Saturday 3 March 2018

Er S. D. Ojha का आलेख रंग हुए हैं कैसे कैसे ?

रंग हुए हैं कैसे कैसे ?
प्रमुख रंग तीन हीं होते हैं - लाल, नीला और पीला । लाल को पीला से मिलाया तो केसरिया , नीला और पीला मिलाया तो हरा और नीला व लाल मिला दिया तो जामुनी रंग बन जाएगा । केसरिया , हरा और जामुनी के साथ कोई अन्य रंग मिलाया तो दूसरे रंग अस्तित्व में आ जाएंगे । इस तरह रंगो का लम्बा काफिला चलता रहेगा अनवरत अनंत तक । आलम ये है कि आज केवल क्रीम कलर के हीं कई तरह के शेड बना दिए गये हैं । इण्टरनेट खोलेंगे तो एक हीं क्लिक में कई प्रकार के शेड हाजिर हो जाएंगे । मनपसंद रंग का चुनाव कर तसल्लीबख्स घर का रंग रोगन कीजिए । दीवारें बोल उठेंगी । आप खुश हो जाएंगे ।
मेरे एक जानने वाले मित्र थे । हम दोनों पड़ोसी थे । एक दिन हम पति पत्नी उनके घर अचानक मिलने जा पहुंचे । पत्नी कोप भवन में थी । उन दोनो का हाल में हीं झगड़ा हुआ था । कोई किसी से बात नहीं कर रहा था । हमें चाय नहीं मिली । हम वैरंग वापस आ गये । दूसरे दिन मैंने पेण्टर भेजकर उनके बेड रूम का कलर हरा करवा दिया । तब से जब तक मै वहां रहा उनका कोई झगड़ा नहीं हुआ । हरा रंग शांति का जो प्रतीक है ।
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा की खुदाई से जो भी वर्तन मिले उन पर रंग चढ़ा हुआ था । एक लाल रंग के कपड़े का टुकड़ा भी मिला था । विशेषज्ञों ने शोध कर बताया था कि यह लाल रंग मजीठ के जड़ का रंग है । उन दिनों मजीठ की जड़ व वक्वम की छाल लाल रंग के प्रमुख स्रोत थे । पीला रंग हल्दी से मिलता था । मोहनजोदड़ों व हड़प्पा कालीन सभ्यता के बाद पीपल , गूलर व पाकड़ वृक्षों के लाख से महावर तैयार की जाती थी । महावर पर लिखा विहारी कवि का एक दोहा बहुत हीं प्रसिद्ध हुआ है -
पांव महावर दैन को नाईन बैठी आय ।
फिर फिर जानि महावर एड़ी मीजति जाय ।
बचपन से सुनते आए हैं । इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं । लेकिन अब इतने रंग हो गये हैं कि उन्हें हम गिन नहीं सकते । हमारा चेहरा हमारे मन का दर्पण होता है । मन की भावनाओं के मुताबिक चेहरे का रंग बदलता रहता है । यदि शर्मो हया मन में है तो चेहरा लाल हो जाएगा । गुस्सा मन में हो तो भी चेहरा लाल होगा । यदि गुस्सा फूट पड़ा हो तो चेहरा भयंकर तरीके से लाल होगा । यदि मन में भय हो तो चेहरा पीला पड़ जाएगा । चेहरा काला भी पड़ जाता है , जब पता चलता है कि आप अपना सभी दांव हार गये हैं । आप अवसाद में जा चुके हैं । कवि केदार नाथ अग्रवाल कहते हैं कि फूल नहीं , रंग बोलते हैं । नेहरू के जैकेट में केवल लाल गुलाब हीं शोभायमान होता था , जब कि गुलाब की हर रंग की किस्में हैं ।
शादी में लाल जोड़ा हीं दुल्हा दुल्हन पहनते हैं । लाल रंग का सिंदूर मांग की शोभा बनता है । दुल्हन की पालकी का रंग भी लाल होता है । पालकी ढोने वाले कहार भी लाल कुर्ता पहनते हैं । लाल रंग प्रणय का प्रतीक बन गया है । वैसे क्रांति का रंग भी लाल होता है , जिसमें अपने हक के लिए खून भी जायज माना जाता है । खेती की उन्नति हरित क्रांति कहलाती है । पीली दलहन की फसल का विकास पीत क्रांति के अंतर्गत आता है । दुग्ध उत्पादन श्वेत क्रांति कहलाता है । भारत विश्व का अग्रणी दुग्ध उत्पादक देश बन गया है । हरा , पीला और सफेद रंग इन तीन क्रांतियों के द्दोतक है । रंगों का महत्व अभी आने वाले दिनों में और महत्वपूर्ण हो जाएगा । होली आने वाली है । रंगों के इस महत्वपूर्ण त्योहार में आपको झूम झूम कर गाना होगा  -
इतते निकली नवल राधिका उतते कुंवर कन्हाई ,
खेलत फाग परस्पर हिली मिली , शोभा बरनि न जाई ।
घरे घरे बाजत बधाई , बृज में हरि होरी मचाई ।

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