#एक_कविता_जिससे_हुकूमतें_ड रती_हैं ........
(पढ़िये पाश और उनकी कविता '
सबसे खतरनाक ' पर केन्द्रित मेरा लेख )
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क्या आपने कभी यह बात सोची है कि एक कविता क्या-क्या कर सकती है ? क्या-क्या हो सकती है ? अगर नहीं तो आप अवतार सिंह संधू यानी कवि ' पाश ' की कविता ' सबसे ख़तरनाक ' जरुर पढ़ लें । इस कविता को ठीक से पढ़ने के बाद ये हो सकता है कि आप इस तरह की कविताओं को खोज-खोज के पढ़ने के मरीज़ हो जाए। ये भी हो सकता है कि आपके रगों में बहता खून बहुत तेजी से दौड़ने लगे। और ये भी हो सकता है कि आप वो न रह जाए जो आप पहले थें। यह कविता अन्यायी और मतलबी हुकूमतों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है।यह कविता एक ऐसी दवाई है जिसे पीकर मुर्दा जनता के भीतर क्रांति के लिए आगे बढ़ने का हौसला पैदा होता है।आप यकीन करें न करें यह एक ऐसी कविता है जिससे हुकूमतें डरती हैं।
इस कविता को समझने के लिए दो बातों का जरुर ध्यान रखना चाहिए । पहला कि कवि के लिए क्या गलत है और क्या खतरनाक।सदियों से आदमी के द्वारा आदमी को लूटा जा रहा है। सदियों से हक की मांग करने वालों को बेरहमी से मारा जाता रहा है। सदियों से चालाक लोगों द्वारा किसी शातिर शिकारी की तरह व्यवस्था , नियम -कानून आदि का जाल फैला कर निरीह और बेबस लोगो का शिकार किया जाता रहा है। और उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाता रहा है।पर कवि इनकों गलत तो कहता है पर खतरनाक नहीं कहता। तो फिर ख़तरनाक क्या है ? कवि के नजर में ख़तरनाक है आदमी के भीतर अन्याय से लड़ने की इच्छाशक्ति का अभाव। खतरनाक है दिल में तड़प का न होना । खतरनाक है सबकुछ चुपचाप सहना , खतरनाक है जरुरी समय पर किसी जरुरी प्रतिक्रिया का न होना। खतरनाक़ है चुनौती से लड़ने के मुकाबिल उसकी अनदेखी करना ।सबसे खतरनाक है बेहतर कल का कोई सपना न होना।
कवि को भविष्यद्रष्टा कहा जाता है। पाश ऐसे ही भविष्यद्रष्टा कवि हैं।इस बात का प्रमाण इसी कविता के अंतिम आधे हिस्से में मिल जाता है।क्या आज हमारा समाज अति असंवेदनशील नहीं हो गया है ? क्या आज हमारे समाज में आपसी प्रेम और भाईचारे की ऐसी स्थिति है जिसपर हम-आप संतोष कर सकें ? आख़िर क्यों स्त्री को शक्ति और देवी मानने वाले भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति आज भी सर्वोत्तम नहीं कही जा सकती ?
