Friday 2 March 2018

यूनिवर्सिटी एक्सप्रेस ( कहानी ) - आशुतोष सिंह

आशुतोष सिंह
                                            यूनिवर्सिटी_एक्सप्रेस


कैंपस में नए वक़्त के लड़के अब तैयार फसल की तरह चरचराने लगे है !बनारस में ये लड़के किसी की आँखों मे चुभते हैं तो किसी की आँखों की हिम्मत बन जाते हैं ! इन्होंने पुरानी हड्डियों में नयी आग फूँक दी है ! वक़्त गुज़र ही रहा था कि इक रोज़.....

हॉस्टल के भीड़ में से एक आवाज़ गूंज रही है उसे सुननेवाले नए वर्ष के छात्र हैं ! गाहे गाहे उनको समझे कैंपस को कुछ ही दिन हुए हैं !अभी बिना गैंग के जीवन चल रहा है ! बड़े बड़े नेताओं से संपर्क नही हुआ है ! दिमाग में डर ज्यादे है और चालाकी कम है ! इसी बीच आवाज़ फिर से गूँजती है " मारा गया है,हमारे भाई को,कोई कहीं का भी हो ,कैसे कोई मार देगा "
पीछे से कुछ बच्चे टाइप लड़के चश्मा में हैं जोआगे बोल रहे लड़के को नही देख पा रहे...बुदबुदाते हैं " अबे हमको लड़ना नही है " !

भीड़ ज़मी हुई है ! हॉकी ,बैट निकल चला है ,दोपहर के दो बजे हैं ! ये उनकी पहकी लड़ाई है ! आधे से ज्यादा लोगों को नही पता किसे और क्यों मारना है ! एक्साइटमेन्ट में सब एक साथ चले जा रहे हैं !
सबसे आगे चल रहा है...नाम है तपन राय ! दरभंगा जिला का है ! मिथिला का असर तीखा है अभी ज़बान सरक और सड़क में लड़खड़ा जाती है ! हालांकि सीनियर्स को जानने में वक़्त नही लगा है ! मार धाड़ के किस्से तेज़ी से फैल रहे हैं ! नए नए लड़के इसके पीछे लगते जा रहे हैं !पुराने पड़े गैंग इसे अपनी ओर खींच रहे है हालाँकि उनसे इसका संपर्क अभी तक महादेव शब्द तक सीमित है ! तपन राय अपनी भूमिहार लॉबी बनाना चाहता है ! उसके सामने ढेरों चुनौतियों है लेकिन वो बढ़ता जा रहा है !प्रशासन के एजेंट इसके पीछे लगे हुए हैं और हर जानकारी के लिए संपर्क भी करने लगे हैं !

आर्ट्स फैकल्टी चौराहे पर किसी अनजान लड़के पर दनादन चार पाँच हॉकी बैट बजता है और माहौल में सन्नाटा पसर जाता है ! उस लड़के के माथे से खून उसके कपड़े पर पसर जाता है और लड़के भाग जाते हैं !
लड़के भाग कर सीधे बिड़ला ग्राउंड फिर अपने हॉस्टल के दरवाजे पर खड़े हो जाते हैं ! शाम का वक़्त है और
मार के किस्से बतियाये जा रहे ! नए लड़ाई की खोज की जा रही है !टारगेट पे टारगेट बनाये जा रहे हैं !
तभी दरवाजे पर तपन राय के कोई आकर कहता है " अभी नए नए आये हो ,ज्यादा पंख मत फड़-फड़ाओ
नही तो कट जाएगा ...बिहार के हो ज्यादा दिमाग मत लगाओ "
तपन राय ने उससे पूछा " अबे तुम हो कौन ? "
सामने से जवाब आया " नाम जान जाओगे अभी सिर्फ इतना समझो की जिसे मारे हो वो मेरा भाई है "
तपन राय ने कहा " भाई था तो उससे गलती पूछो "
जवाब था " तुम्हारी ग़लती तो तुम्हे ही बताएंगे ना "
तपन राय ने कहा " अगर वो नही सुधरा तो दोबारा मरायेगा "
जबाव था " हम दोबारे का इंतज़ार करेंगे "

                           उसके जाने के बाद ! उसने अपने खास दोस्त जो उसका सबसे बड़ा करीबी हो चुका था ...जिसके पास बीएचयू के हर माफ़िया की जानकारी थी ...नाम था उसका सिंकू पांडेय ...प्यार से कहते सब "सनकु पांडेय"
सनकु ने बताया " भाई ये बलिया का है ...नाम है प्रताप सिंह " पुराने पुराने भैया से इसका खूब सम्पर्क है ...सोशल साइंस में फर्स्ट ईयर है !! भैया सबके नाम पर उड़ता है ! भाई लाल की दुकान पर हर दोपहर बैठता है आजकल ....कल चलें क्या ?
तपन राय सोचने लगा ....सोचते हुए उसने कहा " बात तो है शाले में ..."दुश्मनी करके क्या मिलने वाला है भला "ज्यादा से ज्यादा सॉरी कह देंगे ....मिलाकर चलेंगे ...भूमिहार हैं ....इतना तो बनता है....कमरे में बैठे सबलोग हँसने लगे ....जॉइंट की फूँक लगते ही दुनिया अलग हो गयी और सबकुछ भूला दिया गया
                
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                                  सुबह के दस बजे हैं ! दस लड़को के साथ तपन राय और साथ मे सनकु पांडेय बस से कूदते हैं वहीं बस अपनी आवाज़ देते चुपचाप निकल जाती है ....साथ मे उतरी लड़कियाँ अपना किनारा ढूँढने लगी है ! पीछे से थोड़ी बहुत फब्तियां कसी जा रही हैं ....की एक बड़े भैया गुज़रते हैं !
भैया प्रणाम की आवाज़ लगती है...उनके पैर पर तरातर दस हाथ बारी बारी से गुज़र जाते हैं...उनके धूल को माथे पर लगाते हैं ! ज्योंहि भैया गुज़रते हैं कि बीच मे से कोई कहता है....इहो के समय ठीक ना हौ ..बहुत पैर छुवावत ह ..और सबकी हँसी हवा में घुल जाती है !

                                     भाई लाल के दुकान के पास आते ही सनकु ने इशारा कर दिया है कि भैया प्रतपवा वहीं बैठा है ...कहिये तो दबा दें यही ! तपन राय " शाला जब सीधी उँगली है तो काहें टेढ़ा मेढ़ा करने की सोचते हो " चलो बात करते हैं ...बहुत सुने हैं बीएचयू में की बलिया ये ...बलिया वो !
तपन राय अपने दोस्तों के साथ वहीं बैठ जाता है कि..चाय देने वाला एक लड़का उनकी सेवा में तैयार हो जाता है...इसी बीच तपन राय और प्रताप सिंह दोनों चुपचाप हैं की सनकु बोल पड़ता है ...अबे प्रताप तुमसे तपन बात करना चाहता है ! प्रताप तपन राय की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहता है...अबे तो भैया गूँगे हैं क्या जो तुम बोल रहे हो...खजांची शाले बाह्मण !

                                  सनकु की तो जैसे आग सी लग गयी है ....उसने कहा अबे अभी तुम देखे कहाँ हो पैदाइश से लेकर लाश तक का कारोबार हमारा है ऐसे हल्के में मत लो ! इसी बीच तपन राय ने प्रताप को कहा...भाई उस दिन के लिए माफ करो ...गलती हो गयी !
प्रताप ने कुछ नही कहा और चाय के पैसे देते हुए आगे बढ़ गया....तपन राय ने अपनी टेलर में चाय वाले को इंतज़ार करने को कहा और वो भी निकल गया ! दिन भर वो यही सोचता रहा कि इतना भी क्या अकड़ है...सॉरी तो बोला ही ...इतना भी नही करना था कि शर्मिंदा हो जाये ...तपन राय को ये बात बेइज्जती लगी ! ख़ैर दिन भर कैंपस में घूमने के बाद फिर वही लंका और फिर वही हॉस्टल ...वही पुरानी बातें की कौन किससे चैटिया रहा है ...
                                  गाँजा की आदत पता नही इन्हें कब लग जाती है और वो महान शख्स कौन होता है ! ये भी इनको नही पता चल पाता ! हालाँकि दिन गुज़र रहे हैं ! अगली शाम में लंका चौराहे पर तपन राय के दोस्त बैठे आती जाती लड़कियों को देखते हुए पुलवों पर पुलवों की बौछार किये जा रहे थे ! तपन राय की नजरें एक ही जगह टिकी थी .....और जिसपर उसकी नज़रें थी वो कहीं और बढ़ रही थी ! अब नाम पता करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी है...क्या पढ़ती है से लेकर कहाँ जाती है तक ता ओन द स्पॉट ठेका बंट गया है ! उस रात तपन राय बेहोश सा था ...ये फर्स्ट ईयर में मिलने वाला सबसे खूबसूरत झटका होता है !

                                   शाम की बात है...फैकल्टी से गुज़रते वक़्त कुछ लड़के आपस मे एक साथ खड़े बतिया रहे थे...कहीं बाहरी थे...मैटर पूछना भी तो जरुरी होता है..नही तो कैसे कोई समझेगा की नेता है .....तपन राय ने पूछा कि किसको मारना है भाई ....सबने मुस्कुरा दिया ...कहा कि नही भाई तुम जाओ ! उस समय तपन अकेला ही था !
                                    सामने से उसने देखा कि प्रताप अकेले गाड़ी तेज़ी से उड़ाता हुआ चला आ रहा है..उसने गाड़ी वहीं पटकी और सीधे उस भीड़ के लडको को एक थप्पड़ जड़ दिया....एक जोर के थप्पड़ की आवाज़ सबके कानो तक आयी ! तपन राय को देखते ही उसने कहा " अबे तुम यहीं हो...मुझे मालूम था कि तुम हर ग़लत काम मे रहते हो " तपन  राय कुछ कहता की इस बीच तरातर
चार पाँच थप्पड़ उन लड़कों की तरफ से प्रताप को लगा...तपन राय ने उनसब को मना किया लेकिन लड़ाई चल चुकी थी ! तपन राय और प्रताप दोनों मिलकर लड़े और मामला शांत हुआ...प्रॉक्टर की गाड़ी तेज़ी से उधर आ ही रही थी कि सब भाग गए !
                                    लंका पर जाके प्रताप ने चाय लिया और साथ मे तपन को भी दिया...तपन ने कहा...अबे मैं उनके साथ नही था बस पूछ रहा था कि क्या बात है यहाँ खड़े हो ! प्रताप ने कहा देखो ....मुझसे टेंशन मत लो नही तो बुरा होगा....तपन राय ने कहा"अबे यार तुम ऐसा कहोगे की मै उनके साथ था जबकि मैंने तुम्हारा ही साथ दिया !
ज्यादा दिमाग मत लगाओ तपन ये सब तरीका बदलो !
तपन राय ने कुछ नही कहा और चुपचाप वहाँ से निकल गया....रास्ते भर उसे अपने दिन भर के मसले पर शर्म आ रही थी यही की क्या वो इतना कमजोर है कि बार बार सुनता जा रहा है ! वो कमरे में पहुँचा...सनकु भी साथ लौटा ...सबने सारी बात सुनी ....
                                      गाँजा कमरे में तैरने लगा....और सब हल्के पड़ते गए...दिमाग का हर दर्द धीरे धीरे सुन्न होता गया....की अचानक से वो लड़की तपन को याद आयी नाम था शिखा सिंह.....वो उसके साथ ही नीद की ओर बढ़ चला...उसकी आँखें लाल थी...जिसके सामने एक पूरा काला आसमान था....वो गीत गुनगुना रहा था...या फिर एक शायरी जो उसने अभी अभी ही सोची थी!
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                                     लंका की शाम में नशा है जिसके आगे सबकुछ फ़ीका है ! पता नही क्या है जो खींचकर ले जाती है वहाँ ! तपन राय की नजरें अब इंतज़ार करने लगी हैं ! इंतज़ार हमेशा उदास करता है और उदासी बेचैन करती है वैसे इसी इंतज़ार और उदासी को हम इश्क़ कहते हैं ! उसके हाथों में एक मिट्टी का घड़ा है शायद उसमे एक फूल का पौधा है वो उसके सामने से गुज़र रही है ! उसकी उंगलियों में बाल सुलझ रहे हैं और वो कभी आसमान कभी ज़मी देखकर मुस्कुरा रही है ! तपन राय के सीने में गुदगुदी सी दौड़ उठी है,पैर काँपने लगे हैं और वो बस देखता जा रहा है ! धीरे धीरे वो उसके आँखों से दूर हो चली है ! उसके जाते ही लंका सिर्फ एक भीड़ की जगह लगती है ....वो आज भी लौट आया है कल के इंतज़ार में वहाँ से !

