Wednesday, 23 May 2018

पंकज चतुर्वेदी की सात कविताएं

1

दुख ऐसा मित्र है
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दुख ऐसा मित्र है
अक्सर साथ ही रहता है

और जब नहीं होता
अंदेशा रहता है :
कहीं मैं रास्ता
भटक तो नहीं आया !

2

खल है
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अपराधी है
खल है
पहले उसके संभ्रान्त
संरक्षक करते थे
अब वह ख़ुद आ गया है
प्रेस कॉन्फ्रेंस में

पत्रकारो ! उससे कोई
प्रश्न मत करो
इस बात को समझो

फ़िल्मकारो !
उदास हो जाओ
तुम जो परदा उस पर
डालकर रखते थे
और वही तुम्हारी कला थी
उसका यह
समय नहीं है

3

नीचे जो बैठे थे
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नीचे जो बैठे थे
उनसे जूझता हुआ देर तक
न्याय की उम्मीद में
ऊपर जब पहुँचा
हैरान रह गया :

मैंने कितना
समय गँवा दिया
यह जानने में
कि नीचे जो थे
आत्महीन और अशक्त थे

उनका अपराध
सिर्फ़ यह था
कि भय या प्रलोभनवश
निरीह पशुओं की तरह--
शीर्ष पर जो बैठा था--
उसके मौन या मुखर
आदेशों का
पालन कर रहे थे

4
ईश्वर का अचरज
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अत्याचारी कहता है
कि उस पर ईश्वर की
कृपा है
क्योंकि वह निर्बल को
सताने में समर्थ है

और अत्याचार का
शिकार भी
यही मानता है
क्योंकि वह मार खाकर
जीवित रहा आता है

एक ईश्वर यह
अचरज करता है :
'मैं तो हूँ ही नहीं
फिर मेरी कृपा का
इतना अपयश क्यों ?'

5

जहाँ तुम थीं
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जहाँ तुम थीं
वहीं होना
होना था

बाक़ी तो महज़
अस्तित्व की
अफ़वाह थी

6
उसके शहर में
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जब मैंने बताया
मैं लौट रहा हूँ
अपने शहर में

उसने इस बात से
ख़ुद को
अलगाते हुए कहा :
'अच्छी ख़बर है !'

7

एक विधायक का बयान
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मुझे लगता था
कि मैं पाँच करोड़ में तो
बिक ही सकता हूँ

मगर बाज़ार में
यह देखकर दंग रह गया
कि राजा के आदमी
मुझे ख़रीदने के लिए
सौ करोड़ रुपयों का
सूटकेस लेकर आये थे

उधर अदालत में
शिकायत हो गयी
सो मुंसिफ़ का हुक्म था :
'देखो, कोई बिकने न पाये !'

इसलिए मैं बिक नहीं सका
और राजा के आदमी
लौट गये
पूरे मुल्क में
प्रचार करने लगे
कि वे ईमानदार हैं
लिहाज़ा
दूसरों का ईमान
ख़रीदना नहीं चाहते

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