Saturday, 3 March 2018

सांझे बोले चिरई बिहाने बोले मोरवा ......Er S. D. Ojha

सांझे बोले चिरई बिहाने बोले मोरवा ......
मुरारपट्टी गांव का नाम मुरार बाबा के नाम पर पड़ा था । मुरार बाबा यहां आकर बस गए थे । उन्हीं से आज हमारे गांव की पाठक लोगों की आबादी 300 घर तक पहुंची है । कहने को तो तिवारी लोग भी हैं इस गांव में , लेकिन मुरार पट्टी गांव की पहचान पाठक लोगों के कारण हीं है । मुरारपट्टी से एक फर्लांग की दूरी पर है लालगंज । लालगंज बाजार है , जहां से सऊदा पताई होती है । अब लालगंज बहुत बड़ा बाजार बन गया है । यहां सुई से लेकर फार तक सब कुछ मिल जाता है । हमें रानीगंज बाजार जाने की जरुरत नहीं पड़ती । इसी बाजार में चण्डीगढ़ से जाने पर मेरी महफिल जमती । हित मीत सभी इकट्ठे होते । गांव के लड़के मेरे पीछे पड़कर चाय समोसा जलेबी का आर्डर दिलवाते । छक कर खाते । शाम को चलते समय मैं दूकानदार को भुगतान कर देता ।
लालगंज के करीब हीं धोबियों का एक टोला जैसा है । वहीं से हमने जवानी के दिनों में गधे चुराये थे । गधे चुराने का आइडिया बेगदू तिवारी का था । दरअसल हमें नाच देखने डोकटी जाना था । हमने सब इंतजाम कर लिया था । चारपाई पर उपले रख हमने उन पर चादर डाल दिए थे ताकि लगे कि हम लोग उन पर सोए हैं । घर वालों को पता नहीं लगता कि हम नाच देखने गए हैं । डोकटी मुरारपट्टी से 3/4 किलोमीटर दूर था । इसलिए बेगदू तिवारी की सलाह हमने मान ली । गधों को पकड़ा गया । सवारी की गई । फिर चल पड़े नाच देखने । गधे भी बहुत सभ्य , शालीन , सुसंस्कृत व आज्ञाकारी थे । वे बिना चीं चापड़ किए चलते रहे । जब डोकटी नजदीक आया तो हमें ट्यूब लाइट की रोशनी दिखी । हमने पहली बार ट्यूब लाइट देखी थी । हमारे आस पास के किसी गांव में विजली नहीं थी । ढिबरी , लालटेन से हमारा काम चलता था। ट्यूब लाइट जेनरेटर से जल रहे थे । हम जाकर शामियाने में जगह रोककर बैठ गये । गधे चरने के लिए छोड़ दिए गए ।
नाच सुमेर सिंह का था । सुमेर सिंह की नाच मण्डली उन दिनों भिखारी ठाकुर , महेंदर मिसिर , मुकुंदी भाड़ और चाई ओझा के नाच मण्डली के समकक्ष मानी जाती थी । नाच में एक बाई जी थीं , जिन्हें लोग प्यार से चुनमुनिया कहते थे । कहते हैं कि जब तक फायरिंग से शामियाना मच्छरदानी न बन जाए तब तक चुनमुनिया के नाच को नाच नहीं माना जाता था । पहले  छोटे किस्म के दो चार लौंडे नाचे । उसके बाद चुनमुनिया का नाच शुरु हुआ । चुनमुनिया ने पहला गीत गाया था - सांझे बोले चिरई , बिहाने बोले मोरवा , कोरवा छोड़ि द बलमू ....। समां बंध गया । मन मयूर नाच उठा । चुनमुनिया का नाचना सुफल हुआ । खूब तालियां बजीं । अब बारी आई खुद सुमेर सिंह की । सुमेर सिंह बी ए पास थे । उनका नाच बेजोड़ था । वह थाली के किनारी पर बखूबी नाच लेते थे । जब वे नाचने को उद्दत हुए तभी डोकटी के नामी गिरामी तेजन सिंह की धमाकेदार इण्ट्री हुई ।
तेजन सिंह डोकटी के थे , पर उनका दबदबा पूरे जवार में था । वे बिहार में डकैती डालकर यू पी में भाग के आ जाते थे । बिहार पुलिस उन्हें ढूंढती रह जाती थी । शामियाने में पहुंचते हीं उन्होंने अपना मनपसंद गीत " साझे बोले चिरई , बिहाने बोले मोरवा....।" गाने की फरमाइश की । सुमेर सिंह ने कहा कि यह गीत हो चुका है । आप दो चार गीत दुसरे सुनें । फिर मैं आपको यह गीत भी सुना दूंगा । सुमेर सिंह का यह उसूल था कि वे पहले अपनी मनपसंद सुनाते थे , फिर जनता की पसंद सुनाते थे । तेजन सिंह को इसमें अपना अपमान महसूस हुआ । उन्होंने अपनी रायफल की नली सुमेर सिंह की तरफ कर दी । सुमेर सिंह भी राजपूत थे । उनका खून भी उबलने लगा । सुमेर सिंह ने भी साड़ी में छुपाकर रखी पिस्तौल निकाल ली ।जब कांटे की टक्कर होती है तो कोई कुछ नहीं कर पाता । किसी ने भी किसी पर गोली नहीं चलाई । दोनों पक्ष से हवाई फायर होने लगे । शामियाना मच्छरदानी बनने लगा । सब भागे । हम भी गिरते पड़ते भागे । जेनरेटर वाले ने जेनरेटर बंद कर दिया । घुप्प अंधेरा छा गया । हम बबुरानी में जा फंसे । बबूल के कांटे हमारे पूरे शरीर में विंध गए । किसी तरह हम भागकर गांव पहुंचे ।
इसी भागमभाग में गधे वहीं छूट गये थे ।

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