अटल जी की प्रशंसा स्कूली जीवन में सुन चुका था ।जब पढ़ने पटना आया तो गांधी मैदान में पहली बार उनका भाषण सुना और प्रभावित हुआ ।उसके बाद जब जब वे भाषण देने पटना आये , पहुंच जाता था । उनकी भाषा की शुद्धता, ओजस्विता, व्यंग्यात्मक लहजा मन को भाता । हस्त संचालन, सर का झटकना, आंखों की भंगिमाएं उनकी वाग्वीरता
के अस्त्र-शस्त्र मालूम पड़ते थे । बीच-बीच में गहरा मौन हमें आगे की बात जानने के लिए विशेष रूप से उत्सुक कर देता था ।
जब पढ़ने दिल्ली गया, तब भी एक बार सुनने का मौका मिला । उस समय वे जनता पार्टी के शासन में विदेश मंत्री थे । सोवियत संघ से कुछ शिष्टमंडल आये थे ।उसमें मेरे गुरु नामवर जी विशिष्ट वक्ता थे ।उन्हीं के साथ मैं भी गया था ।अटल जी उस मंच पर आकर्षण के केंद्र में थे ।विरोधी के रूप में उनकी वाणी की धार देख चुका था, आज सत्ताधारी के रूप में वे कसौटी पर चढ़े हुए थे ।मैं देखना चाहता था कि उनकी वाणी में वही धार और वही सहजता है या परिवर्तन आया है ! खुशी हुई कि वह अक्षुण्ण है ।उन्होंने कहा कि मेरे विदेश मंत्री बनने पर सोवियत रूस में खलबली मच गई ---- "यह आदमी तो प्रतिक्रियावादी खेमे का है । पता नहीं दोनों देशों की मित्रता पर क्या असर पड़ेगा !"
मैंने उन्हें आश्वस्त किया ---"जरा भी चिंता की बात नहीं है , क्योंकि सत्ता बदलने से राष्ट्रहित नहीं बदल जाता ।" मैंने देखा मंच पर बैठे गुरुवर नामवर मुस्कुराये और प्रशंसा में सर हिलाया ।
अब मैं प्रोफेसर हो चुका था । 1980 का समय रहा होगा ।लोकसभा का चुनाव आनेवाला था ।जनता पार्टी बिखर गई थी । एक दिन हमारे आदरणीय शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि अटल जी पटने के बुद्धिजीवियों से बातें करना चाहते हैं । मटुक जी , उस सभा में आप रहियेगा । आई एम ए हॉल में सभा होनेवाली थी ।मेरी मौसिया सास ने कहा --- हम भी अटल जी को देखने जायेंगे । हमलोग गए । हॉल में आगे की दो कतार छोड़कर हमलोग बैठ गए ।शैलेंद्र जी मंच संचालन कर रहे थे ।मेरी बगल में एक कुर्सी खाली थी । अचानक अटल जी आये और मंच पर या सबसे आगे की कुर्सी पर न जाकर मेरे पास वाली खाली कुर्सी के निकट खड़े हो गए और पूछा क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ! मैं तो अचंभित ! हां.. हां.. हां सर ।उस कुर्सी पर एक सिक्का पड़ा हुआ था । पूछते हैं--- किसी ने सिक्का रखकर यह सीट रिजर्व तो नहीं करा ली है ? मैं हंसने लगा । नहीं सर, नहीं सर, यह आपकी ही सीट है ।इसी बीच मैंने देखा-- सभा में सभी लोग खड़े हैं और उन्हें मंच पर बुलाया जा रहा है । उन्होंने मंच पर जाने से मना किया और वहीं बैठ गए । उनके बैठने के बाद सभी लोग बैठ गए ।
इसके बाद उठकर वहीं से उन्होंने कहा -- शैलेंद्र जी, मैं पटनावासियों के विचार जानना चाहता हूँ । वे बेबाकी से अपनी बात रखें । वे बतायें अपनी दृष्टि से कि जनता पार्टी क्यों नहीं एकजुट रह पाई ? उसका शासन क्यों पांच साल पूरा नहीं कर पाया ? शैलेंद्र जी ने आमंत्रण भेजा । अटल जी के सामने कोई बोलने को तैयार नहीं । बगल में मुझे अटल जी ने कहा , आप बोलिए कुछ । मैं भी थोड़ा हिचकिचाया ।फिर उन्होंने ललकारते हुए कहा -- आप युवा हैं । आपको जाना चाहिए ।फिर मैं उठा और मंच पर जाकर जनता पार्टी की कमियों को गिनाना शुरू किया ।उनमें एक बात यह कही थी कि जनता पार्टी के पास कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नहीं था । जब अटल जी बोलने आये तो मेरी बातों का उल्लेख करते हुए कहा था---- मेरे नौजवान साथी ने अभी कहा है कि जनता पार्टी के पास कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नहीं था ।नहीं, ऐसी बात नहीं है ।ठोस आर्थिक कार्यक्रम था, लेकिन हमने उन कार्यक्रमों का क्रियाकर्म कर दिया !
शब्दों के साथ खेलते हुए तथ्य रखना कोई अटल जी से सीखे ।
Thursday 16 August 2018
अटल जी की याद में /मटुक नाथ चौधरी
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