Sunday 27 May 2018

सोचो कि तुम कोई और होती अरमान आनंद की प्रेम कविता

चाहे कितना भी लिखा जाए। प्रेम हमेशा एक अनछुआ विषय ही रहता है। पढ़िए मेरी नई कविता ..नई प्रेम कविता - अरमान आनंद
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सोचो कि तुम कोई और होती
मैं कोई और होता
तो क्या होता

हम बाग के किसी कोने में औरों की तरह प्यार कर रहे होते
दुनियां हमें तबाह करने के तमाम रास्ते ढूंढ रही होती

सर्दियों की धुंध
जून रात की गर्म छतें
खाली उम्रदराज कोठरियां
बाग के कंटीले झुरमुट
सुनसान फूलों के खेत
हमारे ठिकाने होते

लम्बी उम्र के लिए प्यार को एक अदद पर्दे की तलाश होती है

तुम कोई और भी होती
तब भी यूँ ही मुझसे मिलती
यूँ ही हंसती
खिलखिलाती
और शरमा जाती

मैं कोई और भी होता
तब भी
तुम्हारी शर्म को बाहों में यूँ ही समेट लेता

तुम हम कोई भी हों
प्यार ही हमारा काम है
कामगार सिर्फ कामगार होते हैं
सूरतें बदलने से उनके काम और तकदीर में कोई फर्क नहीं पड़ता।

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