साड़ी का बहुत पुराना इतिहास है । यह हड़प्पा और मोहनजोदड़ों काल से चली आ रही है । उस दौर में इसका रंग केवल सफेद होता था । हड़प्पाकालीन सभ्यता के बाद इसका प्रथम परिचय यजुर्वेद में मिलता है । बाद के दिनों में महाभारत काल में भी इसका उल्लेख है । जब द्रोपदी का चीर हरण हुआ । उस वक्त श्रीकृष्ण पहुंचे थे और उन्होंने द्रोपदी की साड़ी की लम्बाई बढ़ा दी थी । दु: शासन के हाथ साड़ी खिंचते खिंचते थक गए । द्रोपदी की लाज बच गई । एक और किस्सा प्रचलित है । एक बार दुर्वासा ऋषि नदी में स्नान कर रहे थे । नदी की धार में उनके वस्त्र बह गए । अब वे नदी से बाहर निकल नहीं सकते थे । ऐसे में द्रोपदी संकट मोचक बनकर उभरी । नदी किनारे से द्रोपदी ने अपने वस्त्र फाड़कर उन्हें फेंका, जिसे पहन वे नदी से बाहर निकले । दुर्वासा ने खुश हो द्रोपदी को आशीर्वाद दिया - "जब कभी उसे वस्त्र की कमी होगी या उसकी अस्मिता पर आंच आने को होगी । उसके वस्त्र अपने आप बढ़ते जाएंगे । उसे अपनी लाज ढकने के लिए किसी और से मदद लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी ।" उन दिनों यज्ञ व हवन के समय साड़ी पहनना अनिवार्य था ।
2- साड़ी एक मुख्य परिधान है , जो कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पहनी जाती है । यही नहीं , यह पाकिस्तान , नेपाल , बांगला देश , मालदीव , श्रीलंका , इण्डोनेशिया , माॅरीशस , फीजी , त्रिनीडाड और विश्व के हर उस कोने में पहनी जाती हैं , जहां भारतीय मूल के लोग रहते हैं । साड़ी 5-6 गज लम्बी होती है । साड़ी कई तरह की होती है , जिनमें बनारसी , कांजीवरम , पटोला और चंदेरी मुख्य हैं । जानकार कहते हैं कि साड़ी की व्युत्पति संस्कृत के शाटी से हुई है । जानकार यह भी कहते हैं कि साड़ी को 80 तरीके से पहना जा सकता है । क्या सच ? क्या झूठ ? मैं कुछ भी नहीं कह नहीं सकता । कारण यह मेरे कार्य क्षेत्र में कभी नहीं रही । साड़ी का क्रेज फिल्मों में भी सर चढ़कर बोलता है । एक दौर था जब मुमताज व हेमामालिनी ब्रांडेड साड़ियों का बहुत हीं क्रेज था । अब कंगना राणावत और दीपिका पादुकोण के साड़ी बांधने की कला की प्रशंसा हो रही है । हमारे पूर्वांचल में तो साड़ी जीने मरने का हीं सबब बन जाता था । एक गीत में पति को साड़ी को खरीदने के लिए चोरी से लेकर ठेलागाड़ी तक की चलाने की सलाह दी गयी है -
चोरी करिह पपीऊ !
