहिर हैं। लिहाजा अगर सचमुच में किसी ईमानदार जांच या फिर कार्रवाई की बात हो तो उसकी शुरुआत भेड़े से होगी। लेकिन उन्हें तो अभयदान मिला हुआ है। लिहाजा भीमा-कोरेगांव सरकार के लिए एक ऐसा जादुई चिराग बन गया है जिससे देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले किसी भी शख्स को घेरे में लिया जा सकता है। भले ही उसका उस कार्यक्रम से कोई दूर-दूर तक रिश्ता न हो।
इस पूरे मामले में सबसे खास बात ये है कि इस कार्रवाई को भले ही सत्ता और उसकी पुलिस संचालित कर रही है। लेकिन ऐसा लगता है कि इसकी कमान नागपुर हेडक्वार्टर के हाथ में है। वहीं सूची बन रही है और कार्रवाई के आदेश भी वहीं से दिए जा रहे हैं। जिसमें फड़नवीस और पीएम मोदी महज सहयोगी की भूमिका में हैं।
अगर अब भी किसी को फासीवाद के आने का इंतजार है तो उसे बैठे ही रहना चाहिए। क्योंकि जो समझ पाता है वही लड़ता है। सच ये है कि उसका राक्षस इस समय देश की गली-गली में घूम रहा है। और कब किसका दरवाजा खटखटा दे कुछ कहा नहीं जा सकता है। इसलिए ये नौबत आए उससे पहले ही सड़क पर निकल पड़ने की जरूरत है।
Monday, 27 August 2018
युवा कवि अनंत ज्ञान की कविताएँ
आज हमें खुद के पत्थर होने पर शर्म महसूस हो रही है,
कोई राह चलते जब हम पत्थरों पर पान की पीक फेंक देता है,
हम सभी छोटे बड़े पत्थरों ने तय किया है,
शिकायतों का पिटारा खूला..
माँ प्रकृति के सारे दुलारे,
अपनी अपनी शिकायतें लेकर पहुँचे ।
माँ प्रकृति से सभी आज माँगने पहूँचे थे इंसाफ ।
हमारा पूरा वन परिवार उसके अत्याचार से त्राही माम कर रहा है ।
कल हमारे सामने सरेआम एक शीशम भाई की हत्या कर दी उन्होनें,
हम कैसे उन्हें रोकें ? बताओ माँ । बताओ ।
दिनप्रतिदिन इंसान अपनी क्रूरता की हदें पार कर रहा है,
कभी हम जानवरों की छाल से अपने घर के दिवारों को सजाता है,
कभी हमारे परिवार की लडकियों को उठा कर ले जाता है...
ऐसा कब तक चलेगा माँ, कब तक ?
अब तो मैं खुद को नहीं पहचान पा रही,
क्या मैं वही भागीरथी गंगा हूँ ?
क्या है माँ यह सर्जिकल स्ट्राइक ?
जब नही समझे कोई प्यार से समझाने से,
तब बाज नहीं आती हूँ मैं, सर्जिकल स्ट्राइक आजमाने से ।
इंसानों को तूरंत सबक सिखाओ,
मेरे लोगों को यदि वे करेंगे तंग,
छिडेगा तब फिर हमारा जंग ।
थल सेना (भूकंप)
जल सेना (बाढ )
वायु सेना (आँधी ),
सभी को बुलाओ...
अब और इंतजार नही करने का.....
