Friday 1 April 2016

दीवार में चुनवा दी गयी इक खिड़की

दीवार में चुनवा दी गयी है  इक खिड़की
खिड़की
जिस पर
हंस पर बैठ
उड़ आता था राजकुमार
और बढ़ जाता था फूलकुमारी का वजन

दिवार में चुनवा दी गयी वो खिड़की
जहाँ से पद्मिनी झांकती और हंस देती थी
अलाउद्दीन गश खा कर गिर जाता था

खिड़की जिसमें चिड़िया ही नहीं  पत्थर भी लाते थे खत और फोन नम्बर 

खिड़की के बाहर चकोरों की तादाद बताती है
खिड़की में एक चाँद जवां है

दहलीज
जब पाँव में बेड़ियाँ बनती है
खिड़की रास्ता  देती है
इश्क की बाँहों तक का पता बताती है

इसी चुनवा दी गयी खिड़की ने नीचे की मिटटी में ढूंढो
इक आशिक का खत दफन हैं
इक लैला की टूटी चप्पल मिलेगी
गाँव के बीचोबीच
बरगद के नीचे जो साफा बांधे चौधरी बैठा है  न
उसकी नाक भी यहीं कहीं घास में खोई मिलेगी

खिड़की होती है दिवार में
जैसे काँटों बीच  खिल ही जाता है गुलाब
खिड़की में उठती हैं जब दीवारें
गुसलखानों की छतों से रस्सियाँ झूलने लगती हैं

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खाली खिड़कियाँ नाकाम आशिकों को बहुत मुंह चिढाती हैं
इतना भी बुरा नहीं दीवार का उठ जाना ........
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अरमान आनंद

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