Friday, 2 March 2018

आशुतोष सिंह की कविता श्रृंखला - ओस में धूप

ओस में धूप
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1

जानता हूँ कि
साखों के हर पत्ते एक दिन
किसी उदास पतझड़ में गिर जाएंगे !
सूखी ज़मीन पर !
रौंदता हुआ कोई कदम
बढ़ जाएगा अपने अनजान सफ़र की ओर
जानता हूँ कि
पहाड़ अपनी ऊंचाइयों से डर जाएंगे
भूल जाएंगे आसमान तक का सपना
लौट आएंगे धरती के गर्भ में वापस
और बसा लेगा कोई सुंदर सा घर उसपर !
जानता हूँ कि
नदी भूल जायेगी अपने समंदर का रास्ता
खो देगी अपने दो किनारे हो जाएगी एक सिर्फ एक
मिलकर पानी मे पानी सिर्फ रह जाता है पानी
कोई प्यासा बुझा लेगा अपनी प्यास !
जानता हूँ कि
दुनिया भीड़ के खिलौने जैसी है !
जिसको खिलाने के लिए चाहिए झूठ की चाभी
देखना होगा कोई खाली तस्वीर
जिसमे भरेगा कोई रंग अपनी जिंदगी का
और भूल जाएगा सबकुछ !
मैं जानता हूँ कि
वो मुझसे प्रेम करती है !
प्रेम मंज़िल नही है,कोई रास्ता नही है
वो मुझे भूल जाएगी एक दिन
और भुला देगी हर वक़्त ,हर वादे
वो कहेगी अपना नया वक़्त किसी की बाहोँ में !
मैं जानता हूँ !
हाँ मैं जानता हूँ !

2

ओस में धूप
हर छांव पर पड़ती है धूप की आँखें
हर ख़ालीपन को सुनाई पड़ती है
भीड़ के गीत !
हर उदासियाँ चुनती है खुशियों के शब्द !
हमारी दुनिया मे !
हर इंतज़ार को पता है मंज़िल का रास्ता !
हर वक़्त को पता है यादों का घर !
हर चेहरे को पता होता है अनजान रह जाने
का तरीका !
हमारी दुनिया मे !
आसमान तक जाने के लिए
जरूरी नही की ज़मी से दूरी रखी जाए !
समंदर को पाने के लिए
नदी तो नही भूलती अपने किनारे कभी
शहर तो नही भूलते ना गाँव के जीवन को !
हमारी दुनिया मे !
इश्क़ कभी कभी इश्क़ होता है
कभी नही भी होता है !
दर्द कभी कभी दर्द होता है !
कभी नही भी होता है !
सबकुछ होता है होता रहता है
कभी नही भी तो होता है !
हमारी दुनिया मे !
अकेलेपन की कविताएं ढूँढती है
कोई अँधेरा !
रातें ढूँढती है हर बार रौशनी से दूरी !
प्रेम ढूंढ ही लेता है हर बार एकाकी मन !
हमारी दुनिया मे !
हाँ हमारी दुनिया मे !

3

ओस_में_धूप !
मेरे घर की सीढ़ियाँ
मेरे आँगन की फुलबरिया
मेरे खिलोनौ का बक्सा 
मेरे मोह्हले का नक्शा !
छोड़ कर अधूरा ही सबकुछ
वो सब जहाँ से लौट आया हूँ !
मोहल्ले की कहनियाँ !
बूढ़ों की दाढ़ियाँ !
वो खेलने का मैदान
वो आमों का बगान !
कच्ची मिट्टी का सामान
छोड़ कर अधूरा ही सबकुछ !
वो सब जहाँ से लौट आया हूँ !
वहाँ जब मैं दौड़ता था
मानो आसमान जेबों में रखता था !
वहाँ जब मैं हँसता था
मानो बेहिसाब जीता था !
मेरे जीवन का गीत
साथ अपने बस जीत ही जीत
हार कभी नही रहा हारने जैसा
हर बार  नींद के सपनो को
छोडक़र अधूरा ही सबकुछ
वो सब जहाँ से मैं लौट आया हूँ !
वो मेरी सबसे पहली दोस्त !
वो मेरा सबसे पहला यार !
वो मेरी सबसे पहली मोहहब्बत !
वो मेरी सबसे पहली लड़ाई
वो सब जहाँ से लौट आया हूँ !
और कभी वापस ना जा सका !
4
ओस_में_धूप
प्रेम किये जायेंगे
ठुकरा दिये जायेंगे !
दोस्त बनाये जाएंगे
भूला दिए जाएंगे !
रिश्ते बनते रहेंगे
एक रोज़ बिख़र जाएंगे !
मुझे क्या कुछ भी तो नही !
झूठ बोलेंगे हम
सच छिपा लिए जाएंगे !
मुस्कुरायेंगे हम
आसुँ समेट लिए जाएंगे !
शब्द कहेंगे जब हम
अर्थ फ़िज़ूल रह जाएंगे !
मुझे क्या कुछ भी तो नही !
जब पहाड़ियाँ उदास बैठी हों
हम ज़मीन पे ही लेट जाएंगे !
नदियाँ जब लौटने लगेंगी
हम किनारों के ही हो जाएंगे !
मुझे क्या कुछ भी तो नही !
गीत लिखे जाएंगे
पन्ने फाड़ दिए जाएंगे !
दर्द गुनगुनायेंगे
फ़िर चुप हो जाएंगे ।
चुप ही रहेंगे या
चुप्पी सुनते जाएंगे
मुझे क्या कुछ भी तो नही !
भटके को नया रास्ता मिले !
मंज़िल वालों को मिले नयी उम्र
मौत वालों को ना मिले कोई ज़िंदगी !
मुझे क्या कुछ भी तो नही !
हाँ मुझे क्या कुछ भी तो नही !
5
धूप में ओस
________________
आधी रात की सिसिकियाँ सुनाई पड़ी !
सीने पर पत्थर सा पड़ा
नसों में घुल गया ज़हर
घुलता रहा ज़हर
मुझे उस रात भी नींद नही आयी
मैं सोचता रहा !
उसने मुझे फिर याद क्यों नही किया !
वो सारे दास्तान
वो मेरी आँखों मे फैला रेगिस्तान
उसने मुझे इनकार नही किया
वो समर्पण का जान गयी मतलब
मैं इतना भी ग़लत नही था !
मैं सबसे पूछता रहा !
उसने मुझे क्यों याद नही किया !
वो आसमान के साये में
हमारे साथ पड़ते कदम ।
ज़मीन के हर कोने पर
हमारे हर कसम !
मैं हर बार खुद से पूछता रहा !
उसने मुझे क्यों याद नही किया !
बेचैन रातों में उसकी बातें !
हमारी धीमी धीमी मुलाकातें !
हमारी धीमी धीमी कहानी
हमारा धीमा धीमा प्यार !
हमारा पहला अहसास !
वो रुकी हुई साँस
वो सब हाँ वो सब
जिसे हर बार मैंने याद किया !
लेकिन उसने मुझे क्यों याद नही किया !
उसने मुझे क्यों याद नही किया !
_______________
©आशुतोष सिंह
आशुतोष सिंह 

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