अनंत ज्ञान झारखण्ड के हज़ारीबाग से हैं। स्थानीय साहित्यिक सस्था से जुड़े हैं। कई पुरस्कारों से पुरस्कृत हैं। हजारीबाग व्यवहार न्यायालय में सहायक पद पर कार्यरत हैं
Saturday, 25 August 2018
सुशांत कुमार शर्मा की कविता 'तेलिया मसान'
मदारी आता
खींचता सीवान
जिस हड्डी से
कहता उसे तेलिया मसान
कागज को करता रुपया
मिट्टी को करता सिक्का
तिनके को बना देता कबूतर
पानी में लगाता आग
तालियां बजतीं
तमाशा खूब जमता
समेटकर तिलस्मी बक्सा और झोला
मदारी चला जाता
रह जाते थे वहां पर
कागज़ , मिट्टी , तिनके , पानी
तेलिया मसान की हड्डी के घेरे में
बिखरे हुए ।
मदारी खूब जानता था
तेलिया मसान की हड्डी से
जिंदा हड्डियों को साधना
नजरबंद के खेल में
हाथ की सफाई में
तेलिया मसान की हड्डी
बड़े काम् की चीज़ है
हर दौर का मदारी यह जानता है
कि दधीचि को कैसे बनाना है
तेलिया मसान ।
सुशांत कुमार शर्मा
Friday, 17 August 2018
अरमान आनंद की कविता सुनो
आसमान से झड़ते हैं शब्द
धरती से टकरा कर
सन्तूर से बजते हैं
सुनना
किसी खाली रात में जब तुम्हारा सीना
आसमान की तरह सजल बादलों से भरा हो
सुनना उसे
जैसे
पड़ोस की छत पर बजते रेडियो को सुनते हो
महसूस करना
जैसे न
होकर भी तुम्हारे पास कोई होता है
Thursday, 16 August 2018
अटलबिहारी वाजपेयी स्मृति - लेख / प्रेमकुमार मणि
वह दक्षिणपंथी राजनीति में रहे . संघ ,जनसंघ फिर भाजपा . इधर -उधर नहीं गए . अपने विरोधियों को कायदे से ठिकाने लगाया . दीनदयाल उपाध्याय केवल चौआलिस रोज जनसंघ अध्यक्ष रह पाए . वाजपेयी जी के चाहने भर से मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास एक खम्भे किनारे उनकी लाश मिली . प्रोफ़ेसर बलराज मधोक की स्थिति से सब अवगत हैं . जिंदगी भर कलम पीटते रह गए कि देशवासियो , परखो इस पाखंडी को . मधोक की किसी से ने नहीं सुनी . गुमनामी में ही मर गए . गोविंदाचार्य तो आज भी कराह रहे हैं . कल्याण सिंह भाजपा के लालू बनना चाहते थे ,उनपर लालजी टंडन और कलराज मिश्रा का विप्र फंदा डाला और अहल्या की तरह स्थिर कर दिया . भले ही उनकी पार्टी कमजोर हो गयी . आडवाणी को भी कुछ -कुछ ऐसा ही कर दिया . बोन्साई बना कर अपने ड्राइंग रूम में रखा . हाँ ,गुजरात उनके लिए वॉटरलू बन गया . नरेंद्र मोदी पर हाथ फेरने की कोशिश की . गोधरा में सेना भेजने में 69 घंटे की देर कर दी और फिर वहां जाकर प्रेस के सामने राजधर्म सिखाने लगे . यह एक ब्राह्मण की घांची से टक्कर थी . पहली बार अटल विफल हुए . घाघ घांची ने पटकनी दे दी . वह भाजपा का स्वाभाविक नेता हो गया . बदली हुई भाजपा को अब ऐसे ही नेता की ज़रूरत थी .
अटल जी की याद में /मटुक नाथ चौधरी
अटल जी की प्रशंसा स्कूली जीवन में सुन चुका था ।जब पढ़ने पटना आया तो गांधी मैदान में पहली बार उनका भाषण सुना और प्रभावित हुआ ।उसके बाद जब जब वे भाषण देने पटना आये , पहुंच जाता था । उनकी भाषा की शुद्धता, ओजस्विता, व्यंग्यात्मक लहजा मन को भाता । हस्त संचालन, सर का झटकना, आंखों की भंगिमाएं उनकी वाग्वीरता
के अस्त्र-शस्त्र मालूम पड़ते थे । बीच-बीच में गहरा मौन हमें आगे की बात जानने के लिए विशेष रूप से उत्सुक कर देता था ।
जब पढ़ने दिल्ली गया, तब भी एक बार सुनने का मौका मिला । उस समय वे जनता पार्टी के शासन में विदेश मंत्री थे । सोवियत संघ से कुछ शिष्टमंडल आये थे ।उसमें मेरे गुरु नामवर जी विशिष्ट वक्ता थे ।उन्हीं के साथ मैं भी गया था ।अटल जी उस मंच पर आकर्षण के केंद्र में थे ।विरोधी के रूप में उनकी वाणी की धार देख चुका था, आज सत्ताधारी के रूप में वे कसौटी पर चढ़े हुए थे ।मैं देखना चाहता था कि उनकी वाणी में वही धार और वही सहजता है या परिवर्तन आया है ! खुशी हुई कि वह अक्षुण्ण है ।उन्होंने कहा कि मेरे विदेश मंत्री बनने पर सोवियत रूस में खलबली मच गई ---- "यह आदमी तो प्रतिक्रियावादी खेमे का है । पता नहीं दोनों देशों की मित्रता पर क्या असर पड़ेगा !"
