Sunday, 3 April 2016

किसान (कविता)

किसान (कविता)

बंजर धरती पर टिकी है ,
दो हसरत भरी निगाहें।
तो कभी आसमान की और ,
देखती उम्मीद भरी निगाहें।
की शायद कोई कतरा सा ,
बादलों से होकर ज़मीन पर गिर जाए।
बस कुछ बूंदें !
जिससे इस धरती की प्यास मिट जाये.
बादल आये भी ,
मगर नियति की हवा ने उन्हें उड़ा दिया.
और फिर तेजस्वी सूरज अंगारे बरसाने लगा।
बादल ने तो क्या बरसना था।
उसकी बेबस ,बेज़ार आँखों से टपक पड़ी ,
आंसुओं की चंद बूंदें।
निर्बल ,निस्तेज काठ से बदन से टपक पड़ी,
पसीने की बूंदें।
ना बादल बरसा ,
ना खेत लहलहाए।
बंजर धरती पर लेकिन टिकी है ,
अब भी वह दो निगाहें।
.............................................................
http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:http://anusetia.jagranjunction.com/2014/07/07/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A8-%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE/&gws_rd=cr&ei=msgAV4mvAYudugTezJiYCw
इस लिंक से साभार 

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...