                                    दिन हर दिन की तरह बीते जा रहे हैं ! लड़ाई अब आम बात है ! धीरे धीरे कई लड़कों के गैंग तैयार होने लगे हैं !सबके पास अपना नेता है जो रोज़ कोई नया टास्क देता है ! तपन राय का गैंग सबसे तेज़ तर्रार है ! नए मौके पकड़ने में इसकी टीम ने नेटवर्क बना रखा है ! हर हॉस्टल में इसके लोग हैं ! " कोई भी काम नही रुके बीएचयू में इनके गैंग का मोटो है" ! सनकु पांडेय सबसे तेज़ दिमाग है और वो अंदुरनी हिस्सा देखता है ! तपन राय को आग भी देता है और मौके पर पानी भी ! हालाँकि कमजोर है इसलिए फ्रंट पर नही रह पाता है !
                                      तपन राय हॉस्पिटल से सेंट्रल आफिस तक के काम अकेले सम्भालने लगा है ! चुपचाप ही वो धीरे धीरे अपना नाम कमाया जा रहा है !
प्रताप सिंह कोई गैंग नही चलाता लेकिन वो फिर भी ताकतवर है !अकेला घूमता है फिर भी उसे कोई डर नही ! नए लड़कों में उसकी सबसे ज्यादा इज़्ज़त है !
वो कैंपस में नही घूमता नाही किसी मारपीट में जाता है फ़िर भी उसको हर जानकारी है ! तपन राय उससे जलने लगा है ! वो उससे ज्यादा इज़्ज़त पाना चाहता है लेकिन सब उसे गुंडे की तरह देखते हैं ! तपन राय भी एक नेक दिल है लेकिन कई कारणों से  वो पीछे रह गया है ! सनकु पाण्डेय है तो तपन के साथ लेकिन भीतर ही भीतर वो तपन राय के साथ भेद रखता है !

                                      सनकु पाण्डेय तपन राय को भरम में रखकर उसे हारते देखते रहना चाहता है !
हालाँकि ज़िंदगी के इस हिस्से के बावजूद भी उनकी ढेरों ज़िंदगी है ! घूमने फिरने से लेकर नई फिल्मो का क्रेज और नए विषय पर चर्चा करना भी इनका हिस्सा है जीवन का ! पढाई से दूर हैं लेकिन पढ़ने वालों से दूरी नही है ! नोट्स ,असाइनमेंट कोई न कोई बना ही देता है ! ये इनका दूसरा सेमेस्टर है और अब वो बिएचयू में घुलने लगे हैं !
                                     शाम में गाँजा की दो तीन जॉइंट एजीफार्म पर उड़ा ही रहे थे कि अचानक से याद आया कि किसी को देखने लंका भी जाना है ! गाड़ियाँ दौड़ते हुए बीबीसी के पास पहुँचती है ! नए पुराने यार मिलते हैं बात होती है ! समय वही है लेकिन किसी के आने का इंतज़ार आँखों मे चुभने लगा है ! तपन राय गाड़ी पर चुपचाप अकेला बैठा है और बाकी सारे दोस्त बारी बारी से निकल गए हैं
....क्योंकि इंतज़ार दोस्त नही करते...उन्हें तो सिर्फ दोस्त के इश्क़ पूरे होने से मतलब है !
एक लड़की पीले सूट में तेज़ी से उसकी ओर आ रही है और ये वही है जिसका इंतज़ार तपन कर रहा है ! वो मुस्कुरा रही है और अपने साथ चल रहे दोस्तों की बात सुन रही है ! लड़कियों को ये तो पता होता है कौन उन्हें देख रहा है लेकिन ये कभी नही पता चलता कि कौन उनका इंतजार कर रहा है ! तपन राय के सामने ही वो खड़ी है और उसके हाथों में कॉफी से भरे पुलवे है !
तपन को वो नही देख रही है लेकिन कहीं वो देख ना ले अपनी नज़रें इधर से उधर फैलाये है !
तपन भी उठकर गया है और एक कॉफी ले चुका है ! वो उसके बेहद करीब से होकर गुज़रा है...उसके बालों की अज़ीब सी खुशबू उसको छूकर गयी है ! वो चुपचाप ये सब महसूस कर रहा था कि एक लड़का दौड़ते चिल्लाते उसके पास आया है और कहा कि भाई हमको मार रहे हैं सब बचा लो!  तपन राय के सामने दस बीस लड़के एक साथ घेर लिए हैं ! भीड़ लग गयी है और भीड़ की निगाहें तपन राय की ओर है ! इस बीच तपन राय बड़े चालाकी से उस लड़के को भगा देता है ! अब तपन राय सबके सामने है ! तपन राय ने उस लड़के को बोल दिया है कि अस्सी जाकर सबको कह दो आने को ! तपन राय ने उन लडको से कहा देखो मारना है मार लो अगर गलती है मेरी तो ! किसी ने चिल्लाकर कहा "नेता बनत हउवे " और इतना कहा की तपन राय को बुरी तरह लड़के मारने लगे हैं ! पूरी भीड़ बस देख रही थी ! जब तक सनकु पांडेय और उसके दोस्त लौटे तपन राय वहाँ चुपचाप बैठा हुआ था !
                                        तपन राय ने किसी से कुछ नही कहा और कहा की लंका गेट चलो....लंका गेट पर वो उन लड़कों का इंतज़ार करने लगा ..वो सब तो नही आये सिर्फ एक आया...और उस एक को ही सबने खूब मारा और निकल गए!
गाड़ियाँ रफ़्तार से जा रही थी लेकिन उसने एक आवाज़  तो सुन ही ली ...ये शायद वही लड़की थी....उसने कहा "कोई काम नही है क्या दिन भर मार-पीट करते हैं सब चोर कहिंके "
तपन ने गाड़ी मुड़ा ली...उसके पास तक गया और उसके सामने आकर लगभग आँखों मे आँखें डालकर कहा "और हाँ हम बेरोजगार नही हैं...इश्क़ का रोजगार करते है "
उस लडक़ी के साथ वो सारी लड़कियां हँस पड़ी...गाड़ी आवाज़ देती निकल आयी ....तपन को चोट लगी थी लेकिन नींद नही आयी...वो लाल आँखों से आसमान देखता रहा ....वो याद करता रहा वो हँसी जो उसके लिए थी ....इस बीच गाँजे का धुआँ उसके आँखों से गुजरा और हवा में खो गया !
                                   
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फरवरी का महीना था....एक सूखा हुआ मौसम चल रहा था...हड्डियाँ चरचराने लगी थी ....वो बीएचयू की एक उदास दोपहर थी शायद जिसके धूप में बिड़ला और ब्रोचा के बीच किसी विवाद ने हिंसक संघर्ष का रूप ले लिया था ! तपन राय फैकल्टी पर था कि एक भीड़ दौड़ती हुई दिखाई पड़ी...वो भी तेज़ी से भागा और पता चला कि सबको बिड़ला चौराहे पहुँचना है ....लेकिन हर कोई भागा जा रहा था जिसे जो जगह मिलती वो वहीं छिपने की तलाश में लगा था ...तपन राय की टीम आकर पत्थर चला रहे तमाम नेताओं के बीच खो गयी...पत्थर चलाये जा रहे थे...लड़के घायल हो रहे थे...प्रशासन नदारद थी और ये अबतक का सबसे बुरा दिन था !

नए लड़को को ये सब एक मज़ा लग रहा था...उन्होंने युद्ध के कई गुण सिख लिए...की कैसे पेट्रोल बम बनाया जाए ....कैसे बेहतर तरीके से पत्थर फेंके जाए...कैसे वायु सेना जो छत पर रहती है उसका पूरा उपयोग किया जाए ....ये वक़्त एक काला वक़्त था !
शाम तक हॉस्टल खाली किये जा चुके थे...रास्ते पर केवल सीसे फैले थे...फटे हुए कपड़े और खून के निशान थे ! इस जंग ने महीनों तक अशांत माहौल रखा !
तीसरे सेमेस्टर में जब वो आये तो बीएचयू बदल चुका था उन्होंने एक नई जिंदगी सिख ली थी !

अब हाथ पैर जमीन पर ज्यादा थे...समझदारी आने लगी थी आँखों मे ...वो अब सम्भल चुके थे बहुत जगह से उनके कदम रोके जा रहे थे लेकिन उनका गैंग एक दम बेपरवाह था...आज भी उड़ रहा था ! तपन राय आज भी ख़्वाब में है...इस बार जैसे बेचैनी उसे तोड़ने लगी है...आज उसने खुद से वादा कर लिया है कि बोल ही देना है...हालाँकि ऐसी असफल कोशिश उसने हर बार की है...इश्क़ में कोशिश जारी रहनी चाहिए...वो मोहहब्बत ही क्या जिसमे दो चार बार इंसान हारे नही...टूटे नही...बिखरे नही...फ़िर सम्भले नही !

शाम का वक़्त था....वो आज भी यूँ ही शांत होकर चाय के साथ कुछ सोच रही थी..ना जाने वो क्या सोच रही थी ऐसे सवाल एकतरफा प्रेम में अक्सर आते हैं ...तपन राय अपनी हिम्मत बना रहा है...न जाने क्या बात होगी....इस सवाल से ज्यादा जरूरी है की उसका जवाब क्या होगा...जवाब सवाल के बीच मे ही हर इश्क़ इंतज़ार करता रह जाता है ! ऐसा नही है कि शिखा उसे पहली बार देख रही है लेकिन देखने और बात करने में ही किसी जाने और अनजाने के बीच का फर्क होता है !
हम जिसे देखते हैं अगर बात भी करते हैं तो उसे ही अपना कहते हैं ! ख़ैर तपन राय उसके पास खड़ा है ...वो चाय पी रही है....वो चाय ख़त्म कर चुकी है...वो धीरे धीरे आगे बढ़ रही है....और अबतक वो 
उसके आँखों से दूर हो चली है....हालाँकि वो एक बार मुड़कर देखती है पर पता नही किसे....ये तपन नही जानता !

तपन राय के इश्क़ की कहानी बहुत धीमी है इतना धीमा की उसके दोस्त इस इश्क़ में अब कोई दिलचस्पी भी नही रखते ...वक़्त बीत रहा है....हर दिन मार आज भी आम बात है....और हर दिन इस इश्क़ की बेचैनी में जलना इनकी किस्मत है ....उदास आँखों लिए ही दिन भर ये लोग कैंपस घुमते रहते हैं...सच्ची मोहहब्बत एक लंबी यात्रा है !

प्रताप सिंह का इस बीच तपन राय से कोई रिश्ता नही है...वो अलग दुनिया मे रहता है....ना तो उसको मतलब है....वो एक पढ़ने वाला लड़का है...हिम्मती है लेकिन छिटपुट मार नही करता...ज्यादा टेलर देना इसके खून में नही है...विवाद से दूर है...इसकी मोह्हबत बेहद पुरानी है...जिसमे वो एक शांत सा जीवन बिताता है !
उसकी मोहहबत का नाम संचिता पांडेय है ....जो बलिया की ही है.... और वो शिखा की सबसे अच्छी दोस्त है.....ये बात तपन राय को सनकु पांडेय ने बताया है.....और संचिता वही लड़की है जिसने सनकु पांडेय को बेइज्जत किया था...ये वो वक़्त था जब दोनों साथ पढ़ते थे ! संचिता पांडेय से इस बात का बदला हमेशा सनकु पांडेय लेना चाहता था....उसने कसम खायी थी....हालाँकि प्रताप के सामने वो कुछ नही कहता था लेकिन बहुत बार उसने परेशान करने की कोशिश की थी !

