Monday 27 August 2018

युवा कवि अनंत ज्ञान की कविताएँ

                 1
आँख पर पट्टी या पट्टी पर आँख ?
अनंत ज्ञान

ओह ! गांधारी !!
यह क्या किया तुमने !
क्यों बांध ली अपने नेत्रों पर पट्टी तुमने ?
क्या सिर्फ इसलिए की तुम्हारे पति धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे ?
या कारण कुछ और भी था?
अब कैसे देखोगी तुम हस्तिनापूर का वैभव, सुख, समृद्धि ?
कैसे देखोगी  तुम अपने उन सपनों को ?
जो ब्याह के पूर्व संजोए थे तुमने,
देखो जरा हस्तिनापूर की पुष्प वाटिका देखो,
कहते हैं यहाँ स्वर्ग की अप्सराऐं भी पुष्प चुराने आती हैं,
और यह देखो, तुम्हारा शयनकक्ष,
कितनी बेहतरीन साज सज्जावट करवाई है तुम्हारे पतिदेव ने,
देखो हस्तिनापूर की प्रजा को,
तुम्हारे स्वागत व तुम्हारी एक झलक पाने हेतू कैसे नैन बिछाऐं है,
देखो जरा अपने इन आभूषणों को तो देखो,
कुबरे के खजाने में भी ऐसे आभूषण नहीं होंगे,
देखो अपना समृद्ध  राजदरबार देखो,
दुनिया के नामी वीर व विद्वान इसकी शोभा बढ़ाते हैं,
और अपने महल के उद्यान में स्थित अपने इस सरोवर को देखो,
देखो न कैसे सारे हंस क्रीडाऐं कर रहे हैं,
यहीं पास में मयूर पंख पसारे इनकी क्रीडा का आनंद उठा रहे हैं,
अब तुम कहाँ से उठा पाओगी इन सब का आनंद,
ओह ! गांधारी !
यह क्या किया तुमने!!
...............................................................
वाह! गांधारी ! वाह!
अच्छा  किया तुमने,
जो बांध ली तुमने अपनी आँखो पर पट्टी,
नहीं तो अपने पुत्रों के कुकर्मों को देखकर,
शायद ही तुम्हारी आँखे विश्वास कर पाती,
द्रौपदी का चीरहरण क्या तुम्हारी आँखे सह पाती,
क्या तुम देख पाती पुत्र दुर्योधन की टूटी हुई जाँघ,
क्या देख पाती अपने पुत्रों द्वारा पांडवों का अपमान,
क्या देख पाती भीम का वह रौद्र रूप,
जब दुःशासन की छाती चीरने की कसम खाई थी उसने ,
क्या तुम देख पाती,
अर्जुन के बाणों से बींधे हुए अपने पुत्रों के शरीर,
कौरव वीरों के शीश कटे धड़ ,
क्या तुम देख पाती हस्तिनापूर की वीर विधवाओं का विलाप,
उनका छाती पीट पीट कर रोना,
और देखो तुम्हारे धृतराष्ट्र भी आज रो रहे हैं,
उनकी भी आँखे भर आई हैं,
पर तुम कैसे देखोगी,
तुमने तो बांध ली है अपनी आँखों पर पट्टी,
वाह ! गांधारी!  वाह!
बहुत अच्छा किया तुमने,
भगवान कृष्ण ने ठीक ही कहा है गीता में,
जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए ही होता है!!