मैंने उन्हें आश्वस्त किया ---"जरा भी चिंता की बात नहीं है , क्योंकि सत्ता बदलने से राष्ट्रहित नहीं बदल जाता ।" मैंने देखा मंच पर बैठे गुरुवर नामवर मुस्कुराये और प्रशंसा में सर हिलाया ।
अब मैं प्रोफेसर हो चुका था । 1980 का समय रहा होगा ।लोकसभा का चुनाव आनेवाला था ।जनता पार्टी बिखर गई थी । एक दिन हमारे आदरणीय शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि अटल जी पटने के बुद्धिजीवियों से बातें करना चाहते हैं । मटुक जी , उस सभा में आप रहियेगा । आई एम ए हॉल में सभा होनेवाली थी ।मेरी मौसिया सास ने कहा --- हम भी अटल जी को देखने जायेंगे । हमलोग गए । हॉल में आगे की दो कतार छोड़कर हमलोग बैठ गए ।शैलेंद्र जी मंच संचालन कर रहे थे ।मेरी बगल में एक कुर्सी खाली थी । अचानक अटल जी आये और मंच पर या सबसे आगे की कुर्सी पर न जाकर मेरे पास वाली खाली कुर्सी के निकट खड़े हो गए और पूछा क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ! मैं तो अचंभित ! हां.. हां.. हां सर ।उस कुर्सी पर एक सिक्का पड़ा हुआ था । पूछते हैं--- किसी ने सिक्का रखकर यह सीट रिजर्व तो नहीं करा ली है ? मैं हंसने लगा । नहीं सर, नहीं सर, यह आपकी ही सीट है ।इसी बीच मैंने देखा-- सभा में सभी लोग खड़े हैं और उन्हें मंच पर बुलाया जा रहा है । उन्होंने मंच पर जाने से मना किया और वहीं बैठ गए । उनके बैठने के बाद सभी लोग बैठ गए ।
इसके बाद उठकर वहीं से उन्होंने कहा -- शैलेंद्र जी, मैं पटनावासियों के विचार जानना चाहता हूँ । वे बेबाकी से अपनी बात रखें । वे बतायें अपनी दृष्टि से कि जनता पार्टी क्यों नहीं एकजुट रह पाई ? उसका शासन क्यों पांच साल पूरा नहीं कर पाया ? शैलेंद्र जी ने आमंत्रण भेजा । अटल जी के सामने कोई बोलने को तैयार नहीं । बगल में मुझे अटल जी ने कहा , आप बोलिए कुछ । मैं भी थोड़ा हिचकिचाया ।फिर उन्होंने ललकारते हुए कहा -- आप युवा हैं । आपको जाना चाहिए ।फिर मैं उठा और मंच पर जाकर जनता पार्टी की कमियों को गिनाना शुरू किया ।उनमें एक बात यह कही थी कि जनता पार्टी के पास कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नहीं था । जब अटल जी बोलने आये तो मेरी बातों का उल्लेख करते हुए कहा था---- मेरे नौजवान साथी ने अभी कहा है कि जनता पार्टी के पास कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नहीं था ।नहीं, ऐसी बात नहीं है ।ठोस आर्थिक कार्यक्रम था, लेकिन हमने उन कार्यक्रमों का क्रियाकर्म कर दिया !