तपन राय को जैसे ही पता चला कि शिखा प्रताप सिंह के दोस्त की दोस्त है ....वो फ़िर से बहुत कुछ सोचने लगा ....सबकुछ उसके दिमाग में आ गया ....सनकु ने उसको यही बोला कि भाई तपन या तो प्रताप के आगे झुककर अपना काम कर लो ....या फ़िर प्रताप को तोड़कर अपना काम कर लो...मर्ज़ी तुम्हारी है ! तपन अब दोबारा कभी प्रताप से नही मिलना चाहता था...ना ही कभी उससे बात करना चाहता था...लेकिन किस्मत हमेशा दो दुश्मनों को एक ही रास्ते पर चलाती है !

तपन राय को नही पता कि सनकु पांडेय क्या चाहता है ! वो ये भी नही जानता कि शिखा क्या सोचती है !
वो ये भी नही जानता कि प्रताप क्या उसकी मदद करेगा ! उसे सिर्फ इतना पता है शिखा से उसे मोहब्बत है जिसके लिए वो कुछ भी कर सकता है ....वो ये भी जानता है कि इश्क़ में किसी की मदद लेकर इश्क़ को कर्ज ना बनाया जाए ...इश्क़ तो खुद से ही जीती जा सकने वाली जंग है ....जिसके हार में भी खुशी है...जिसके जीत में भी खुशी ....बशर्ते आपका इश्क़ सच्चा हो !
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 कभी आपको इश्क़ के लिए एक लंबा समय गुज़ारना होता है यूँ ही अकेले किसी की तस्वीर लिये घूमना पड़ता है ! कोई गीत कोई कविता उसके नाम की गुनगुना होता है ! इश्क़ को पकने तक का इंतज़ार जो करते हैं वही इसको महसूस कर पाते हैं...जल्दीबाजी में किया हुआ इश्क़ अक़्सर अधूरा रह जाता है ! ख़ैर तपन राय इस वक़्त ऐसे ही हाल में है ...ना जाने क्या सोचता है ....ना जाने क्या हाल है इसका ....ख़्वाब किसी के आंखों में तैरने लगे हैं....वो डूबना चाहता है .....वो भींगना चाहता है ....लेकिन ! लेकिन वक़्त खुद तय करता है....वो खुद ही रास्ता बनाता है ....वो खुद ही मंज़िल बनाता है .......

तपन राय आज लाइब्रेरी में ही है कि उसने देखा एक लड़की बेहद शांत होकर किताबों के बीच उलझी है...ये तपन राय का पहला दिन था लाइब्रेरी में....इश्क़ भी ना ना जाने आपको कहाँ कहाँ ले जाता है .....वो अब और नही रुकने वाला....अब बहुत हो चुका है...इंतज़ार का बाँध भी एक दिन टूटता है जब टूटता है तो मोहब्बत की बाढ़ आती है ....वो उसके पास जा रहा है...इस बार उसके पाँव नही थरथरा रहे....उसके आँखों मे कोई बेचैनी नही है....उसके पाँव धीमे है...वो धीमे से उसके पास जाकर बैठा है !

उसने कोई किताब खोली है...वो पढ़ रहा है....ना जाने क्या पढ़ रहा है ....इसी बीच शिखा कहती है...."तुम पढ़ते भी हो क्या ?" तपन राय ने उसकी पहली आवाज़ सुनी जो उसके लिए थी....तपन राय ने हंसते हुए कहा "क्यों मैं नही पढ़ सकता " शिखा ने भी मुस्कुराया और किताबों में अपना चेहरा ढक लिया....वो कुछ देर तक शांत रही उसके बाद कहा ....आप पढेंगे तो बीएचयू में लड़ेगा कौन ? तपन राय ने कहा " हम लड़ते ही रहेंगे तो पढ़ेगा कौन " दोनों मुस्कुरा उठे ...दोनों की हँसी किसी ने नही सुनी....मोहब्बत की खुशबू वही जानता है जो ऐसे वक्त में होता है .....वो बातें करने लगे....महीनों की बात गुनगुनी धूप की तरह शब्दों को गर्म करने लगी....

तपन राय ने कहा "मैंने तुम्हें कई बार देखा लेकिन हिम्मत नही हुई बात करने की "

शिखा ने कहा "मैंने जब तुम्हे देखा तो मैं डरती ही रही "

तपन राय ने कहा " ऐसा नही है कि मैं कोई गैंगस्टर हूँ यार ...मेरे पास भी फीलिंग्स है "

शिखा ने कहा " हाँ वो तो मैं जानती हूँ कैसी फीलिंग्स है आपके पास जनाब"

तपन राय ने बेहद खामोशी से कहा " तुम नही जानती मेरे बारे में ...."

शिखा ने कहा " हाँ तो तुम भी नही जानते मेरे बारे में "

तपन राय ने कहा " दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा हूँ ...दोस्त बनोगी "

शिखा ने कहा " सोचेंगे "

तपन राय ने कहा " अच्छा पहले फ़ेसबुक पर रिक्वेस्ट तो एक्सेप्ट कर लेना "

शिखा उठी और चली गयी.....उसने जाते जाते कहा पहली मुलाकात में ही हमने बहुत बातें कर ली है.....अब चलना बेहतर है.....तपन राय उसे बिना पलक झुकाए देखता रहा....वो देखता रहा....उसने कहा " चाय पियोगी साथ मे " शिखा ने  कहा " नही "
तपन ने कहा " अच्छा कोल्ड कॉफी " शिखा ने कहा " नही बिल्कुल नही " अच्छा तो फ़िर फ्रूट जूस ...शिखा ने कहा " नही बिल्कुल भी नही " अच्छा तो साथ चलें हम " तपन ने कहा .....शिखा ने कहा " नही जी जा रहे हम बाए "

दोनों मुस्कुराए दोनों एकदूसरे से अलग हुए....आँखों ने उस दूरी को महसूस किया...तपन राय की खुशी हवा में घुल गयी...उसको जन्नत नज़र आई...वो ही जानता था कि वो कितना खुश है ....मोहहब्बत की खुशी वो ही जानते हैं जो करते हैं .....खैर आज दिन भर उसने ऐसे वक्त को जिया जैसे सबकुछ नया था...पूरा बीएचयू,बनारस उसे अलग सा अलग रहा था ....वो हवाओं में अज़ीब सी ताज़गी महसूस कर रहा था....

शाम में लंका पर वो आज खुशी से किसी का इंतज़ार कर रहा था....वो अपने दोस्तों के साथ बैठा था कि दोबारा आज मुलाकात हो....सनकु पाण्डेय को ये बात पता चली तो जैसे वो चुप सा हो गया....तपन राय हालाँकि सनकु को बेहद करीबी समझता है....सनकु ने उसे समझाया कि ज्यादा इस चक्कर मे मत पड़ो... तपन राय ने उसकी बात टाल दी जैसे एक अच्छा दोस्त अपने दोस्त की अच्छी सलाह टाल दिया करता है ! सनकु पांडेय वैसे खुश था की उसका दोस्त आज खुश नजर आ रहा था.... उसके मन मे क्या था....वो तो भगवान ही जाने !

शिखा आज संचिता पांडेय के साथ आ रही थी....वो उसके साथ ही कॉफी दुकान पर खड़ी थी....तपन राय उसे ही देख रहा था...वो बेहद खूबसूरत लग रही थी....वो खामोश थी...खामोश लड़कियां अक्सर खूबसूरत हो जाती हैं ....वो उदास नही थी....उसके नज़रों में भी एक ताज़गी थी जो सिर्फ तपन राय जानता था...

सनकु पांडेय ने तपन राय ने पूछा अबे कॉफी पियोगे.... तपन राय ने कहा " अबे तुम कबसे कॉफी पीने लगे "
सनकु ने कहा " अबे भाभी आने वाली है...कॉफी नही पी सकते क्या ?"
तपन ने कहा ठीक है भाई ले लो....

सनकु पांडेय दुकान तक गया और संचिता पांडेय से लग गया...वो उससे दूर हो गयी...वो दूर हो गयी और उसने गुस्सा के उसने सनकु की ओर देखा ...सनकु ने कॉफी के पुलवों को हल्का सा झटका देकर संचिता के कपड़े पर गिरा दिया...संचित ने कहा " बेवकूफ़ हो क्या "
सनकु ने कहा जानती नही हो क्या हमको ....संचिता ने कहा "तुम भी भूल ही गयी हो हमे " संचिता ने कहा " सिंकू ज्यादा उड़ो मत ....तुम नही जानते अभी ठीक से...सिंकू ने कहा तो बता दो हमें ....वो उसके काँधे से कांधा लड़ाता हुआ निकल गया....शिखा ने देखा कि वो कॉफी तपन राय के पास तक ले जा रहा था !
शिखा ने तपन राय से मुँह फेर लिया...जब तपन ने उससे पूछा अबे क्या उससे बतिया रहे थे " तो सनकु ने कहा अबे नही जानते अभी भी मेरे से वो मोहहब्बत करती है "

दोनों हँसने लगे....शिखा अपने दोस्त को रोता देखकर उसे चुप कराने लगी....

तपन ने पूछा " अबे उ तो रो रही है "

सनकु ने कहा " भाई रोयेगी नही तो क्या हँसेगी बताओ "
दोनों इस बात पर खिलखिला उठे...शिखा और संचिता चली गयी....प्रताप सिंह को जैसे ही ये बात पता चली वो पागलों की तरह सनकु को ढूंढने लगा !
तपन राय को अभी तक मालूम नही था कि हुआ क्या है...वो तो यही जानता था कि शिखा से उसकी बात हुई है...वो गाँजा उड़ा रहा था...उसकी तस्वीर उसके आँखों मे घूम रही थी...उसकी मुस्कुराहट धुओं की तरह बिखर पड़ी थी....वो नींद की ओर जा रहा था....वो उसके बेहद करीब था...बेहद करीब ...बेहद करीब ....

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प्रताप और संचिता एक साथ खड़े थे कि सनकु अपनी पार्टी लेकर तेज़ी से निकला...उसने गाड़ी पीछे मोड़ने को कहा और दोबारा उनके सामने से गुजरा....प्रताप ने उसे घूरा ....और वो इस बार सनकु ने संचिता को देखते हुए कहा....याद तेरी आती रही हर बार मुझे ....प्रताप ने उसकी ओर देखा और रुकने को कहा...सनकु तेज़ी से निकल गया....हालाँकि प्रताप के पास सनकु को मारने के कई बहाने थे लेकिन उसे ये बात समझ नही  रही थी सनकु क्यों लड़ाई मोल लेना चाहता है !

शाम को अगले ही दिन ठीक उसी वक़्त मधुबन से सनकु गुज़र रहा था.... वो बिल्कुल बगल से निकला हालाँकि उसने नही देखा कि प्रताप भी वहीं था...उसने गाड़ी रोकी और तभी प्रताप ने सीधे उसके गले को जकड़ लिया...उसकी उँगलियों में उसका गला एक मेमने की तरह मिमिया रहा था....वो कुछ कहता कि उसने एक थप्पड़ उसके गालों पर जमा दिया ...उसने कहा कि प्रताप तुम इसके लिए लड़ाई कर रहे हो जिसके बारे में तुम्हे पता भी नही....संचिता पास ही खड़ी थी ....वो चुप रही....वो गाड़ी से उतरने की कोशिश में था कि प्रताप ने तेज़ी से दो तीन थप्पड़ उसके गालों पर जमाये ....उसका चेहरा लाल था...लेकिन जैसे ही उसने दोबारा उसे मारने की कोशिश की संचिता ने आकर उसका हाथ रोक लिया...और कहा " हो गया रहने दो प्रताप ...जान ले लोगे क्या उसकी "
प्रताप ने कहा " और ये तुम्हे जब चाहे जहाँ चाहे कुछ कहता रहे "
संचिता ने कहा " ठीक है ....हो गया बहुत है इतना ...ये समझ जाएगा "
प्रताप ने कहा "मुझे लगता है तुम्हे इसकी फ़िकर ज्यादे है और ये कहते हुए एक थप्पड़ जोर से सनकु के गालों पर लगा दिया "

प्रताप वहाँ से गुस्साते हुए निकल गया....उसने गाड़ी उठायी और बिना पीछे मुडे वहाँ से निकल गया "अब वहाँ सिर्फ संचिता और सनकु था ....सनकु की आँखें लाल थी...संचिता के आँखों मे आसुँ ....संचिता ने कहा "कब छोड़ोगे तुम ये सब " सनकु ने कहा " जब तक तुम मुझे याद रखोगी " संचिता ने उसके गालों पर एक धीमा सा थप्पड़ जड़ा और सनकु ने सीधे उसकी उंगलियां पकड़ ली ...उसने दोनों हाथों को कसकर जकड़ा और ...वो उसके होठों तक आया ....वहाँ बस खूबसूरत अंधेरा था.....दोनों सालों बाद लौट आये एक दूसरे के पास.....ये सनकु पांडेय की प्रताप के खिलाफ पहली जीत थी.....और प्रताप की सनकु पांडेय से पहली हार !