चाहे खिंचह ठेलागाड़ी ,
हमरा के साड़ी एगो चाहीं ,
कबले फीचीं गवना के छाड़ी ।
3- पहले साड़ी खरीदने के लिए महिलाएं सज धज कर निकलतीं थीं । दस पंद्रह दूकानें छान मारती थीं , तब जाकर कहीं एक साड़ी पसंद करतीं थीं । उसमें भी उनकी यह फरमाईश होती थी -" भईया ! साड़ी की डिजाईन तो यही चाहिए , पर उसकी जमीन पीली और बार्डर नीली होनी चाहिए ।" दूकानदार मन मसोसकर रह जाता । फिर वह दूसरा गट्ठर खोलता । मनपंसद साड़ी मिल गयी तो मोलभाव शुरू । सौ रुपए के बारगेनिंग के लिए घंटों मशक्कत । बेचारा पति सूखता रहता । भुनभुनाता रहता । अंत में साड़ी पैक होती । पत्नी अपनी एक घंटे की मशक्कत से मिले सौ रुपए की चाट पकौड़ी खाती , पति को भी खिलाती । फिर विजयी मुद्रा में घर वापस आती । पड़ोसिनों को बड़े प्यार से अपनी जीत की कहानी सुनाती । अब इण्टरनेट का जमाना आ गया है । एक क्लिक पर कई गट्ठर खुल जाते हैं । कई तरह की साड़ियों में से मनपसंद साड़ी का आर्डर दीजिए । साड़ी आपके घर में हाजिर हो जाएगी । पेट्रोल की बचत होती है । गाड़ी पार्क करने की झंझट से मुक्ति मिलती है । लेकिन इस क्रम में महिलाओं का दिल टूट जाता है । अब उनके सजने संवरने के मौके कम होते हैं । चाट खाने की नौबत भी कम हीं मिलती है ।
4- अब महिलाएं साड़ी नहीं पहनतीं । काम की भागम भाग में उन्हें साड़ी पर आधा घंटा जाया करना खलने लगा है ।उन्हें साड़ी की जगह सूट पहनना , जींस टाॅप पहनना ज्यादा आसान लगने लगा है । इसी से कूढ़कर प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर सव्यसाची मुखर्जी ने साड़ी न पहनने वाली महिलाओं को आड़े हाथ लिया । उन्होंने कहा - "महिला होकर भी साड़ी नहीं पहनती । शर्म करो "। इस बात पर वे ट्रोल होना शुरू हो गये । कई महिलाएं आगे आ गयीं । उन्होंने कहा - " हां , हम महिला हैं । हम साड़ी नहीं पहनतीं ।" कई पुरुषों ने कहा - 80,000/-की साड़ी बेचोगे तो खरीदेगा कौन ? प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ सुप्रिया सूले को किसी ने तंज कसा कि यदि संसद में महिलाओं को 50% आरक्षण मिल गया तो केवल साड़ियों पर हीं चर्चा होगी । इसलिए साड़ी को फैशन से बाहर कर देना चाहिए । केरल की सीनियर वामपंथी नेत्री गौरी अम्मा ने मुख्यमंत्री पिनराई विजमन को साड़ी पहनकर सड़कों पर चलने की सलाह दी है ताकि वह बेहतर ढंग से महिलाओं की समस्या समझ सकें । वहीं मंदिरा बेदी ने साड़ी को प्रोमोट करने के लिए साड़ी पहनकर पुशअप किए तो शीतल राणे महाजन ने थाईलैण्ड में नऊवारी साड़ी पहनकर स्काई ड्राइविंग की ।
साड़ी सोनिया गांधी से लेकर सुमित्रा महाजन तक पहनती हैं । इन दोनों को डार्क शेड बहुत पसंद है । सोनिया और सुमित्रा के ड्रेस सेंस की दाद हर कोई देता है । आज की खबर है कि सोनिया गांधी ने दक्षिण दिल्ली से तकरीबन एक दर्जन साड़ियां खरीदीं हैं । कुछ अपने लिए तो कुछ घर में काम करने वालियों के लिए । इससे लगता है कि साड़ियों का क्रेज कभी खत्म नहीं होगा । यह हर युग में अपना पैठ बनाए रखेगी । किसी में कम तो किसी में ज्यादा । सिंधु घाटी की सभ्यता से शुरू होकर इक्कीसवीं शताब्दी तक पहुंचने वाली यह साड़ी आगे भी अपना सफर जारी रखेगी । इसमें नननुच की कोई गुंजाइश नहीं है । यह हर देश काल परिस्थिति में खप जाने वाला परिधान है । सच पूछिए तो औरत साड़ी में हीं खूबसूरत लगती है । कल इण्टरनेट पर साड़ी पर एक शेर पढ़ा था , उसे आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूं -
आज तुम यूं साड़ी पहनकर सामने आ गईं ,
मैं घटा मानता था , तुम तो विजली गिरा गईं ।
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