Sunday 6 May 2018

प्रभात की कविता शिशु और वृद्ध

आज एक मित्र ने विडिओ भेजा जिसमें एक स्त्री एक जर्जर वृद्ध को छड़ी से पीट रही थी। वृद्ध चल नहीं पा रहा था और वह उसे चलाए रखना चाहती थी। वृद्ध हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था और स्त्री पीटे जाती थी।
भयानक हिंसा से भरा वह विडिओ मुझसे देखा न गया और पूरी शाम परेशान रहा। याद आई कवि प्रभात की कविता।
कोई तो है जो इस दुनिया को सुन्दर बनाने की कामना कर रहा है। अपने लोगों से प्रार्थना कर रहा है। मैं भी करता हूँ।
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शिशु और वृद्ध

घर में जीवन जीने आए शिशु की तरह
घर में जीवन जी कर जा रहे वृद्ध की देखभाल होनी चाहिए

एक में आयी नहीं है अभी जीवन का भार खुद उठाने की क्षमताएं
एक को चली गई है छोड़कर जीवन का भार खुद उठाने की क्षमताएं

वृद्ध को शिशु की तरह गोद में लिए जाने की जरूरत है
शिशु की तो एक मां है जो अपने आप ले लेती है उसकी सारी जिम्मेदारियां
वृद्ध की मां तो नहीं अब इस दुनिया में
कौन उसका बिछौना बिछाएगा
कौन उसका पेशाब से गीला बिस्तर हटाकर सूखा बिस्तर बिछाएगा
कौन उसके असमय भूख से चिल्लाने पर आधी रात में जगकर उसे खिलाएगा
उसे तो आता नहीं अब थाली से कौर खुद उठाकर मुंह में लेना
हम जो उसके बेटे-बेटी नाती-पोतियां हैं हम सबको उसकी मां बनना होगा
हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेगा मां
कैसे जिया जाएगा यह जीवन मां के बिना

पालपोस कर बड़ा करके जीवन में प्रवेश दिलाने के लिए मां की जरूरत होती है
जीवन जीने की क्षमता नहीं रह जाने पर जीवन से नाम कटने के वक्त भी मां की उतनी ही जरूरत होती है
किसी को तो बनना होगा वृद्ध की मां ताकि वृद्ध उसकी उंगली थाम कर जीवन से सुरक्षित वापसी कर सके

जीवन-शैय्या के पालने में सोये शिशु की तरह मृत्यु-शैय्या के खटोले में सोया वृद्ध हाथ पांव चलाता है
वह हमें चिड़िया,गिलहरी, बादल और आकाश की ओर झांकता है
शिशु का बन रहा शब्दकोष जितना सीमित है वृद्ध का सिमट रहा शब्दकोष भी उतना ही सीमित है
सीमित शब्दों से बनी भाषा से हमें उनकी असीमित बातों को समझना है
शिशु की अनगढ़ बातें सुनकर बरबस फूटती है हमें हंसी
वृद्ध की अटपटी बातें सुनकर खीजना,झल्लाना और रो देना नहीं होगा हमें
हमें शायद हंसना ही होगा ठूंठ की तरह खामोश पड़ने के बजाय
हमारी प्रतिक्रिया से रस आना चाहिए वृद्ध को
यह न हो कि हमारी चुप्पी कर दे उसे उदास
शिशिर की हवाओं की तीखी मार से बचाते हैं हम शिशु को
शिशिर की हवाओं की तीखी मार से बचाये जाने की उतनी ही जरूरत है वृद्ध को
हमें गरमास की व्यवस्था करने की जरूरत है
उसके बाद भले ही शिशिर की गीली हवाएं ले जाएं अपने साथ

प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है
पेड़ के पीले पत्ते को बहा ले जाती है हवा
आयु के दरख्त पर पूरे हुए जीवन को ले जाता है काल

4.12.06
कथादेश में प्रकाशित

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