रात भर प्रताप को नींद नही आई....हालांकि वो सिर्फ एक दोस्त थी...लेकिन सनकु के साथ उसकी दोस्ती है...वो नही जानता था...वो बस चाहता था कि सनकु के साथ उसकी दोस्ती अच्छी नही...शायद इसलिये भी क्योंकि सनकु से उसकी जलन साफ थी !

आज शिखा से तपन राय के मुलाकात का दिन था....दोनों मिलने वाले थे...विटी के रास्ते आईआईटी की ओर बढ़ चले थे...माहौल ख़ूबसूरत था....कल की लड़ाई के बारे में शिखा ने उससे कोई बात नही की....दोनों चुप थे और पहली मुलाकात में चुप्पियाँ जरूरी भी होती है ! दोनों ने जिंदगी की हर उदासियों का जिक्र किया....अपने वक़्त की हर कहानी कही...दोनो खुशी खुशी लौटे....लौटते वक्त शिखा ने सिर्फ इतना ही कहा "दोस्त तो बने हो बार बार लड़ाई करना छोड़ो ...."
तपन राय ने कहा " हाँ जरूरत के हिसाब इस बात पर फैसला लेंगे "

शिखा ने कहा "हर लड़ाई जरूरत ही तो है "
तपन ने कहा " नही जरुरत के लिए लड़ाइयाँ नही लड़ी जाती कभी "
शिखा ने कहा तो फ़िर किसके लिए 
तपन राय ने कहा " शायद किसी की इज़्ज़त के लिए "

दोनों ने एक दूसरे को अज़ीब सी मुस्कुराहट से विदा किया ! दोनों लौट आये  ...शाम ढल चुकी थी....मंदिर खूबसूरत नजर आ रहा था .....तपन राय बेहद शांत था..उसे मालूम था कि शायद वो सबकुछ पा चुका है !

शाम को तपन राय से सनकु मिला...उसने रोते हुए .....तपन को गले लगाया उसने कहा "की देख भाई प्रताप ने मेरे साथ क्या किया है...उसने धीरे धीरे तपन के कान भरे ....तपन भीतर ही भीतर उबल रहा था...उसके सबसे खास दोस्त को थप्पड़ थप्पड़ किसी ने बीच चौराहे पर मारा था...तपन राय उसकी बहुत इज़्ज़त दे चुका है....अब और इज़्ज़त जहर पैदा कर सकता है ! तपन राय बदले कि आग में रात भर आँखें खुली रखे सोता रहा !

रात में प्रताप ने संचिता को फोन किया लेकिन उसने बात नही की....उसने उस रात शिखा से ही बात की ....शिखा से ये उसकी पहली बात थी....लेकिन शिखा ने उसे समझाया ....और शायद प्रताप के दिल को सुकून मिला.....

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                शिखा और तपन राय इनदिनों कई बार मिले....दोनों के बीच दोस्ती बढ़ रही थी....सनकु पाण्डेय और संचिता पांडेय की दोस्ती बढ़ चुकी थी....दोनों के बीच की खाई 
पट चुकी थी....दोनों नए साथ अपनी वक़्त को जीने में लगे थे....इस बीच प्रताप का क्या हुआ ? प्रताप सबसे दूर था.. और आजतक वो दूर ही है...उसने दोबारा कभी बात नही की....संचिता ने भी कभी उससे बात करने की कोशिश नही की ! संचिता से उसकी दोस्ती अच्छी थी पर ऐसा नही था कि वो सबसे ख़ास थी उसके लिए !

इधर सनकु पांडेय जब संचिता से मिलता तो वो उससे अपने बदले की बात करता ...संचिता भी उसे आग देती और कहती की तुम प्रताप का कुछ नही बिगाड़ सकते !
एक शाम उसने यूँ ही कहा ....सनकु अपने आप को प्रताप से ज्यादा बड़ा माफ़िया मत समझो.......देखो भूल जाओ ये सारी बात ....भूल जाओ की वो कभी था...सनकु ने सीधे उसके गले पर हाथ लगा दिया कहा और ज़ोर से उसके गले को दबा दिया....उसने कस के उसके बालों को खींचा और उसके कान अपने होठों तक लाकर कहा कि "देख ब्राम्हण की औलाद हूँ... भगवान तक का कांटैक्ट है मेरा प्रताप तो तब भी बहुत छोटी चीज़ है " संचिता दूर हो गयी....उसने कहा ठीक है...उसने उसके गालों पर एक थप्पड़ मारा उसके आँखों से आसुँ आ गए ....वो उसकी आँखों के आसुँ पीने लगा....वो दूर हो गया....वो एक अजीब सी शाम थी....संचिता ने उसे बाहों में कैद किया....सनकु के साथ पता नही क्या था उसका शायस पुरानी मोह्हबत का नशा था....वो बार बार ऐसे नशे की आदि हो चुकी थी !

अगले दिन शिखा और तपन राय अस्सी पर मिले...ये एक नई शाम थी....दोनों एक दूसरे से बातें कर रहे थे...बातों बातों में ज़िक्र होता कभी सनकु...तो कभी संचिता का...तपन हमेशा अपने बारे में बात करना चाहता था इसलिये क्योंकि वो मोहहब्बत में था....वो शिखा से अपनी दुनिया के बारे में बात करना चाहता था...लेकिम शिखा ना जाने उससे अलग दुनिया की बात करने में लगी थी....बातों बातों में उसने कहा कि सनकु अच्छा दोस्त नही है....सनकु के बारे में तपन कुछ नही सुनना चाहता था.....उसने शिखा को समझाया कि देखो सनकु एक अच्छा दोस्त है मेरा तुम नही जानती... शिखा ने चुपचाप उसकी आँखों को देखा
और वो चुप रही...वो ऐसे चुप रही जैसे वो इस बारे में तपन को कुछ ना कह सकती... ना उसे लगता है कि तपन समझेगा ....

अगले दिन सनकु और संचिता दोनों मिले उन्होंने तपन राय को भी बुलाया....तपन राय वहाँ आया....सनकु और संचिता आज दोनों ना जाने उससे क्या बात करने वाले हैं.... तपन राय दोनों साथ साथ बैठे थे....की संचिता ने कहा तो  शिखा से बात हो रही है ना...तपन राय चुप रहा...वो देर तक शांत रहा...उसने कहा कि हां 
बात हो रही है....संचिता ने कहा....प्रताप से कितना बात करती है वो....तपन चुप रहा ...उसने कहा"वो क्यों प्रताप से बात करेगी.... वो अच्छी लड़की है...मुझे विश्वास है....संचिता ने कुछ नही कहा ! तपम राय ने सनकु की ओर देखा...दोनों की निगाहें मिली...दोनों ने अज़ीब सी मुस्कुराहट शेयर की....इसमे ढेरों राज़ छिपे थे....

तपन राय आज मंदिर आया और महादेव को देखते हुए बोला कि मैं अपनी दुनिया बदलना चाहता हूँ ....वो जोर से चिल्लाया किसी ने उसकी आवाज़ नही सुनी वो शांत होकर मंदिर देखने लगा !

#8

बीएचयू और बनारस में वक़्त बर्फ की तरह पिघलता है ! ये शहर मोह्हबत का शहर है ! ये शहर नशे का शहर है ! ये शहर बेफ़िक्र लोगों का शहर है ! यहाँ अनुभव की नयी कहानियाँ हर रोज़ लिखी कही जाती है !जिंदादिली इस शहर के खून में है ! शहर तब और खूबसूरत लगता है जब आप इश्क़ में होते हैं ! तपन राय और शिखा सिंह अपने नए वक़्त में घुलने लगे हैं ! वो धीमे धीमे ही सही 
ये समझने लगे हैं कि उनकी दुनिया मे ढेरों रंग ऐसे थे 
जिसे वो अब जानने लगे हैं ! तपन राय अभी भी दो दुनिया ज़ीने में लगा है और ये उसके लिए काफी मुश्किल रहा है इसलिए क्योंकि वो हर बार शिखा से झुठ कहता है कि वो अब ये सबसे दूर रहने वाला है !
इंसान हर बार अपने जाल खुद से तय करता है और उसमें उलझ जाता है ...हर बार वो इस जाल से बाहर निकलने की कोशिश में लगा है.. लेकिन असफल रह जाता है ! 

आज रात को वो अपने गैंग के साथ अपने वक़्त को जी रहा था..लाल आँखें लिए हुए धुओं के बीच ढेरों बातें कही सुनी जा रही थी....तपन राय बेहद शांति से चुपचाप होकर सुन रहा था कि तभी सनकु ने पूछा "का बे आजकल जब पीते हो भौजाई याद आती हैं,अभी एक महीना पहले तो कोई याद नही आता था "तपन राय ने कहा " अबे तो उस समय तक चढ़ा नही था ना "
सारे दोस्त हँस पड़े ! तपन की भी हँसी निकल गयी...सनकु ने कहा कि अबे चलो घूम के आया जाए...तपन जाना नही चाहता था....हालाँकि वो गया और दोनों साथ गाड़ी से निकले.... सनकु उसे घाट ले गया....आराम से बैठे दोनों और उसी आराम में फ़िर से लाल धुँआ आँखों मे उतरने लगा....सनकु ने पूछा "अबे इतना बड़ा माफ़िया बनते हो ,तुम्हारे दोस्त को बीच चौराहे पर मारा और तुम चुप हो बे "तपन राय उसकी आँखों मे जलन देख सकता था .... लेकिन उसने कहा "अबे तो क्या करें बताओ गोली मार दें उसको ! सनकु ने कहा "आज नही तो कल हम तो गोली मारेंगे ही " !
तपन राय हँसने लगा .....हँसते हँसते उसने कहा "संचिता को तो हड़प ही लिए हो ....जीत ही गए हो संचिता को अब क्या चाहते हो बताओ " सनकु ने कहा अबे जीते नही है बस वो प्रतपवा के लिए करना पड़ता है ! अबे तो फिर धोखा दोगे उसे क्या तपन ने पूछा ....सनकु मुस्कुराया और चुप रहा !! उसने कहा कि वक़्त आने पर सब पता चल जाएगा तुम्हे भी .....तपन राय ने सीधे उसका कॉलर पकड़ लिया...देख सनकु मैंने तेरे साथ कुछ गलत नही किया कभी सोचना भी मत गलत कुछ....सनकु की आँखों मे आसुँ थे उसने कहा "देख भाई अब तुम भी यही कहो "
दोनों चुप होकर लौट आये .....दोनों कुछ दिनों तक शांत रहे और कोई बात नही हुई !

इस बीच सनकु पांडेय और संचिता अपनी दुनिया मे लगे हुए थे !सनकु ने उससे यूँ ही पूछा "प्रताप का क्या हाल है" संचिता ने कहा "पता नही अब बात नही होती "
सनकु ने कहा "तो पता करो आजकल क्या कर रहा है "
संचिता ने कहा "शिखा से तो बात होती है अब वही जाने " सनकु ने आश्चर्य करते हुए पूछा "क्या सही में बात हो रही है " संचिता ने कहा " हाँ बात तो हो रही है अब पता नही क्या बात हो रही है ! सनकु ने कहा दोनों एक जैसी हो...पुरानी बहन तो नही हो "संचिता ने कहा चुप भी करो ....सनकु ने उसे थोडा और करीब लाया....
बस चुप्पियाँ ही रह गयी थी....शाम ढल गयी.........!

