Friday, 25 May 2018

सीमा संगसार की कविता बनारस

बनारस

देवालयों में
जलते चिता के
उठते धुआंरे से
सुगंधित होती है
मणिकर्णिका की गलियां ....

काल नृत्य करते हो जहाँ
पुल ढहा दिए जाते हैं
अनैतिक कर्मों से लिप्त
ध्वस्त मानसिकताओं की तरह...

राजा धुनी रमाए
बैठा है
जीत के जश्न म़े
झूम रहा है
गांजा और चिलम की
आङ़ म़े !!

नदियों का रंग
लाल हो गया है
आजकल
गो कि मुर्दाओं का वास है
देवताओं के इस शहर म़े ....

सीमा संगसार

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