दरअसल् हमने लड़े बिना ही हार मान ली है। पश्चिम का प्रभाव सड़क से लेकर संसद तक जबरदस्त छाप छोड़ चुका है और इसकी वज़ह से समाज से लेकर सियासत तक की चलने के तौर -तरीके बदल गए है।परन्तु समाज व्यक्ति से बनता है और व्यक्ति से ही चलता है। इसलिए जिस दौर में समाज की आबादी का एक बड़ा भाग पथ भूल गया हो , एक कवि की चुनौती यहीं से शुरु होती है कि वह राह भूलें समाज को मार्ग पर लाने का प्रयास करे। और पाश इस कविता में यह कार्य करने का प्रयास करते हैं। पाश पंजाब के क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने अलग खालिस्तानी आन्दोलन को बहुत करीब से देखा और समझा था।लोग मारे जा रहे थे।
हुकूमत सत्ता के नशे में चूर आन्दोलन को कुचलने पर लगी थी। आम आदमी रोटी के इंतज़ाम में इस कदर पस्त था कि उसे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। ऐसे कठिन दौर में जलते हुए पूजाब की आत्मा को बचाने का संकल्प लिये यह कवि हमसे यह कहता है कि जब जुर्म और अन्याय देखकर आपकी आंखों में मिर्ची न लगे और आप एक मुर्दा खामोशी ओढ़े रहें तो यह समझ लेना चाहिए कि आपकी आत्मा मर गई है।पाश की यह कविता जिन्दगी में लागातार दोहराव की प्रक्रिया से अलग सजग आत्मा के साथ अग्रसर होने के लिए प्रेरित करती है।
पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है।बहुत से लोग पाश को एक ख़ास विचारधारा से जोड़कर देखते हैं जोकि मेरे विचार से ठीक नहीं है।वास्तविकता यह है कि पाश स्पष्टता और बेबाकीपन के कवि हैं। चाहे उनकी कविता हो या निजी जिन्दगी पाश ने जो भी किया , जो भी लिखा , पूरी स्पष्टता , खुलापन और बेबाकी से किया और लिखा। उस वक्त पाश के आसपास जिस तरह की घटनाएं घटित हो रहीं थी उसमें प्रेम गीत गाने की न तो कोई जरुरत थी और न ही उसका कोई महत्व ही था। समस्याग्रस्त पंजाब अपनी समस्या बताने, समाधान के लिए नये मार्ग तलाशने और उत्साह पैदा करने वाले शब्दों को पढ़ने-सुनने के लिए व्याकुल था। और पाश की कविताएं इस आवश्यकता की पूर्ति करती हैं।
यह एक संयोग है कि पाश की मृत्यु उसी तारीख को हुई जिस तारीख को भगत सिंह की।पाश कि कविताओं का मिजाज बहुत कुछ भगत सिंह के विचारों से मिलता है। और वो यह है कि मरने से पहले मरना मनुष्य होने की निशानी नहीं है। अंतिम सांस तक बेहतर कल के सपने को साकार करने के लिए जुर्म और अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष करना ही हमारे ज़िन्दा होने की पहचान है।शायद इसी अर्थ में डा. नामवर सिंह जी ने पाश को " शापित कवि " कहा है। सच है कि पाश एक शापित कवि थे और वो छोटी उम्र मिलने के बावजूद जिन्दगी भर अन्याय के विरुद्ध संधर्ष के गीत
गाने के लिए अभिशप्त थे।
पाश को बहुत कम उम्र मिली थी। वे कुल 38 वर्ष ही जीवित रहे।हिन्दी के एक और आधुनिक कवि सुदामा पाण्डेय ' धूमिल ' को भी बहुत कम उम्र मिली थी।धूमिल का निधन भी 39 वर्ष की ही अवस्था में हो गया।मगर पाश और धूमिल की कविताओं की उम्र बहुत लम्बी है , इसमें कोई शक नहीं । इन दोनों कवियों की कविताएं सरल शब्दों में अपने समय की धड़कन को बयां करती हैं।पटकथा धूमिल की अक्षयकीर्ति का मूल है तो ' सबसे ख़तरनाक ' पाश की प्रसिद्धि का आधार।इनमे से किसी एक की कविताएं पढ़ने पर दूसरा खुद-ब-खुद हमारे जेहन में उपस्थित हो जाता है।
धूमिल के समान पाश के यहां भी कुछ शब्दों और उपमाओं पर आपत्ति दर्ज की जा सकती है।पर मुकम्मल नज़रिये से देखने पर पता चलेगा कि पाश के यहां ऐसे अवसर बहुत ही कम हैं। पाश को पढ़ने वालों और पसंद करने वालों में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है।पाश की कविता ' सबसे खतरनाक ' की एक ख़ास विशेषता यह है कि यह कविता पाठक के भीतर एक धीमी और लम्बी परिवर्तन की प्रक्रिया आरंभ कर देती है , जो अन्ततः अन्याय के विरुद्ध सक्रिय संधर्ष के रुप में परिणत होती है।शायद यहीं वज़ह है कि ज्यादातर हुकूमतें इस एक कविता के सामने खुद को असहज महसूस करतीं हैं।
सबसे ख़तरनाक -पाश
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
क्रान्तिकारी और अन्याय के घोर विरोधी कवि 'पास' पर लिखी गयी आलोचना अत्यन्त सार्थक है । मोहन कुमार झा का यह आलोचनात्मक लेख उनके व्यक्तित्व को उजागर करने में सक्षम है।
ReplyDeleteवास्तव में अन्याय सहना उतना दुःखदायी नही जितना कि मूकदर्शी बनकर उसका प्रतिकार ना करना खतरनाक है।