Sunday 27 May 2018

मोहन कुमार नागर की कविता कवि का कबूलनामा

कवि का कबूलनामा

हम हारे
फिर हमने हार पर कविता लिखी !

हमने अन्याय देखा / सुना / सहा
फिर सहने पर कविता लिखी !

हमें बोलना था
पर चुप रहे
फिर इस चुप्पी पर कविता लिखी !

हमें बोलना / लड़ना /
लड़ते हुए लोगों के साथ चलना था
पर जड़वत रहे
और अपनी जड़ता पर कविता लिखी !

हमने हर बार प्रार्थना की
कि और न लिखना पड़े

पर कुछ करने / कर पाने के मामले में
हम बहुत बहुत कमजोर निकले
लिहाजा फिर फिर हारे
फिर फिर
हार पर कविता लिखी।

हम बासी सभ्यता के अग्रदूत ही रहे
भविष्य हमें खारिज करे ।

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