           2
"पत्थरलैस कश्मीर"
कश्मीर में एक मस्जिद के पास,
बहुत सारे छोटे बड़े पत्थर जमा हो गए थे,
सभी एक दूजे का मुँह ताक रहे थे,
एक दुसरे से सवाल कर रहे थे......
क्या यही उपयोग अब रह गया हमारा ?
अरे पत्थरबाज़ों कुछ तो शरम करो....
उनको मार रहे हो हमें फेंक कर !
जो आऐ हुए हैं मीलों दूर चलकर,
अपना सुख चैन नींद बेचकर,
रिश्ते नाते घर परिवार छोड़कर,
नई नवेली दुल्हन एंव नवजात शिशू से मुँह मोड़कर,
ताकि पड़ोसी देश तुम्हारे घरों पर पत्थर तो क्या,
नज़र तक न ड़ाल सके,
और लगे हो तुम उन्हीं पर पत्थर बरसाने !!
छिः ! छि : !
आज हमें खुद के पत्थर होने पर शर्म महसूस हो रही है,
तुम्हें शर्म नहीं आती क्या !! ....कि तुम इंसान होकर पत्थर हो,
और हम पत्थर होकर इंसान होना चाहते हैं !
जानत हो
कोई राह चलते जब हम पत्थरों पर पान की पीक फेंक देता है,
या अपनी गाडियों से बेदर्दी से रौंदते हुए आगे बढ़ जाता है,
तो भी हमें उतना कष्ट नहीं महसूस होता,
जितना आज भारतीय सैनिकों के ललाट को लहुलूहान करने पर हो रहा है,
इसलिए सुनों पत्थरबाजों,
हम सभी छोटे बड़े पत्थरों ने तय किया है,
अगर तुमलोग हमारा इस्तेमाल यूँ ही सैनिकों पर करते रहोगे,
तो हम सभी पत्थर कश्मीर छोड़ कर चले जाऐंगे,
फिर तुमलोग चलाते रहना पत्थर,
बहुत दिन से हमलोग चाह रहे थे आपलोगों से कहना,
बहुत कठिन है पत्थरों के देश में इंसान बन कर रहना,
तुम इंसान जाओ पत्थर बनों,
हम पत्थर चले इंसान बने !!
बाॅय  बाॅय कश्मीर !

            3
"सर्जिकल स्ट्राईक"
उस दिन जैसै ही माँ प्रकृति के दरबार का पट खूला,
शिकायतों का पिटारा खूला..
माँ प्रकृति के सारे दुलारे,
अपनी अपनी शिकायतें लेकर पहुँचे ।
आश्चर्य की बात सभी की शिकायतें थी, इंसानों के खिलाफ,
माँ प्रकृति से सभी आज माँगने पहूँचे थे इंसाफ ।
बुढा बरगद (वन प्रतिनिधि ) :
माँ, इंसान तो कुछ ज्यादा ही लालची होते जा रहा है,
हमारा पूरा वन परिवार उसके अत्याचार से त्राही माम कर रहा है ।
कल हमारे सामने सरेआम एक शीशम भाई की हत्या कर दी उन्होनें,
हम कैसे उन्हें रोकें ? बताओ माँ । बताओ ।
राजा शेर ( जानवर प्रतिनिधि):
ये क्या हो रहा है माते?
दिनप्रतिदिन इंसान अपनी क्रूरता की हदें पार कर रहा  है,
कभी हम जानवरों की छाल से अपने घर के दिवारों को सजाता है,
कभी हमारे परिवार की लडकियों को उठा कर ले जाता है...
ऐसा कब तक चलेगा माँ, कब तक ?
गंगा नदी (जल प्रतिनिधि)
ये क्या माँ, मेरा क्या हाल बना दिया है इंसानों ने?
अब तो मैं खुद को नहीं पहचान पा रही,
क्या मैं वही भागीरथी गंगा हूँ ?
रोको इन इंसानों को माँ, रोको इन्हें ।
कुछ देर गहन चिंतन करने के बाद माँ प्रकृति बोली...
"सर्जिकल स्ट्राईक "
क्या???
सब एक सूर में पुछ बैठे...
क्या है माँ यह सर्जिकल स्ट्राइक ?
प्रकृति माँ बोली...
जब नही समझे कोई प्यार से समझाने से,
तब बाज नहीं आती हूँ मैं, सर्जिकल स्ट्राइक आजमाने से ।
बुलाओ मेरी सारी सेना को...जाओ,
इंसानों को तूरंत सबक सिखाओ,
मेरे लोगों को यदि वे करेंगे तंग,
छिडेगा तब फिर हमारा जंग ।
कहाँ है मेरी सारी सेना...
थल सेना (भूकंप)
जल सेना (बाढ )
वायु सेना (आँधी ),
सभी को बुलाओ...
वक्त आ चूका है सर्जिकल स्ट्राईक करने का,
अब और इंतजार नही करने का.....

अनंत ज्ञान

अनंत ज्ञान झारखण्ड के हज़ारीबाग से हैं। स्थानीय साहित्यिक सस्था से जुड़े हैं। कई पुरस्कारों से पुरस्कृत हैं। हजारीबाग व्यवहार न्यायालय में सहायक पद पर कार्यरत हैं

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