Sunday 27 May 2018

हेमा गोपीनाथ की मशहूर कविता काली

ये अम्मा की ही गलती होगी
कि मैं जनी गई
कावेरी के तट पर
तभी तो लाख जतन से भी नही धुला
मेरी देह से जलोढ़
मिटटी का काला रंग
काली.............................
‘कोयले का छोटा टुकड़ा’
कहा मुझे माँ के भाई ने
और जताया मामा ने ऐसा
मैं नही दिखी उनको
सौर गृह के अँधेरे में
तमिल भाषा में यह बहुत
मीठा प्यारा संबोधन है
काली..................................
‘ये अंगीठी में थोडा ज्यादा पक गई’
चुहल किया था पिताजी ने
अम्मा ने अपराधबोध के साथ
जब दूसरी कन्या धर थी गोद में
‘धान उगाने वाला किसान ही ब्याहेगा
इसको तो ’
काली .....................................
मैं छह बरस की हूँ
जब मुझे ये समझना पड़ा है
गणित में अपने तिहत्तर प्रतिशत को
मेरे 99 प्रतिशत से मिलाते हुए
मुंह बिसुराते हुए , उसने कहा
‘कम से कम मैं तुमसे गोरी तो हूँ ‘
काली.............
तीसरी कक्षा में पहली बार
जब मैने दिया नही पकड़ने
नन्हा हाथ उस नन्हे लड़के को  
राहत अली ने मुझ पर खीज कर कहा था
‘काली’
और बाद में तो मैं अभ्यस्त हो गयी
काली..........................................
किशोरावस्था में
नृत्य प्रशिक्षण पूरा होने पर
भरत नाट्यम प्रस्तुति के लिए
पोता मैने मुट्टी भर सफेद मेकप चेहरे पर 
और काली गर्दन के साथ
गड़ सी गई मैं शर्म से
ढकी छुपी थोड़ी प्रसन्नता के साथ
भले ही जोकर सी दिखी
पर दो घंटे के लिए
गोरी तो हुई
काली ........................................................
हाइड्रोजन पेरोक्साइड ब्लीच के साथ
मैने खुद को थोड़ा सा जलाया
गोरी चमड़ी के लिए
कॉन्ग्रेरचुलेश्न्स
काली ..................................................
हो सकने वाले दुल्हे की गर्वीली मम्मी को
चाहिए थी गोरी चिट्टी दुल्हन
अपने लाडले बेटे की खातिर
वो खुद दूध सा गोरा जो था आखिर
अम्मा ने तीक्ष्ण संयत शब्दों में
उन्हें चलता किया
‘मेरी बेटी का रंग उबला हुआ है
और उसे ही दूध में मिलाने पर 
है मुमकिन 
कॉफ़ी के भाप की तेज खुशबू ’
काली ...................................................
मुझे मजाक का शुबहा हुआ था
उस भले लड़के की बातों में
जिसने कहा था मुझसे
‘तुम्हारी रंग खुबसूरत ताम्बई है’
गौर किया था
बोरिस बेकर ने बस एक बार
कि उसकी प्रेमिका काली है 
जब उसने देखा
बिस्तर पर सफेद चादर के साथ परस्पर
उसकी गहरे रंग की
सुंदर मखमली त्वचा
काली ...........................................
अन्तरंग लम्हों के दरम्यां
पति के सुडौल गोरे बाजुओं पर
हाथ फिराते हुए 
मुझे हैरानी थी
‘किस तरह वो मानता है मुझे हसीन ’
काली ...............................
लक्मे कॉम्पेक्ट के बस तीन शेड्स बनाती है
व्हाइट , ऑफ़ वाइट और पीच
मैं ख़ुशी से बावली हुई थी
छब्बीस बरस की उमर में
हीरालाल चोर बाज़ार से
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री होने से पहले
मैने ख़रीदा था
अपना पहला जादुई  कॉम्पेक्ट
NC 45
उन्होंने मुझे पहचाना
जान लिया, मैं भी कोई हूँ  
मेरा अस्तित्व था
मेरे रंग का भी एक नम्बर है
आज भी रखी हुई है संभाल कर
कि पहले कॉम्पेक्ट की वो गोल डिब्बी
ठीक 18 साल बाद
सेल्सगर्ल ने मुझे सलाह दी
‘मैम परचेज NC44
इट विल मेक यु फेयर ’
काली .........................................
पार्क में मेरी साफ़ रंगत की बेटी को
झूला झुलाते हुए
किसी ने पूछा
उसकी मम्मी के बारे में
झटके से , फुसफुसाते हुए, गुस्से में मैने कहा
मैं ही माँ हूँ
‘सॉरी बहन जी ... वो तो मैं...
दरअसल नौकरानियां ही इत्ती सांवली होती हैं’
खिसियाई हंसी हंसते हुए
क्षमा याचना की थी उस भद्र औरत ने
काली................
धूप में मत जाना
स्विमिंग मत सीखो
कुम्हला जाओगी
विटामिन डी का स्तर सिर्फ 4.75
इसके साथ चिंता और तनाव है
गोरी चमड़ी की कीमत
काली ................................
मेलानिन पिगमेंट नही
बिमारी है
ओह इसका भी इलाज़ है
काली............................
सिर्फ सोना पहनो तुम
चांदी में तो और काली हो जाती हो
हीरे को तो रहने ही दो
पोर्सिलेन रंग वाले चिट्टे पंजाबियों के लिए
काली ..........................
सफ़ेद मत पहनो , काला भी नही
अब नीला क्यूँ , छोड़ दो ये गुलाबी कुर्ती
मत पहनो गहरे रंग और हल्के भी
भगवान के लिए
चटकीले रंगों से दुरी बनाओ
हल्के रंग क्यूँ पहन लेती हो
काली....................................................
वो जिसने
नही पहना है कोई वस्त्र
जो सजी है खून और नरमुंडों से
जो अब पीड़ा से परे है
जिसने पैने कर रखे हैं
अपने दांत और पंजे
क्या खूब भयावह
अपने काले ही रंग में
वो पूजी जाती है
आदर और प्रेम का पात्र है
काली।

-हेमा गोपीनाथ

हिन्दी अनुवाद नेहा अमरेव

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