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कोई चीज़ थी जो पहले
जैसे रोओं से झरती थी
जैसे भुट्टे की तरह गसी रहती थी
जैसे तारों की तरह थाल में भरी रहती थी
जैसे मछलियों की तरह खलबली करती थी
और बिना हवा के नदी को जोड़ती रहती थी
अब इतना कम कि बहुत फूंकने पर गुब्बारा जरा सा
फूले
फिर बैठ जाय
एक बीघा खेत में सेर भर धान
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९५ पुतली में संसार अरुण कमल
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