Monday 21 May 2018

मनोज कुमार झा की कविता

इस तरफ से जीना

यहाँ  तो मात्र प्यास-प्यास पानी, भूख-भूख अन्न
                                          और साँस-साँस भविष्य
वह भी जैसे-तैसे धरती पर घिस-घिसकर देह

घर को क्यों धाँग रहे इच्छाओं के अंधे प्रेत
हमारी संदूक में तो मात्र सुई की नोक भी जीवन

सुना है आसमान ने खोल दिये हैं दरवाजे
पूरा ब्रह्मांड अब हमारे लिए है
चाहें तो सुलगा सकते हैं किसी तारे से अपनी बीड़ी

इतनी दूर पहुँच पाने का सत्तू नहीं इधर
हमें तो बस थोड़ी और हवा चाहिए कि हिल सके यह क्षण
थोड़ी और छाँह कि बाँध सकें इस क्षण के छोर .

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