शब्दों के साथ खेलते हुए तथ्य रखना कोई अटल जी से सीखे ।
Saturday, 11 August 2018
राकेश रंजन की कविता जब मैंने कहा
जब मैंने कहा
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जब मैंने कहा जात-पाँत खत्म होना चाहिए
उन्होंने मुझे चमरौटा कहा
जब मैंने कहा औरतों को जीने दो अपनी तरह
उन्होंने मुझे भड़ुआ कहा
विधर्मी कहा
जब मैंने कहा धर्म को ढकोसला मत बनाओ
जब मैंने कहा तुम ठीक नहीं कर रहे
उन्होंने मुझे देशद्रोही कहा
कहा देश से निकल जाओ
जब मैंने कहा देश के संविधान ने
हमें बोलने की आजादी दी है
हमें जो सच लगेगा बोलेंगे
तो उन्होंने कहा हम घंटा परवाह
करते हैं
जब मैंने कहा तुम भारत माता की जै बोलते हो
देवी माई और गंगा मैया
और गऊ महरानी की जै बोलते हो
पर औरतों की इज्जत उतारते हो
तुम गुंडे हो
इस पर उन्होंने मुझे पीटा और कहा
कि हमें गुंडा क्यों कहा
जब मैंने कहा कि आप तो करुणावतार हैं
तो वे खुश होकर चले गए
पर अगले हफ्ते फिर आए और कहा
कि तुमने व्यंजना में क्यों कहा
कि हम गुंडे हैं
और पीटने लगे
तब मैंने कहा कि आप मेरी बात का
गलत अर्थ लगा रहे
आपने ही पृथ्वी को उठा रखा है
दाँतों की नोक पर
कि आप तो भगवान के वाराह अवतार हैं साक्षात्
तो वे गद्गद होकर चले गए
पर महीने भर बाद फिर आए और कहा
कि किसी ने हमें कहा है
कि तुमने लक्षणा में हमें सूअर कहा है
और पीटने लगे
इस तरह मुझे बारबार पीटकर
उन्होंने साबित किया
कि वे अहिंसा के अवतार हैं।
Friday, 10 August 2018
लक्ष्मी यादव की कविता अनंत प्रेम
अनंत प्रेम
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मैं आज अपने भीतर बैठी मुझसे मिलने आयी हूँ
इसके साथ ही बाहर जाऊंगी.
आज अपने खुरदरे छिले ,फटे,कटे बेरंग स्याह होठों पर,
किसी भी रंग की लिपस्टिक नही लगाउंगी.
न ही अपनी उदास आँखों में जिनमे बसे हैं घने अँधेरों के महासागर,
उसके मुहानों पर सुरमयी कोई लक़ीर खींचूंगी.
मेरी उलझी हुई ज़िन्दगी की तरह उलझनों में सिमटी,
गुथी और ऐंठी हुई लटों को नही सवारूंगी.
सर्द हवाओं के झोंके जब स्मृतियों में जाग उठते हैं,
तब मेरे बिखरे बाल सहम कर मेरी अधखुली चोटी में सिमट जाते है.
आज नही लगाउंगी नारियल तेल मटमैले बालों में.
और न ही कोई भी शैम्पू कर सुखाऊँगी इन्हें.
आज अपने बालों को कंधे पर नही सजाऊंगी.
आज पुराने लबादे को बदल,
आसमानी रंग का तुम्हारी पसंद का सूट नही पहनूँगी.
रहूंगी आज अपने बीते हुए कल जैसी,
आज तुम्हारी हर बात पर हाँ में हाँ नही मिलाउंगी,
बल्कि कहूँगी अपने मन की.
आज कोई नाटकीयता नही होगी मुझमे.
हाँ तुमसे मिलूंगी आज लेकिन वैसे नही जैसे तुम चाहते हो,
मिलूंगी वैसे जैसे मेरे भीतर का मैं चाहता है.
फिर देखूंगी मुझे देख तुम कौन सी शायरी कहोगे,
कौन सा गीत मुझे देखकर तुम गाना चाहोगे,
देखूं क्या फिर भी तुम्हारे अंदर का चित्रकार मेरी तस्वीर बनाना चाहेगा,
तुम्हे कुछ सच कहूँगी देखूं क्या मेरे रूप रंग के प्रेम में डूबा तुम्हारा मन,
मेरे भीतर के सच्चे किस्से सुनना चाहेगा,
ये आज एक पैंतरा है एक खेल है जानलेवा,
जो तुम्हारे काल्पनिक प्रेम की जान ले सकता है,
हाँ मैं हमारे बीच के इस तरह के प्रेम की हत्या को तैयार हूँ.