प्रताप चाहकर भी दूर नही रहा था ! उसने कोशिश की थी कि बात हो पर संचिता ने कभी बात नही की ! शिखा से ही उसकी बात होती .......ये सब धीमे धीमे चल रहा था..ये वक़्त प्रताप का एक बुरा वक्त था....अब वो बिखर रहा था....बेचैन सा रहता था....वो लड़ाई में भी जाने लगा था....वो तेज़ी से हर मुद्दे पर अपनी राजनीति कर रहा था ....वो एक नए वक़्त की ओर बढ़ रहा था...जहाँ से वापस लौटना हमेशा आसान नही होता !

                                     9

प्रताप अब बेफ़िक्र होकर घूमता ! पुराने दोस्त के साथ मिलकर एक नयी ज़िंदगी जीने लगा था ! प्रताप कभी ऐसा नही था...ये शायद उसके भीतर का इंसान था !
प्रताप ये सब संचिता या किसी और कारण से नही कर रहा था इसके पीछे उसकी अपनी वजह थी...प्रताप से ढेरों सीनियर्स ,ढेरों मठाधीस मिले थे ,ढेरों नए लड़के ढेरों बाहरी लड़के मिले थे जो उसके लिए कुछ भी कर सकने को तैयार होंगे ऐसा कहते थे ! प्रताप के लिए ये नया नही था बस नया था तो इतना कि वो अपनी ज़िंदगी बदलने वाला था ! जब भी आप ऐसा काम करते हैं भीतर की पूरी इक्षाशक्ति इस काम मे लगानी होती है !

प्रताप आज मधुबन में बैठा था....एक लड़के-लड़कियों का जोड़ा वहाँ बैठा था...कुछ लड़के वहाँ बैठे उनपर फब्तियां कस रहे थे ....प्रताप वहीं था बहुत देर से ये सब सुन रहा था ....वो उठा और जाकर उन लड़कों से पूछा ....कहाँ के हो बे ? लड़को ने उसे देखते ही कहा "बिड़ला के हैं " प्रताप ने कहा " कौन से बिड़ला में हो "
लड़को ने कहा " भाई बिड़ला तो बिड़ला है वहीं रहते हैं" प्रताप ने कुछ देर देखा और फिर पूछा "कहाँ पढ़ते हो " उन्होंने कहा " आर्ट्स फैकल्टी " ! प्रताप ने पूछा "अच्छा भाई लाल की दुकान जानते हो " उन्होंने कहा "हाँ भाई कौन नही जानता वहीं उठना बैठा है अपना.. विटी पर है " ! प्रताप ने इतना सुना है कि उनके गालों पर पाड़ से एक थप्पड़ लगाया ....लडको ने कहा "भाई जान नही हो हमको....प्रताप ने तीन चार थप्पड़ लगाया... और लड़के भाग खड़े हुए !

शाम में प्रताप को फ़ोन किया....किसी बड़े नेता का था जिन्होंने कहा " अबे काहें मारे हो उनको दिमाग खराब है " ! प्रताप ने कहा "भैया जो करना है कर लीजिएगा "गलत किये होंगे तब ना "! फ़ोन कट गयी ....! इनदिनों ने प्रताप भी खूब दुश्मनी निभा रहा था !!

तपन राय का गैंग छिटपुट घटनाएं खूब करता ...उसके गैंग में नशा सबसे बड़ा कारण था...नशा करके अक्सर कैंपस में किसी को मार देना किसी को पिट देना भाग जाना....लड़ाई स्तर देखकर नही की जाती बस लड़ाई की जाती...बिना  किसी वजह के की जाती...हर दिन नयी लड़ाई में रहने से इनको फायदा होता क्योंकि पुरानी लड़ाई हर रोज़ नशे की तरह पुरानी होकर किस्सा बन जाती है ! जिसपर वो सब हँसते ....उनके गैंग के पास ढेरों कहानियाँ होती ....ये कहानी सबतक पहुँचती ....प्रॉक्टर से लेकर प्रोफेसर्स तक ! हॉस्पिटल के बारे में कोई भी जानकारी .....दलाल से लेकर दवाई तक और डॉक्टर से लेकर हर चैम्बर तक ...इनका नेटवर्क था ! वो अब चुभते थे प्रशासन की नज़रों में ...लेकिन वक़्त बीत रहा था...और बीतता जा रहा था !

सनकु पांडेय उनके टीम का लीडर था...हालाँकि वो सारे काम तपन राय के नाम पर करता...सनकु बस तपन के नाम पर अपना नाम पिटता...बहुत दिनों बाद 
उनकी बातचीत शुरू हुई थी ....सनकु चाहकर भी तपन को गलत नही कह पाता क्योंकि सबकी नज़रो में सनकु से ज्यादा विश्वासी तपन राय था ! प्रताप तेज़ी से अपने गैंग के साथ नाम कमा रहा था... तपन राय के साथ उनकी लड़ाई छोटी-बड़ी आम थी ! अक्सर ऐसे मुद्दे सनकु सम्भाल लेता ....प्रताप और तपन कभी नही मिलते...कभी बात भी नही करते....दोनों के बीच एक घमंड की पतली सी दीवार थी !

शिखा इनदिनों प्रताप के साथ कभी कभी घूमने लगी थी...कभी लाइब्रेरी कभी अस्सी मिल लेती .....ये बात तपन को मालूम नही होता...नाही सनकु ने उसको कभी नही बताया...प्रताप शिखा से बातें करता था..क्योंकि शिखा उसके प्रति ईमानदार लगती थी ! तपन राय हर बार प्रताप के बारे में पूछता लेकिन प्रताप किसी के बारे में बात नही करता वो सिर्फ शिखा से उसकी बात करता था...एक लडक़ी हमेशा दुनिया से ज्यादा अपने बारे में सुनना चाहती है ! प्रताप उसकी आँखों मे नयी तस्वीर बना रहा था ! शिखा ने कभी तपन को मोह्हबत की निगाह से नही देखा हाँ वो उसके साथ रहती क्योंकि तपन राय उसके साथ दोस्ती करना चाहता था...कभी कभी एक लड़की किसी की खुशी के लिए भी किसी के साथ रहती है...बिना मोहहबत बिना रिश्तों के पहचान के वो साथ रहती है !

तपन राय इनदिनों शिखा से मिला तो था लेकिन उसकी बात नही हुई थी....वो मिला नही था...आजकल वो अपनी ही दुनिया मे था....लेकिन इश्क़ उसकी आँखों मे चढ़ा हुआ था....वो हर दिन,हर वक़्त शिखा के इंतज़ार में होता....शिखा उसके लिए सबकुछ थी ! हर मुसीबत में सबसे पहले तपन आता .....तपन शिखा के साथ जीना चाहता था...शिखा से उसने इस बारे में कभी नही पूछा लेकिन उसे लगता था कि शायद अगर वो सच्चा हो तो उसका प्यार जरूर उसे मिलेगा !

सनकु को रात में एक फ़ोन आया ,उसे दुर्गाकुंड बुलाया गया.....सनकु को ये भी कहा गया "रे सनकुवा तपनवा को भी ले आना " सनकु को ये बात चुभती लेकिन वो इसे सहते रहता .....रात के दो बजे तपन राय और सनकु पांडेय दुर्गाकुंड आये साथ मे तीन दोस्त और भी थे....दोनों जाकर एक भैया से मिले जो बीएचयू में ही किसी वक़्त के छात्र-माफ़िया हुआ करते थे....नाम था "बच्चु पटेल "....अभी भी कैंपस में थे लेकिन सिर्फ अब हुई लड़ाइयों का सेटलमेंट करवाते थे ....उन्होंने कहा "रे सनकुवा कौन था बे ....जिसने मारा है आज मधुबन में..." सनकुवा ने कहा " भैया प्रतपवा है और कौन होगा ! बच्चु जिसे अपना नाम बिछू सुनना ज्यादा पसंद था कहा " अबे तपन जानते हो कौन था ...."  !
तपन राय ने कहा "न भैया नही जानते उसको " ! सनकु उसकी ओर देखने लगा ....लेकिन चुप रहा ! बिछु ने कहा " सनकुवा बस तुम इतना बताम दो कहाँ मिलेगा गोली मार देंगे शाले को...शाले ने मेरे भाई को मारा है "

सनकु को जैसे अपनी इज़्ज़त का अहसास हुआ...उसने कहा भैया "कल दस बजे भाई लाल की दुकान " ! बिछू ने कहा " किसी को बात नही मालूम होनी चाहिए ध्यान देना " ! तपन राय ये सब सुन रहा था "उसने कहा भैया कोई दिक्कत नही होगी....आपको जो करना है करिये "

सनकु को कुछ समझ नही आया कि तपन राय क्या कहना चाह रहा है शायद इसलिए क्योंकि " जब एक भूमिहार सोचता है तो शायद ही इसका अर्थ कोई समझ पाता है ... "
         " एक भूमिहार भी नही जानता कि एक भूमिहार क्या सोचता है "


                                     10

बस रुकी....आवाज़ देती तेजी से दूर नज़र आयी..शांत सी धूप उतरने वालों के चेहरे ने ओढ़ लिया...हवा हर रोज़ के बोझ से उदास होने लगी थी...भाई लाल के दुकान पर प्रताप बैठा हुआ था....वो बैठा हुआ था और किसी के इंतज़ार में था...बहुत देर होने की वजह से उसका मन ऊबने ही वाला था कि शिखा तेजी से उसकी ओर आ रही थी....दोनों ने एक मुस्कुराहट बाँटी .....वो आयी और बैठ गयी....शायद उसे कुछ नोट्स लेना था...लड़कियाँ अक्सर नोट्स, किताब के बहाने से मिला करती हैं ! सुबह की धूप वैसे ही उनके पुलवों में घुलकर गर्म होठों तक आ रही थी .... शिखा ने हाल चाल लेने के बाद पूछा " पढाई करने लगे हो " प्रताप ने कहा "पढाई करता तो नोट्स तुम्हे क्यों देता " शिखा ने कहा नही अगर तुम कहो तो हम पढा दिया करें ! प्रताप ने कहा " नही नही पढ़ना है अभी तो बस जैसा चलता है चलते रहने दिया जाए !

वो बात कर ही रहे थे कि किसी अनजान नंबर से उसे फ़ोन आया ....आवाज़ बस इतनी थी कि भाई जहाँ हो वहाँ से चले जाओ " ! प्रताप ने कहा "अबे कौन हो तुम " !
दोबारा वही आवाज़ आयी "भाई बता देंगे कि हम कौन है लेकिन वहाँ से भाग जाओ " ! फ़ोन कट गया और दोबारा फ़ोन नही आया ! शिखा ने उसे परेशान देखकर पूछा " क्या हुआ प्रताप ? " ! प्रताप ने कहा कुछ नही बस किसी का फ़ोन था ....मुझे पता नही ऐसा क्यों लग रहा कि शायद तपन राय था ...ये आवाज़ जानी पहचानी सी थी....वो कुछ सोचने लगा !

अचानक से गाड़ी से दस लड़के आये ....मुँह बाँधे
हुए....उन्होंने प्रताप की ओर देखा सीधे उसकी ओर आये...सबने उसे घेर लिया...शिखा चाय के पैसे दे रही थी...किसी ने जोर से उसे चिल्लाकर कहा " भोसड़ी के तुम भेंटा ही गए " ! प्रताप ने उसका कॉलर पकड़ लिया...और उसकी दो उँगलियों को मोड़ दिया...इतना ही हुआ था कि प्रताप पर तरातार लाठियाँ बरसने लगी...वो कुछ देख पाता कि उसपर दस लड़के टूट पड़े...उसको बेहद बुरी तरह घायल किया गया...और सब उसके मुँह पर थूकते चले गए ! 

