Sunday 3 April 2016

शैलजा पाठक की कविता



हमें कौन सा विषय पढ़ना चाहिए
का फैसला हमारे घर के आँगन में बैठ
घर वालो ने कर दिया
हमे तीन विषय में ढाला गया

समाज शास्त्र
हम पढ़ते रहे कैसे कैसे समाज बदला
युगों कालों समय के साथ
किताबों के पन्ने भरे थे
हम उसी समाज में अपनी सुरक्षा में
नंगे हाथ खड़े
तुम के हथियार से हमें
अपने अनुसार तरास रहे थे
हम किताब का समाज शास्त्र पढ़ रहे थे

दूसरा गृह विज्ञान था
मेरा अपना ही घर मेरी चाहत से अनजान था
मैंने दर्शन शास्त्र के ऊपर से अपनी ऊँगली मोड़ ली थी
और गृह विज्ञान की हो गई थी
घर रहन सहन पाक कला के पन्ने ही नही पलटे गए
बाकायदा गेहूं के पिसे जाने से गरम तवे तक का
सफ़र तय किया
पहली बार आग की भाषा समझी
नमक से नजरें मिलाई
मीठे डब्बों में वन्द किये अपने तमाम करतब
तुम्हारी जुबान पर मुस्कराई
मैंने गृह विज्ञान की सारी रस्में निभाई

तुमने सबसे आसान विषय चुना हिंदी
तुम्हे पता ही नही था
तुमने कौन से सपने की डोर मेरी हाथ में थमाई
मैं पहली बार मुस्कराई
रेत को डोरियों पर सुखाने का सुख तुम जान भी नही सकते
हम रश्मि रथी लेकर सोने लगे
हम सरोज स्मृति में आँखे भिंगोने लगे
हम बिहारी की नायिका बन गढ़ते कितने रूप
हम कालिदास के पागल प्रेम में बादल बनने लगे
परियों की कहानियां हमसे ही होकर गुजरी
हमारी गुम हुई चप्पल को लेकर चल पड़ा होगा
वो सुदर्शन राजकुमार

एक पैर की हकीकत वाली चप्पल पर आज भी खड़े हैं
सपनों की खातिर सपनों से लड़े हैं
आँगन के ठीक बीच बैठकर तुम आज भी तय कर रहे हो हमारे विषय

हम उनमे से ही कोई धागा उठा कर रंग बुन लेते हैं
हम खिड़की को आसमान ख्वाब को इतराता चाँद
और इन्तजार को सुदर्शन राजकुमार की बेचैनी में छोड़ आये हैं

अभी अभी हमने अग्रेजी और दर्शन शाश्त्र पर ऊँगली रखी देखना ये भी पढ़ जायेंगे कभी
की हम जानते हैं मुशिकल से चुभती रात हो जब
फूलों वाली चादर बिछाने का हुनर
चादरों पर मोर सावन बादल टांक आते हैं

तुम जब भी तय करते हो विषय
हम आँगन में चुपके से झाँक आते हैं ....

(कमाल हैं लड़कियां दीवारों के पीछे छुपी महलों को सुई धागों में बाँध लेती है )

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