क्योंकि इस प्रेम की मृत्यु के बाद शायद समझ सकूँ अनंत प्रेम.
जो किसी सजावट से परे है जिस्मों से परे है,जन्मों से परे है.
मैं चखना चाहती हूँ उस असीम, अनंत प्रेम का स्वाद.
मैं अपनी जिंदगी को कोई गणित नहीं बनाउंगी.
इसलिए तुमसे आज मिलूंगी अपने उस अनंत प्रेम को खोजती हुई.
मेरे भीतर की मैं के रूप में.
देखू तो ज़रा उसके बाद कल मुझे तुममें वह अनंत प्रेम मिलेगा या नही.
- लक्ष्मी
Wednesday, 8 August 2018
हरिओम राजोरिया की कविता गानेवाली औरतें
गानेवाली औरतें
वे रोते-रोते गाने लगीं
या गाते-गाते रो पड़ीं
ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है
घर से निकलीं तो गाते हुए
हाट-बाजार में गयीं तो गाते-गाते
चक्की पीसी तब भी गाया
आँगन बुहारते वक्त भी
हिलते रहे उनके होंठ
अकेले में आयी किसी की याद
तो गाते-गाते भर आया कण्ठ
गाते-गाते रोटियाँ बनायीं उन्होंने
पापड़ बेले, सेवइयाँ और बड़ी बनायीं गाते-गाते
गाते-गाते क्या नहीं किया उन्होंने
वे उस लोक से
गाते-गाते उतरीं थीं इस धरा पर
जन्मीं तब गाया किसी ने गीत
गीत सुनते-सुनते हुआ उनका जन्म
दुलहन बनीं तो बजे खुशियों के गीत
गाते-गाते विदा हो गयीं गाँव से
पराये घर की देहली पर पड़े जब उनके पाँव
गीत सुनकर आँखों में तैरने लगे स्वप्न
वे अगर कभी डगमगायीं तो
किसी गीत की पंक्तियों को गाते-गाते सम्हल गयीं
गाना कला नहीं था उनके लिए
वे कुछ कमाने के लिए नहीं गाती थीं
गीत उनकी जरूरत थे
और गीतों को उनकी जरूरत थी।
हरिओम रजोरिया
Sunday, 5 August 2018
मैंने हर बार जूतों को रफीक समझा है - Er S. D. Ojha
मैंने हर बार जूतों को रफीक समझा है ।
आपको वह दृश्य याद होगा कि किस तरह एक पत्रकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति पर दो बार जूते फेंके थे । हालाँकि दोनों बार निशाना चूक गया था , पर वह पत्रकार रातों रात स्टार बन गया था । उसके जूते भी अमर हो गये । जूतों बनाने वाली कम्पनियों में इस बात का श्रेय लेने की होड़ मच गयी कि वह उन्हीं के ब्राण्ड का जूता था । लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि उस पत्रकार को जूते चलाने की नौबत हीं क्यों आई ? वह तो कलम चलाने वाला था । कलम चलाता । मेरे ख्याल में वह कलम चलाने में उतना माहिर नहीं था । इसलिए वह जूता चला बैठा । जूता चलाने में भी वह माहिर नहीं था । एक बार नहीं दो बार उसका निशाना चूका । लेकिन अपने कृत्य से वह इतिहास में अपना नाम दर्ज करा बैठा । उसी के चलते भारत में भी केजरीवाल और मनमोहन सिंह पर जूते चले । जूते चलाना एक ट्रेण्ड बन गया । वैसे सदन में जूते चलाने की परम्परा हमारे यहाँ पहले से कायम थी ।
जूते मंदिरों से चोरी हो जाते हैं । भगवान के दरबार से जूते चोरी हों और भगवान कुछ नहीं करें इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है ? कहने वाले कहते हैं कि भगवान के पास ढेर सारे काम हैं । वह जूता चोरी जैसे तुच्छ मामले को निपटाने में लग जाएंगे तो असल समाज कल्याण का काम कौन करेगा ? 12 मई 2018 को उज्जैन के महाकाल मंदिर से ज्योतिरादित्य सिंधिया का जूता चोरी हो गया था । भगवान ने कुछ नहीं किया , पर भगवान ने उसके बाद उन्हें वह विलक्षण शक्ति प्रदान की कि वे जमकर भाजापा पर बरसे । मंदिर के पुजारी का कहना था कि पनौती उतर गयी है । अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता । दूल्हे के जूते भी चोरी होते हैं । हमारे समय में इस रश्म को नहीं निभाया जाता था , लेकिन फिल्म " हम आपके हैं कौन " में माधुरी दीक्षित ने इस रश्म को राष्ट्र व्यापी मान्यता दिला दी ।