शिखा चीखती हई उसके पास आयी...वो एम्बुलेंस के साथ गयी...उसकी साँसे फूल रही थी...खून सर से बह रहा था...दो दोस्त भी उसके साथ थे... प्रताप जोर से शिखा की उँगलियों को पकड़ कर चीख रहा था...गाड़ी हॉस्पिटल आयी...प्रताप को तेजी से भरती किया गया...कुछ ही देर में ढेरों लड़के भर गए...शिखा अकेली थी...किसी ने उसे जाने के लिए कहा....वो चली गयी !

तपन राय को शाम तक कोई ख़बर नही थी कि आखिर क्या हुआ...उसका मोबाइल ऑफ था...और वो कैंपस में था भी नही...उसे शाम में शिखा से मिलना था...ये उसका जन्मदिन था ....शिखा ने वादा किया था कि शाम में अस्सी पर मिलेंगे....तपन अस्सी बैठा था....और बहुत देर तक इंतज़ार करता रहा......दो घण्टे बीत गए....वो रास्ते की ओर देखता रहा कोई नही आया....वो देखता रहा और उदास होकर वापस कैंपस लौटने लगा ! वो हॉस्पिटल के रास्ते से हॉस्टल चुपचाप लौटने लगा.... ! शिखा डरी हुई थी....उसने दिन भर कुछ नही खाया...वो उदास बैठी रही...प्रताप से एक बार फिर मिलकर आयी....वो भूल गयी कि कोई उसका इंतजार कर रहा था....शायद वो जानकर भूल गयी हो !

सनकु ने तपन राय से मिला...उसको गरियाते हुए वो मिला....बोला हैप्पी बर्थडे भोसड़ी के ...तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट....ये है कि प्रतपवा मरा गया....! तपन के जैसे आंख खुली रह गयी....वो अबाक रह गया...उसने पूछा कहाँ मराया वो .....सनकु ने कहा "उसी के अड्डे पर "!
तपन बाहर ही खड़ा था....सड़क पर दोस्तों ने टेबल लगा दिया ......केक कटा... तपन के हाथों का पहला केक सनकु ने खाया....सनकु ने उसको गले लगाया "कहा कि भाई तेरा बर्थडे बहुत लकी रहा रे " ! 
तपन सबके साथ बैठा था... सारे के सारे दोस्त उस मार की कहानी का ज़िक्र कर रहे थे.....सबकी आँखे लाल थी....सबकी आँखों मे नशा था !! 

सनकु और वो लंका तक आये.......सनकु ने उससे कहा " अबे मराया तो ठीक था लेकिन शिखा वहाँ क्या कर रही थी .....शिखा तो हॉस्पिटल तक गयी थी बे " !
सनकु की बातें उसके मन को चोट कर रही थी....वो उदास आंखों से ये सब सुने जा रहा था...वो ये सब सुन रहा था ...उसकी आँखें लग रहा था कि फट जाएंगी...वो चुपचाप निकलकर अस्सी चला गया.....वो अस्सी गया और जाकर रेत पर लेट गया...रात गहरी थी...बस सन्नाटा था...वो जोर से चीखा .....वो जोर से चीखा और उसकी आँखें आसुंओं से भर गयी....भरे गले से वो चीखता रहा....वो ये सोचता रहा ! और उसकी आँखों मे शिखा जितनी आ रही थी...उससे ज्यादा प्रताप आ रहा था ! ये उसकी सबसे बड़ी हार थी.....शिखा को लगातार फ़ोन करने के बावजूद भी अगले दिन भी नही मिली....... !


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आज एक महीने बाद भी दिन में एक बार तपन राय शिखा को फ़ोन लगा ही देता है...भले कोई जवाब आये ना आये...कभी फ़ोन की घंटी बजती है .....तो कभी सिर्फ एक चुप्पी सुनाई पड़ती है...ढेरों मेसेज आये हैं...शिखा उस दिन के कुछ दिन बाद से ही घर पर है...शायद आज ही वो लौटी है...और लौटते ही बीएचयू में फ़िर से वही यादें उसे घेर लेती है....उसे घुटन सी होने लगी है ...कभी कभी उसे ये सब एक कैद लगता है..उसे ख़्याल भी नही की आख़िरी बार किसने उससे उसका हाल पूछा था ? उसका इश्क़ किसी को संभालते ही गुज़रा है यही उसका सच है...वो अपनी कहानी में हर बार अधूरी ही रही है...कभी कभी हम ज्यादा अच्छे बनने के चक्कर मे सबसे बुरे बन जाते हैं...शिखा के साथ भी ऐसा ही था ! वो इनदिनों प्रताप से ही बात करती रही ....और शायद ही उसने किसी से तपन का ज़िक्र किया....प्रताप और शिखा किस्मत से ही सही मगर करीब तो थे ही....करीब होने का मतलब मोहब्बत ही तो नही होता ना ! प्रताप भी उसका ख़्याल रखता ....बहुत दिनों तक वो भी घर ही था....वो भी लौट आया है ! जनवरी का महीना है....हवा में नमी साँसों में चुभती है तो कोई याद आ ही जाता है...पुराने दर्द चटक उठते हैं...पुराने लोग याद आ जाते हैं ! 

प्रताप और शिखा आज फैकल्टी के रास्ते से गुज़र रहे थे...कैंपस में उस वक़्त अंधेरा आ ही रहा था...लाइट की रौशनी के किनारे उनके कदमो के साये साथ साथ चलते कभी कभी उंगलियाँ उँगलियों से टकराती तो दूरी बढ़ जाती...दोनों खुश थे और शायद ऐसा था कि जैसे 
दोनों एक साथ आगे बढ़ जाने को तैयार हैं ....लेकिन अतीत किसी का पीछा नही छोड़ता ....ना चाहते हुए भी तपन उसकी आँखों मे चुभता था....पहली मोहहबत ,पहला दोस्त,पहली लड़ाई कौन भूलता है भला ! शिखा और प्रताप दोनों ने ढेरों बातें की... दोनों ने मुस्कुराहट शेयर किया ....और कल फिर मिलने के वादे के साथ विदा लिया !

सनकु पांडेय ये बात जानता था कि कभी ना कभी तो मालूम चलेगा ही ....कभी ना कभी तो प्रताप अपना बदला लेगा ....वो राजपूत ही क्या जो किसी का अहसान और बदला ना पूरा करे .......वो जानता था कि वो नही तो तपन जल्द ही पकड़े जाएंगे ....वो जानता था कि उसके पास एक ही हथियार है और वो है संचिता 
जिसका उपयोग वो सही समय पर कर सकता है...वो संचिता से इस बारे में बात करता रहता ...संचिता ने भी उसका साथ देने की बात कही थी ! 

इस बीच तपन राय अपनी दुनिया में जी रहा था...ना वो घर गया....नाही वो अब कहीं जाता था...वो इस दूरी में जल रहा था...जिसके लिए वो पूरी दुनिया छोड़ सकता था...अपना सबकुछ छोड़ सकता था....आज वो एक बार बात नही करती...तपन अब खुद की नज़रों में गिर रहा था....उसे बेचैन कर रही थी ये बातें ! हालाँकि वो कर भी क्या सकता था...जब शिखा खुद ही उससे बात करने को तैयार नही है ! वो बस चाहता था कि एक बार सिर्फ एक बार वो शिखा से बात कर ले ! वो अपनी सारी बात कह देता...वो सारे राज़ कह देता ....वो अपनी पूरी सच्चाई कह देता ....लेकिन उसका इंतजार अभी तक सिर्फ एक इंतज़ार है !

सनकु और संचिता से आज तपन मिला...और मिलते ही उसने संचिता के सामने हाथ जोड़ लिए... उसने कहा सिर्फ एक बार मेरी उससे बात करवा दो...वो जो सोच रही है वैसा कुछ भी नही है....संचिता ने उसे संभलने को कहा....उसने ज़ोर से कहा कि "बच्चो की तरह रो रहे हो जिसके लिए पता भी है वो किसके साथ घूम रही है....सनकु ने इशारों में संचिता को शांत रहने को कहा ! तपन ने उसकी आँखों मे आँखें डाल कर कहा "वो मुझसे सच्ची मोहहब्बत करती है और मैं भी इतनी आज़ादी तो है ही उसे की वो किसी से भी बात करते " ! संचिता मुस्कुराई और उसने कहा ...."बाह रे तूम्हारी मोह्हबत यहाँ खुदें आशिक़ रो रहा है और महारानी हैं कि किसी और के साथ गुल खिला रही है "!
तपन ने कहा " कुछ गलतियाँ हैं....वो जल्द ही खत्म होंगी...वो मुझतक लौट आएगी...ये मेरा विश्वास है...वो मुझतक लौट आएगी... हां लौट आएगी ! तपन खुद से ही बात करते करते लौट गया.... ! 

तपन आजकल बेवकूफ जैसी हरक़त करने लगा था...एक ही तरीके की बात दिमाग मे रहने से इंसान अक्सर मानसिक रूप स बीमार पड़ जाते हैं....तपन को कई बार डॉक्टर के पास भी ले जाया गया...दवा से भी कोई असर नही हुआ...तपन आधी रात को घूमने लगता....किसी दिन-रात सोया रहता...कभी कभी अकेले ही रातों को घूमने लगता.... उसको दोनों बात बराबर चोट करती ....एक तो ये की शिखा उसे ऐसे कैसे भूलकर प्रताप के साथ दोस्त हो गयी है...दूसरी बात ये की प्रताप के साथ जो भी बुरा हुआ और उसका गुनहगार वो खुद अपने आप को मानता था ! शिखा उसे इनदोनो के लिए जिम्मेदार समझती थी....और यही वो कारण था कि वो मिलकर सब बात समझाना चाहता था !

संचिता आज शिखा से मिली....उसने सारी बात बताई हालाँकि उसे ये बात नही पता थी कि तपन हर दिन एक कॉल ,एक मैसेज उसे करता है....! उसने कहा "तपन आज मिला था..तूमको पता भी है क्या हालत बना ली है उसने ना खाता है,ना पीता है ...पागल सा हो गया है...क्यों नही मिल लेती हो एक बार....! शिखा ने कहा "मुझे उससे कोई मतलब नही ...नाही मैं उससे बात करना चाहती हूँ और तू क्यों बात कर रही है तुझे क्या प्रॉब्लम है....सनकु से मन भर गया क्या तेरा ....एक महिला सबसे ज्यादा तब ग़ुस्साति है जब कोई उसके करैक्टर पर सवाल खड़ा करता है " ! संचिता ने हालाँकि कुछ भी नही कहा क्योंकि वो जानती थी कि शिखा खुद परेशान है " ! एक औरत से ज्यादा एक औरत को कोई नही समझ सकता ....एक पुरुष आज भी उनकी दुनिया से दूर बेहद दूर है ! शिखा हालाँकि खुद ही कभी कभी तपन को याद करती है...वो उस शाम जब उसने कहा "जब वो उसके लिए सबकुछ छोड़ देगा ....वो याद करती है वो अस्सी की शाम जब वो उसके साथ जिंदगी की बात करने लगा था....वो उस शाम को याद करती है जब गलती से ही सही लेकिन तपन के काँधे पर अपना सर रखा था .....कैसे भूलेगी इतनी जल्दी की उसने हर महीने हर दिन उससे बात करने की कोशिश की लेकिन ये भी वो नही भुलेगी वो ये भी की कैसे उसने मेसेज में ही सही ये बात कहा की "तुम्हे प्रताप हमेशा से अच्छा लगता था तो मुझे क्यों बर्बाद किया है तुमने " वो नही भूल सकती ये भी की जिसकी खातिर वो ख़्वाब देखती थी " उसी ने एक झटके में बेइज्जत किया....और तो और प्रताप को भी मरवाया "......ये सब उसकी आँखों मे चुभता रहता...कभी आँसू आते भी तो उसे पता नही चलता कि आख़िर वो रोयी क्यों है ? हर  प्रेम विश्वास के बगैर अधूरा है जो वो जानती थी लेकिन फ़िर भी बार बार....


