आसमान से झड़ते हैं शब्द
धरती से टकरा कर
सन्तूर से बजते हैं
सुनना
किसी खाली रात में जब तुम्हारा सीना
आसमान की तरह सजल बादलों से भरा हो
सुनना उसे
जैसे
पड़ोस की छत पर बजते रेडियो को सुनते हो
महसूस करना
जैसे न
होकर भी तुम्हारे पास कोई होता है
व्याकरण भाषा का हो या समाज का व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना जिनके अधिकार क्षे...
No comments:
Post a Comment