Sunday, 4 March 2018

आकांक्षा अनन्या की कविता - छोड़ी हुई प्रेयसी

छोड़ी हुयी प्रेयसी
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          1
दूर सम्बन्ध का तुम्हारा भाई
जिसने चिढ़ाया था कभी भाभी कहकर
आज भी दिखता है तो मुस्कुरा देती हूँ
तुम्हारे कुछ मित्र
जो बड़े सलीके से बात कर लिया करते थे
दिख जाते हैं कहीं तो अदब आ जाता है
तुम्हारी एक महिला मित्र से
आज भी बात हो जाती है दीदी कहकर
छोड़ी हुयी प्रेयसी
तुम्हारे न होने पर भी
निभा रही है तुम्हारा हर सम्बन्ध
छोड़ी हुयी प्रेयसी
जब गुजरती है
तुम्हारे मज़हब वाले मंदिर से
तो उसमें दाखिल हो जाती है
कभी बातों ही बातों में
सिखायी गयी पूजा पद्धति को याद करती है
विसरे से मन्त्र पढ़ती है
और मांग लेती है सलामती तुम्हारी
छोड़ी हुयी प्रेयसी
संजो के रखती है
वो हर एक वस्तु
जो जुड़ी है तुमसे
तुम्हारी छोड़ी हुयी प्रेयसी
प्रतिबद्ध है
तुम्हारे द्वारा माँग ली गयी सौगंध पर
कि वो आजीवन तुम्हारी है
तुम्हारे रहते
जी रही है बेवाओं वाला जीवन
             2
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तुम्हारी छोड़ी हुई प्रेयसी
तुम्हारे विवाह के पश्चात अब
तुम्हें नहीं देखती
वो देखती है इधर उधर से तुम्हारी ब्याहता
उसके हाव-भाव,उसका रहन-सहन
बोल -चाल और उसका चेहरा
और देखती है खुद को आइने में कई-कई बार...
तुम्हारी छोड़ी हुई प्रेयसी
तलाशती है कोई एक तो कारण
तुम्हारे छोड़ने का
कि वो सोचती है
शास्त्र में मास्टर की बजाय अगर
एम बी ए,बी सी ए या बीटेक किया होता
या किसी बैंक की ही कर्मचारी होती
तो शायद न छोड़ दी जाती...
उस छोड़ देने वाले कवि के द्वारा
जिसके झोले में सिर्फ कवितायें थी ।
आकांक्षा अनन्या

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