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               इतना भी इंतज़ार सही नही होता। इश्क़ में घाव बन जाता है....लोग उदास हो जाते हैं कुछ महसूस नही होता ....बातें याद आती है तो दूरियाँ चुभती है...सीने में पत्थर जम जाता है...कभी कभी शिखा रातों को अकेले बैठ के चुपचाप पुरानी तस्वीरें देखती है...उसे महीनों के किस्से याद आते हैं...वो बेचैन हो उठती है...एक सुखी नदी सी सूखे आसमान को ताकती है फिर लौटकर सो जाने की कोशिश में हर रात जागती है....वो जब सालों पहले यहाँ आयी थी...तो उसने सोचा था सिर्फ इतना कि कोई उस जैसा ही मिले...लेकिन किस्मत खुद जैसे इंसान से एक दूरी अक्सर रखती है....ऐसा हर बार तो नही होता पर अक्सर होता रहता है ! बनारस इश्क़ का शहर है यहाँ रोज़ कहानियाँ किसी मोड़ पर रुककर किसी के इंतज़ार में आगे नही बढ़ती और अतीत के धूल उसपर जम जाते हैं...ये कोई ख्वाब नही है हक़ीक़त है...हक़ीक़त ये भी है इश्क़ किस्मत पर निर्भर करता है...सच्चाई पर नही...हर सच्चा इंसान जरूरी नही की हर बार वो जीत ही जाए ! 

"जरूरी नही की हर बार इश्क बनारस में जीत जाए "कभी कभी ये टूट कर औंधे मुँह गिर पड़ता है...लोग आगे बढ़ जाते हैं...पीछे सिर्फ यादें रह जाती हैं...सबकुछ वक़्त के साथ धुंधला पड़ जाता है...हम सालों बाद भी महफ़िलो में गाहे गाहे इसको याद करके खुश होते हैं कि चलो कम से कम वो वक़्त अच्छा था !
हालाँकि इस वक़्त में शिखा बिखर चुकी है...इतनी की ना वो हार कर लौट सकती है...नाही वो हारी हुई रह सकती है...वो जानती है कि दिमाग इश्क़ को कई हिस्सों से तौलता है जिसमे सबसे जरूरी हिस्सा ईगो का है...ईगो के कारण रिश्ते टूटते हैं और जुड़ नही पाते कभी !

शिखा ये बात किस्से कहे वो कहे भी तो किस्से ...तपन जो उसके लिए हर दिन मर रहा है...हर दिन जल रहा है...उससे कहे भी तो क्या कहे....कहे भी तो क्या ये की"तुमने मेरी मोह्हबत को अधूरा समझा " और वो कहे भी क्यों क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वो कमजोर पड़ती जा रही है...नही वो कमजोर नही है वो आधी रात में सन्नाटों को झाँकते हुए चीखती है...आवाज़ उसके दिल के रास्ते से होते हुए आँसुओं में कैद हो जाती है.......

सुबह के वक़्त प्रताप उससे मिलने आया है....दोनों सुबह की धूप में अस्सी तक गए है...शाम हो या सुबह अस्सी पर सिर्फ मोह्हबत की जगह ही तो है...बनारस ज़िंदा है क्योंकि यहाँ अस्सी जैसी जगह है...वो बेहद खामोश है....वो दूर से आती ठंडी हवाओं को महसूस कर पा रही है...प्रताप ने पूछा भी है "क्यों उदास हो इतना " ! वो कुछ नही कहती है अक्सर लड़कियों के कुछ नही में बहुत कुछ छिपा रह जाता है ! वो पलक झपकाए गंगा को देखी जा रही है...और वो देखती है नदी अपने प्रेम के लिये एक लंबी यात्रा करती है...ना जाने कितने किनारों को छोड़कर वो अपनी मंज़िल पाती है ..हर कोई ऐसा नही सोचता वो सिर्फ किनारों तक ही रह जाता है.....! प्रेम एक यात्रा है ! प्रताप ने भी उसकी चुप्पी समझी दोनों लौट आये...लौट आये...कभी कभी लौट आना भी सुकून देता है !

तपन राय पागल होता जा रहा है....दिन रात नशे से उसकी आँखें घाव बन गयी है....दिन भर कमरे में सोना...ना किसी से मिलना ....ना किसी से बात करना....बेवकूफ सी हरकत करना उसकी आदत बन चुकी है...घर से महीनों से बात नही हुई है...उसके दोस्त उसका हाल चाल तक नही लेते...बस सनकु आता है...जो कि उसका सच्चा दोस्त है...उसकी हालत पर सनकु हर बार रो देता है....वो चीखते डांटते हुए उसे खाना खिलाता है....तपन एक कमजोर इंसान सा हो गया है....मार पीट से दूर रहने लगा है लेकिन प्रताप उसकी आँखों मे चुभता है...वो प्रताप के साथ बदले कि बात करता है लेकिन उदास होकर चुप हो जाता है क्योंकि उसे अपने ही वक़्त पर उदासी लगती है...वो थक कर शिखा को याद करता है और मोबाइल हाथ मे कसकर रखता है...दूर फेंकता है...आँखों मे चटक आवाज भर आती है...आँखों मे पानी सा महसूस होता है !

प्रताप सनकु को पागलों की तरह ढूँढता है...सनकु का नेटवर्क अच्छा है...उसे प्रताप के हर लड़को की जानकारी है..वो कहीं भी रहता है यही कहता है "अबे वो मुझे क्या ढूँढेगा मैं खुद उसे ढूंढ रहा हूँ....कहता है कि शाला एक बार मे नही तो दो बार मे समझाऊंगा लेकिन औकात दिखा दूंगा " हालाँकि सनकु बच कर रहता है...सनकु कमजोर है किसी चौराहे पर मरा सकता है जो कि उसकी इज़्ज़त पर दाग भी है...लेकिन सम्भल कर चलना भी जरूरी है ! वो जानता है कि प्रताप उसे ढूंढ लेगा .....वो ये भी जानता है कि इस बार
तपन उसका इस बार साथ देगा ही देगा....सनकु अभी किसी नेता की तरह ज़िंदगी बिताता है...समपर्क का जाल तेज़ी से फैल रहा है...उसकी आँखों मे चमक बढ़ती जा रही है....वो चाहता है कि सिक्का उछले तो दोनों ओर सनकु आये....सनकु अपने आप को किंग समझता है और किंगमेकर भी...हर मुद्दे पर अपनी पैठ रखता है....हर मैटर का इकलौता मास्टर ! 
प्रताप को जब भी जानकारी मिली है अधूरी ही मिली है..सनकु गलत जानकारी देता है और परेशान करता है...प्रताप को उसे ढूंढना इतना भी मुश्किल नही है लेकिन सनकु उससे जीतता रहा है....प्रताप सनकु से हर दिन हारता है...उसे इस बीच तपन की कोई फिक्र नही....उसे सिर्फ अपने बदले से मतलब है...वो इस आग में जलता रहता है....वो अपनी टूटी हुई उँगलियों को देखता है जो कि किसी बूरे सपनो की तरह उसके 
शरीर पर चुभता है....सनकु को पता है ये बात और वो अब हारकर तपन राय के साथ एक प्लान बनाता है...तपन राय ने भी इशारों में हाँ कहा है ....दोनों कई दिनों बाद अस्सी आये है...अंधेरा है.....एक मैसेज तपन राय के मोबाइल में आता है....ये शिखा है....उसकी आँखों मे आसुँ आ जाते हैं....वो अपने मोबाइल को बगल रख देता है...और गाँजे की एक लंबी फूँक उसके कलेजे को भर देते हैं...कुछ महसूस नही होता....कोई दुख कोई प्रेम कोई याद कोई वक़्त कुछ भी याद नही आता...नशा इसलिए तो लोग करते हैं...एक धुँआ उसकी आँखों से अभी अभी गुज़रती है...सामने गंगा धुँधली पड़ जाती है...वो औंधे मुँह रेत पर वहीं गिर पड़ता है...सनकु दौड़ के उसके पास तक आता है...सनकु चीखता है "अबे तपन....तपन ....तपन... सनकु उसे अपने दोनों पैर पर रखकर ज़ोर से चीखता है..उज़के आवाज़ से कराह निकलती है ...कराह गंगा पार तक सुनाई पड़ती है...

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सनकु की चीख गंगा उस पार से लौट आती है....तपन राय उसके पास लेटा बेहोश पड़ा है....तपन राय की साँसे चल रही है और हॉस्पिटल तक पहुंचा है....इस बीच सारे दोस्त वहाँ पहुँचे है...तपन राय के साथ सनकु पागल होकर इधर उधर किसी से उलझ रहा है...सनकु तपन राय के साथ ही कमरे में रहता है...डॉक्टर के मना करने के बावजूद वो डॉक्टर के पास खड़े रहता है...हेल्थ कार्ड माँगते ही पीछे से सैकड़ो लड़के चिल्लाते हैं...हॉस्पिटल में शांति पसरी है....सब लोग शांत से पड़े हैं...तपन राय की आँखे गड़ी हुई....सीना सूखा हुआ...हड्डियाँ गली हुई ....बड़े बड़े बाल...बड़ी बड़ी दाढ़ियाँ ....गंदे कपड़े ....

और इसी बीच डॉक्टर उसे देखते हुए कहता है...दिमाग पर झटका आया है...स्ट्रोक है...एक बार और आया तो कोमा में चला जायेगा....सनकु के पाँव थर्रा उठते हैं...सनकु अपने सर पर हाथ फेरता है और वहीं ज़मीन पर लेट जाता है...सनकु रात भर वहीं लेता रहता है...बारी बारी से हर दोस्त चले जाते हैं....सनकु तपन राय के साथ दो साल से है...लाख परेशानीयों के बावजूद वो तपन राय को अच्छा दोस्त मानता है...सनकु ने उसके बारे में खूब बुरा सोचा है लेकिन कभी कुछ बुरा किया नही है....यही कारण है कि तपन राय के दोस्ती अभी भी टिकी है...हालाँकि तपन राय उसके लिए जान पर खेल सकता है ये बात उसे पता है...सनकु को अपने किये पर पछतावा है....सनकु की आँखे डबडबा उठी हैं....वो चीखता है ...ज़मी पर हाथ पैर मारता है...और तपन का बेहोश चेहरा देखता है....वो हर बार अपने आप को धोखेबाज़ समझता है...

सुबह तपन होश में आता है...रात भर पानी चढ़ा है...वो सबसे पहले अपने बंद मोबाइल में रखे मेसेज को पढ़ता है"शिखा लिखती है कि मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ.... तपन रिप्लाई भेजता है कि अब बहुत हो गया...समय बहुत बीत गया....अब मैं दोबारा नही मर सकता हूँ "
वो मेसेज करके चुप हो जाता है....मोबाइल बंद करके सनकु को देखता है "कहता है शाला कितना पी लिए थे कल....पता नही क्या हो गया...भाई लेकिन मम्मी कसम एक बूँद उल्टी नही किये " सनकु के चेहरे से उदासी छँटी है...वो खिल उठा है...हालाँकि अभी तपन को दो दिन और रहना है...सब आते जाते रहते हैं सनकु वहीं रहता है ...एक भाई की तरह !

शिखा को नही मालूम कि तपन ने वो मेसेज क्यों किया है...हालाँकि वो बेचैन है उसे देखने के लिए....लेकिन वो मिले भी तो कैसे ...वो दूर है उससे बेहद दूर ...ये दूरी उसने खुद से बनाई है...ये उसकी किस्मत है....जरूरी है...वो इसे अपना भाग्य समझे...वो भीतर ही भीतर घुटती जा रही है....आज शाम में हवाएं तेज़ चल रही है...शिखा अकेले ही घूमने निकली है...यादों के कई गीत वो गुनगुना रही है....वो ढेरों सपने ढूढं रही है...वो भी अधूरी है...उसका इश्क़ भी अधूरा है ! वो टूट कर रास्ता बदलती है...हर रास्ता पर वो ही दिखता है...कभी मुस्कुराते कभी उससे कोई बात कहता है..वो उसे याद आता है....जब भी वो सामने आता है वो उससे उतना ही दूर हो जाता है...शिखा चुपचाप वहाँ से गुज़र रही है ! प्रताप यूँ ही उसे रास्ते में मिल जाता है...दोनों को कुछ नही पता ...की तपन कहाँ है....उसके साथ क्या हुआ है....बात उनतक नही पहुँची है...रात की ही तो बात थी....प्रताप शायद जल्दी में है...वो उसे वहाँ छोड़कर आगे बढ़ जाता है....शिखा हर बार की तरह उदास कदमो से लौट आती है ...अपना मेसेज बॉक्स जो सुबह से उसने नही पढा वो देखती है...वो देखते ही आँखे उसकी भर आती है...उसे नींद आती है .....वो सोने की कोशिश में हर रोज़ जागती है...आज भी !