जूतों को संस्कृत में चरणपादुका कहते हैं । इस चरणपादुका को लेकर भरत ने 14 साल तक अयोध्या पर शासन किया था । आधुनिक काल में उमा भारती ने जेल जाने से पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने भाई बाबूलाल को इस उम्मीद से सौंप दी थी कि उनके जेल से आने के बाद वह कुर्सी उन्हें सही सलामत मिल जाएगी । बाबूलाल को लालच आ गया । उन्होंने कुर्सी अपनी बहन को नहीं सौंपा । उमा भारती को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की यह कुर्सी आज तक मुंह चिढ़ा रही है । यही हाल रहा जीतनराम माझी का । उन्होंने भी नीतीश कुमार को कुर्सी सौंपने से इंकार कर दिया था । चरण पादुका अपने असली हकदार का इंतजार करती रह गयी थी । लेकिन इस जमाने में अपवाद भी होते हैं । दक्षिण में जयललिता को पनीर सेल्बम ने सहर्ष कुर्सी सौंप दी थी । उनको पता था कि अंततः लेडीज सीट को छोड़ना हीं पड़ता है ।
जूतों पर बहुत से मुहावरे बने हैं । मियाँ की जूती को कभी बीवी ने मियाँ के हीं सिर पर दे मारा होगा तो मुहावरा बन गया " मियाँ की जूती मियां के सिर " । यदि बीवी ने अपनी जूती का इस्तेमाल किया होता तो मुहावरा कुछ इस तरह से बनता " बीवी की जूती मियाँ के सिर "। जूते चाटना भी एक मुहावरा है । यह मुहावरा चाटुकार लोगों के लिए बना है । चाटुकार लोगों की दुनियां में कोई कमी नहीं हैं । आप एक ढूढेंगें , हजार मिलेंगे । कुछ लोग घर में बीवी से डरते हैं , पर बाहर अति दम्भ में कह जाते हैं मैं अपनी बीवी को "जूतों की नोक" पर रखता हूँ । कुछ लोगों को अपनी रचनाओं को छपवाने के लिए सम्पादकों के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं । फिल्मों में काम करने के लिए प्रोड्यूसरों के दफ्तरों के भी चक्कर लगाने पड़ते हैं । नौकरी के लिए गली गली घूमना पड़ता है । ऐसे में जूते बखूबी घिसेंगे । इसलिए जूते घिसना भी एक मुहावरा बन गया ।
चमचमाते जूते आपकी शान में इजाफा करते हैं । माडर्न टाइप या करीने से पहने फार्मल जूते आपकी इज्जत को चार चांद लगा देते हैं । जूते इज्जत बढ़ाते हैं तो घटाने का भी काम करते हैं । किसी को जूतों की माला पहना दी जाय तो उसका तत्क्षण हीं अपमान हो जाता है । जूतों की मार हंटर से भी ज्यादा दर्द देता है । इससे शरीर के अलावा दिल व दिमाग भी घायल हो जाता है । चांदी के जूते से भी मारा जाता है । चांदी के जूते मार लोग अपना काम निकालते हैं । इससे जूता मारने वाला और जूता खाने वाला दोनों खुश रहते हैं । नहीं समझे ?? चांदी के जूते मारने का मतलब घूस देना होता है । चांदी के जूते मारने से कभी टोपी चमकती है तो कभी उछलती है । वैसे पते की बात यह है कि अक्सर जूता टोपी से महंगा होता है ।
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कुँवर नारायण की आत्मजयी को प्रकाशित हुए पचास साल से ज्यादा हो चुके हैं। इन पचास सालों में कुँवर जी ने कई महत्त्वपूर्ण कृतियों से भारतीय भा...
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