माड़
चुपके से देख रहा हूँ
माँ डेकची से माड़ पसा रही है
आज भी शायद भात कम पड़ जायेगा
कल की तरह
और माँ माड़ से ही माज लेगी अपनी जीभ
जो पेट तक जाती होगी।
कल ही मास्टर साहब स्कूल में कह रहे थे
कथा अश्वथामा की
जिसकी माँ पीसकर चावल
बना लेती थी दूध
मैं भी सोचता हूँ
सीखूँगा जरूर माड़ से भात बनाने का हूनर
और परोसूँगा कभी
भरपेट थाली
अपनी माँ के लिये।
सिद्धार्थ
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