Thursday 10 May 2018

हर्षिका गंगवार की कविताएं

1

वो ताले खुद ही कैद हो गये हैं
जो मुझे कैद करने,
मेरे दरवाजे तक आये थे।
उनमें चाबियाँ नहीं लगती अब
सबाल जबाबों की,
वो बस पड़े रहेंगें अब
घर के किसी कोने में
सदियों सदियों के लिये
गुलामी का लिबास ओढ़े।

वो गुरूर से,
मुझे घूरते नहीं हैं अब
शायद जानते होंगें कि
मेरी आँखें उसकी आँखों से
उसका गुरूऱ नोच लेगीं।
उसके होठ नहीं निगलते हैं
मेरे दरवाजे की सटकनी को
वो बस खुले लटकते रहेंगें अब
मौत के इंतज़ार में,
या खुदकुशी कर लेगें
और गुम हो जायेंगें
ये "ताले"
सदियों सदियों के लिये।

2

तुम मेरी कविता में आते हो!!

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जैसे जाता है
कोई पतंगा
बिना बुलाये,
आग की गिरफ्त में
ठीक वैसे ही
तुम मेरे दिल में उतरते हो!!

जैसे आती है
कोई लहर
बिना बुलाये
भँवर की गिरफ्त में
ठीक वैसे ही
तुम मेरे दिल से गुज़रते हो!!

जैसे चुराता है
कोई ख्बाब,
बिना बताये
मेरी रातों को
ठीक वैसे ही
तुम मेरे दिल को चुराते हो!!

जैसे रहता है
कोई प्रेमी,
बिना वजह
कल्पनाओं की झोपड़ी में
ठीक वैसे ही
तुम मेरे दिल में रहते हो!!

जैसे आता है
कोई अर्थ
बिना बुलाये
शब्दों की अाड़ में
ठीक वैसे ही
तुम मेरी कविता में आते हो !!

:-हर्षिका ❣️

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