मैंने हर बार जूतों को रफीक समझा है ।
आपको वह दृश्य याद होगा कि किस तरह एक पत्रकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति पर दो बार जूते फेंके थे । हालाँकि दोनों बार निशाना चूक गया था , पर वह पत्रकार रातों रात स्टार बन गया था । उसके जूते भी अमर हो गये । जूतों बनाने वाली कम्पनियों में इस बात का श्रेय लेने की होड़ मच गयी कि वह उन्हीं के ब्राण्ड का जूता था । लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि उस पत्रकार को जूते चलाने की नौबत हीं क्यों आई ? वह तो कलम चलाने वाला था । कलम चलाता । मेरे ख्याल में वह कलम चलाने में उतना माहिर नहीं था । इसलिए वह जूता चला बैठा । जूता चलाने में भी वह माहिर नहीं था । एक बार नहीं दो बार उसका निशाना चूका । लेकिन अपने कृत्य से वह इतिहास में अपना नाम दर्ज करा बैठा । उसी के चलते भारत में भी केजरीवाल और मनमोहन सिंह पर जूते चले । जूते चलाना एक ट्रेण्ड बन गया । वैसे सदन में जूते चलाने की परम्परा हमारे यहाँ पहले से कायम थी ।
जूते मंदिरों से चोरी हो जाते हैं । भगवान के दरबार से जूते चोरी हों और भगवान कुछ नहीं करें इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है ? कहने वाले कहते हैं कि भगवान के पास ढेर सारे काम हैं । वह जूता चोरी जैसे तुच्छ मामले को निपटाने में लग जाएंगे तो असल समाज कल्याण का काम कौन करेगा ? 12 मई 2018 को उज्जैन के महाकाल मंदिर से ज्योतिरादित्य सिंधिया का जूता चोरी हो गया था । भगवान ने कुछ नहीं किया , पर भगवान ने उसके बाद उन्हें वह विलक्षण शक्ति प्रदान की कि वे जमकर भाजापा पर बरसे । मंदिर के पुजारी का कहना था कि पनौती उतर गयी है । अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता । दूल्हे के जूते भी चोरी होते हैं । हमारे समय में इस रश्म को नहीं निभाया जाता था , लेकिन फिल्म " हम आपके हैं कौन " में माधुरी दीक्षित ने इस रश्म को राष्ट्र व्यापी मान्यता दिला दी ।
जूतों को संस्कृत में चरणपादुका कहते हैं । इस चरणपादुका को लेकर भरत ने 14 साल तक अयोध्या पर शासन किया था । आधुनिक काल में उमा भारती ने जेल जाने से पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने भाई बाबूलाल को इस उम्मीद से सौंप दी थी कि उनके जेल से आने के बाद वह कुर्सी उन्हें सही सलामत मिल जाएगी । बाबूलाल को लालच आ गया । उन्होंने कुर्सी अपनी बहन को नहीं सौंपा । उमा भारती को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की यह कुर्सी आज तक मुंह चिढ़ा रही है । यही हाल रहा जीतनराम माझी का । उन्होंने भी नीतीश कुमार को कुर्सी सौंपने से इंकार कर दिया था । चरण पादुका अपने असली हकदार का इंतजार करती रह गयी थी । लेकिन इस जमाने में अपवाद भी होते हैं । दक्षिण में जयललिता को पनीर सेल्बम ने सहर्ष कुर्सी सौंप दी थी । उनको पता था कि अंततः लेडीज सीट को छोड़ना हीं पड़ता है ।
जूतों पर बहुत से मुहावरे बने हैं । मियाँ की जूती को कभी बीवी ने मियाँ के हीं सिर पर दे मारा होगा तो मुहावरा बन गया " मियाँ की जूती मियां के सिर " । यदि बीवी ने अपनी जूती का इस्तेमाल किया होता तो मुहावरा कुछ इस तरह से बनता " बीवी की जूती मियाँ के सिर "। जूते चाटना भी एक मुहावरा है । यह मुहावरा चाटुकार लोगों के लिए बना है । चाटुकार लोगों की दुनियां में कोई कमी नहीं हैं । आप एक ढूढेंगें , हजार मिलेंगे । कुछ लोग घर में बीवी से डरते हैं , पर बाहर अति दम्भ में कह जाते हैं मैं अपनी बीवी को "जूतों की नोक" पर रखता हूँ । कुछ लोगों को अपनी रचनाओं को छपवाने के लिए सम्पादकों के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं । फिल्मों में काम करने के लिए प्रोड्यूसरों के दफ्तरों के भी चक्कर लगाने पड़ते हैं । नौकरी के लिए गली गली घूमना पड़ता है । ऐसे में जूते बखूबी घिसेंगे । इसलिए जूते घिसना भी एक मुहावरा बन गया ।
चमचमाते जूते आपकी शान में इजाफा करते हैं । माडर्न टाइप या करीने से पहने फार्मल जूते आपकी इज्जत को चार चांद लगा देते हैं । जूते इज्जत बढ़ाते हैं तो घटाने का भी काम करते हैं । किसी को जूतों की माला पहना दी जाय तो उसका तत्क्षण हीं अपमान हो जाता है । जूतों की मार हंटर से भी ज्यादा दर्द देता है । इससे शरीर के अलावा दिल व दिमाग भी घायल हो जाता है । चांदी के जूते से भी मारा जाता है । चांदी के जूते मार लोग अपना काम निकालते हैं । इससे जूता मारने वाला और जूता खाने वाला दोनों खुश रहते हैं । नहीं समझे ?? चांदी के जूते मारने का मतलब घूस देना होता है । चांदी के जूते मारने से कभी टोपी चमकती है तो कभी उछलती है । वैसे पते की बात यह है कि अक्सर जूता टोपी से महंगा होता है ।
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