अगले दिन भी तपन राय वहीं लेटा रहता है....सनकु संचिता से मिलने आया है...सनकु संचिता को इतना कहता है किसी से तपन का ज़िक्र मत करना क्योंकि वो जानता है तपन राय का कमजोर पड़ना मतलब सनकु पांडेय का कमजोर पड़ना.....प्रताप भी उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा है .....वो भी बेचैन है क्योंकि सनकु उसके सिर पर चढ़ बैठा है...उसका बदला तपन राय से भी है....तपन राय सनकु से बार बार पूछता है कि बात क्या है "सनकु कहता है साथ साथ ही बदला लेंगे...तपन राय भीतर ही भीतर खौलता रहता है.... इस लड़ाई के बीच में शिखा  सबसे कमजोर पड़ती जा रही है उसे मालूम ही नही चल रहा कि आखिर वो गलत कब थी ? 

अगले दिन सनकु और संचिता दोनों बात कर रहे थे...वहाँ शिखा आने ही वाली थी....की तबतक प्रताप.....

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सनकु संचिता के साथ बात कर रहा था...उसे नही मालूम कि उसने आख़िर क्यों शिखा को बुलाया है ये तीसरा दिन था जब वो तपन राय की बीमार आँखों को देखकर लौटा है....तपन राय की हालत उसे चुभती है..तपन राय ऐसा नही था वो जिस दुनिया मे जीने लगा था वो शायद कम ही लोगों की होती है...बेपरवाह, बेफ़िक्र, और अलग ही दुनिया का इंसान ...हर लोग इश्क़ में ऐसे नही हो पाते...हर किसी की कहानियां भी ऐसी नही है...हर किसी की आंखो में इतना प्यार नही होता...हम इश्क़ सोच समझ कर लगने लगे हैं और ये वक़्त की सबसे बुरी घटना है ! शिखा को मालूम चला कि तपन राय बीमार है....वो रात भर ठीक से सोयी नही है .....उसकी आँखें सूजी हुई है...आवाज़ धीमे धीमे निकल रहे हैं....वो एक बार मिलना चाहती है....
वो चाहती है कि तपन को बस एक बार वो देख ले..वो इतनी भी गलत नही है....उसे वो याद आता है...वो उसे भूल नही सकती...वो उसका वजूद सा बन गया है !

शिखा को देखते ही सनकु रोने सा लगता है...शिखा ने उसे पहली बार ऐसी हालत में देखा है...सनकु उससे पूछता है "तुम्हे पता भी है तुमने क्या किया है " सनकु पूछता है और कुछ और देखने लगता है....शिखा हाथ जोड़ कर कहती है....मैंने क्या किया सनकु बताओ ...तुम मुझे क्यों दोष देते हो....मैंने क्या यही किया कि मैंने सही को सही और गलत को गलत कहा..क्या हमारी इतनी भी आज़ादी नही ! सनकु के लिए तपन जरूरी है लेकिन वो शिखा से बहस भी तो नही कर सकता ना ! शिखा से वो कहता भी क्या...शिखा उससे कहती भी क्या ....दोनों एक दूसरे के सामने चुप रहे !

आज सनकु को पता था कि प्रताप आने वाला है...सनकु फिर भी आया है...वो देखना चाहता है कि प्रताप कर क्या सकता है .....सनकु के भीतर आग ठंडी पड़ चुकी है .....हालाँकि उसे पता है प्रताप आज भी वही सोचता है जैसा वो पहले सोचता था....वो प्रताप को कभी समझा नही सका....ये सबसे बड़ी उलझन थी...शिखा बार बार उससे पूछ रही थी....उसकी आँखें डबडबायी थी...सनकु कहता कुछ नही....बस मुँह फेर लेता.....शिखा अपनी उँगलियों को उलझा लेती....कभी आँखों कभी सर पर रखती....वो दूर तक फैला हुआ आसमान देखती.....शून्य सा आसमान ...उसे एक मुस्कुराता सा चेहरा दिखता...बादल आते वो चेहरा खो जाता....

प्रताप उसे ढूँढते वहाँ आया.....साथ में तीन लड़के थे...और सनकु उसके सामने खड़ा है....वो अपनी गाड़ी  उसके सामने ही पटक कर तेज़ी से उसकी ओर आया...प्रताप के सामने संचिता आ गयी.....और उसने कहा " अभी मत करो ये  सब....इस लड़ाई को अभी रहने ही दो...तपन को ठीक हो जाने दो....वो मर रहा है...."  ! प्रताप अब दोबारा संचिता पर विश्वास नही कर सकता....उसने उसका हाथ खींचकर दूर कर दिया...सनकु ने कहा " लड़की को क्या मारते हो बे "
प्रताप के साथ तीन लड़के दौड़ते हुए आये और एक लंबी लात से सीधे उसके पेट पर मारा प्रताप ने ....सनकु दूर हो गया....उसके मुँह से खून निकल गया.....वो चीख रहा था....प्रताप ने उसे उठाया और अपने सर से सीधे उसकी छाती पर मारा और एक मुक्का सीधे उसके दांतों पर लगा....सनकु के चेहरे पर खून सना गया...वो उठता और प्रताप उसे दोबारा मारता....

किसी ने हॉस्पिटल जाकर ये बात तपन राय को कही...तपन राय का जैसे खून खौल गया....तपन राय लंबी दाढ़ी....सुखी गली हड्डियाँ.... महीनों से कैंपस से  बाहर रहा है....उसे किसी ने नही देखा...तपन सीधे उठता है और चलने लगता है....डॉक्टर मना करते है....
तपन कहता है "ज़िंदा रहे तो दोबारा आएंगे बे डॉक्टर "
तपन सीधे वहीं आता है और वो देखता है कि प्रताप अपने पैरों से सनकु के सर को कुचल रहा है उसके सर पर थूक फेंकी गयी है....उसने ना संचिता की ओर देखा...ना शिखा की ओर....वो दौड़ते हुए ...अपनी कांपते हाथों में एक लाठी लिए साथ तेज़ी से दौड़ रहा है....वो जाता है और सामने खड़े लड़के को एक लाठी मारता है वो लड़का गिर जाता है....प्रताप उसे देखकर हँसता है ....कहता है " चलो अच्छा किये दोनों यहीं आ गए हो....प्रताप उसकी सुखी अंतड़ियों को जकड़ कर खींच लेता है....और एक थप्पड़ उसके गालों पर रख देता है .....वो दूसरा थप्पड़ उठाता ही है कि पहले सनकु पुलिस को तेजी से फ़ोन लगा देता है....और वो उठकर प्रताप के पाँव पड़ता है....भाई इसे मत मार ये लड़ाई मेरी है...ये सब मैंने किया है....संचिता को मैंने ही तुमसे दोस्ती करने को कहा था....उस दिन तुम्हारी लड़ाई मैंने ही करवाई थी....उस दिन तो तपन ने तुझे फ़ोन भी किया था पर तुम वहाँ से नही गए....तपन कराह रहा है....प्रताप ने एक थप्पड़ फिर से लगाया है...तपन का गुस्सा खून बनकर नसों में बहने लगता है...वो गिरी हुई हॉकी स्टिक से आगे बढ़ता ही है कि प्रताप के दोस्त में से एक उसके सर पर एक तेज़ रॉड मारता है....तपन की आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है... उसके सर से खून बहता है....वो बेहोश वही पड़ा रहता है....

पुलिस की गाड़ी आकर लगती है.....प्रताप के दोस्त वहाँ से भाग जाते हैं.....प्रताप और सनकु को पुलिस उठाकर ले जाती है....पुलिस की गाड़ी उनदोनो को ले जाती है.....प्रताप की आँखे बार बार तपन के कमजोर और खून से सने हुए शरीर पर लगी रहती है....वो अपने सर पर हाथ रखे हुए है.....सनकु की आँखों से सिर्फ खून और आँसू निकल रहे हैं....गाड़ी तपन को वहीं छोड़कर चली जाती है....तपन शिखा के पैरों पर सर रखे है...वो चिल्ला उठती है....वो चिल्लाकर अपना हाथ तपन के पीठ पर पिटती है...वो चिल्लाते हुए कहती है...उसकी आवाज़ फट जाती है...आसुँ उसके आँखों से निकल तपन के सर से बहते खून में मिल जाते हैं......वो तपन को जगाते रहती है.....वो चीखती है "तपन मुझे माफ़ कर दो....मुझे माफ़ कर दो तपन "
वो एम्बुलेंस पर बैठ जाती है.....संचिता उसके साथ ही है.....तपन आईसीयू में भर्ती हो जाता है....दरवाजे पर शिखा रोते हुए बैठी रहती है.....संचिता उसे समझाती है....डॉक्टर तपन राय के लिए तेज़ी से दौड़ पड़ते हैं....घण्टो बीत जाता है.....घण्टो बीतत जाता है..... 
डॉक्टर बाहर नही आये हैं....डॉक्टर बाहर निकलते हैं "वो कहते हैं कि ज़िंदा तो है मगर कोमा में चला गया है ,कोई नही कह सकता बचेगा भी या नही !! शिखा दरवाजे से ही उसे देखती रहती है.....वो बेचैन आँखों लिए उसे ताकती रहती है....तपन की आँखे खुली है...तपन की आँखों मे शायद अभी भी इंतज़ार रह गया है.....

(एक महीने बाद )

प्रताप और सनकु जेल से बाहर आ गए हैं.....शिखा इस बीच हर दिन तपन के लिए आती रही है....वो उसके पास बैठे हर दिन रोती रहती है.....वो बस उसके इंतज़ार में वहाँ है....ये इंतज़ार ही उसका प्रेम है....यही उसका समपर्ण है....यही उसका सबकुछ है......तपन राय कोमा से लौट आया है....वो ज़िंदा है.....वो बच गया है....किसी की दुवाएं ने उसकी साँसें लौटा दी हैं...हालाँकि अब वो पूरी तरह बदल गया है...वो बेहद कम बोलता है....चुप रहता है....शिखा ने उसके साथ रहने का ही वादा किया है....वो उसकी आँखों मे देखता है.....उसे प्रेम की अनभूति होती है....वो सारी दुनिया से दूर अपनी दुनिया मे जीता है जिसमे सिर्फ उसके साथ शिखा है....सच्ची मोहहब्बत को चहिए भी क्या भला...
प्रताप और सनकु का गैंग चल रहा है....हाँलाकि अब दोनों में बराबर की दूरी है....नए लड़के कैंपस में आ गए है....और नई कहानियाँ ज़िंदा हो रही है.....नए इश्क़ का सफर तय करने लगा है कोई ...कैंपस में कुछ भी नही बदलता बस लोग यहाँ से चले जाते हैं ! ना जाने कौन तपन और प्रताप जैसा यहाँ आये और ऐसी कहानी कहे !!

(6 साल बाद )

तपन राय पीसीएस अधिकारी बनता है....शिखा भी एक अच्छे कम्पनी में काम करती है....दोनों की शादी हो जाती है...सनकु और संचिता भी शादी कर लेते हैं...प्रताप की भी ज़िंदगी अच्छी चल रही है )

( ये कहानी आपके लिए थी......मुझे अच्छा लगा आपने मेरा इतना सहयोग किया आपका ऋणी हूँ... जितना शुक्रिया कहूँ कम होगा....आपके शब्दो ने मुझे प्रेरित किया है हर बार बेहतर लिखने को....और अगर ईश्वर और आपका आशिर्वाद रहे तो ऐसे ही लिखता रहूँगा ....आपको कैसी लगी कहानी जरूर बताएं...और एक बात कोई कहानी कभी पूरी नही होती.....हर कहानी अपने अधुरेपन को पुरी करती है )


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©आशुतोष सिंह

घुमक्कड़ स्वभाव के युवा कवि - कहानीकार आशुतोष सिंह  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं। स्वाभाविक रूप से एक्टिविस्ट और समाजसेवी हैं

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