सूक्ष्म अवलोकन और गहन चिंतन के कवि हैं अरमान आनन्द !
( पढ़िये अरमान आनन्द जी की कविताओं पर मोहन कुमार झा का लेख)
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आधुनिक कविता की एक ख़ास , जरुरी और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इन कविताओं का वर्ण्य विषय समाज में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाओं से जुड़ा होता है।
कवि अरमान आनन्द की कविताएं भी अपने समय और समाज के बीच से अपने निर्माण के तत्त्व ग्रहण करती हैं। उनकी कविताएं पढ़ते हुए जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य मेरे हाथ लगा वो ये कि अरमान आनन्द की कविताएं सूक्ष्म अवलोकन और गहन चिंतन की प्रकिया से गुजर कर आकार ग्रहण करती हैं। शायद यहीं कारण है कि उनके यहां ' जो जंग हम हार गए हैं ' , ' तानाशाह ' , ' बजरडीहा ' , ' आडवाणी : चौराहे पर खड़े गांधी हैं ' , ' जुर्माना ' , ' दंगे का फूल ' जैसी कविता हमें पढ़ने को मिलती हैं।
अपने पराजय के कारणों की पड़ताल करती है इनकी कविता ' जो जंग हम हार गए हैं ' । यह कविता हमारा ध्यान इस तरफ ले जाती है कि कौन सी जंग हम हार गए हैं और क्यों हार गए हैं ? ऐसा क्यों हो रहा है कि युद्धगान लिखने वाला भूखा मर रहा है और प्रशस्तिगान लिखने का कोई मतलब नहीं रहा। राजा राजा की तरह लड़ नहीं पा रहा है और आशिक माशूकों के द्वारा दुत्कारे जा रहे हैं ? कवि का संकेत कहीं न कहीं उस वर्ग की तरह है जिसे ' बीच का आदमी ' कहा जाता है। वर्तमान समय में ये बीच के लोग किस तरह आम आदमी का इस्तेमाल कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं , कविता इस तरफ संकेत करती है। कवि जिस जंग के हारने की बात करते हैं वो आम आदमी का जंग है जिसे हम रोज हारते हुए लड़ रहे हैं।
' आडवाणी :चौराहे पर खड़े गांधी हैं ' कविता में देश के सर्वेसर्वा बनते बनते रह गए नेता के मजबूरी की तुलना चौराहे पर खड़े गांधी की प्रतिमा से की गई है। दरअसल कविता में आया आडवाणी और गांधी शब्द व्यक्तिवाचक के बदले जातिवाचक अर्थ दे रहे हैं। यहां आडवाणी और गांधी शब्द देश के उन तमाम नेताओ से बाबस्ता है जिनकी हालत निर्जिव मूर्तियों के समान हो गयी है। जिनके नाम पर सरकारें बनती और चलती हैं पर उनमें उनकी सक्रिय भागीदारी नहीं होती। भारत के जो मूल्यों थे , क्या आज उससे विचलन का दौर नहीं है ? गांधी का देश क्यों नक्सलवाद की आग में जल रहा है ? अवसरवाद और परिवारवाद की राजनीति की वजह से देश की दुर्गति हो रही है। ईमानदारों के लिए कहीं जगह नहीं बची है वे पत्थर की मूर्तियों के समान चौराहे पर खड़े हैं जिनपर कौवे-कबूतर बीट कर रहे हैं।कविता के आख़िर में कवि गांधी के बच्चे के लाठी बनने की बात कहता है अर्थात् जनता से सक्रिय प्रतिक्रिया की मांग करता है।आज देश की राजनीति युवा केन्दित है पर युवाओ की हालत सबसे अधिक खराब है।यह कविता हूकूमत के कथनी और करणी में मौजूद फासलें की और हमारा ध्यान खीचती है ।
असत्य पर सत्य की , अन्याय पर न्याय की , बुराई पर अच्छाई की , नफरत पर मोहब्बत की होने वाली जीत का यकीन दिलाती उनकी एक बेहद महत्वपूर्ण कविता है ' तानाशाह ' । सतही तौर पर देखने पर आप इसे एक राजनीतिक कविता समझ सकते हैं परन्तु यह केवल एक राजनीतिक कविता न होकर अपने में शाश्वत मूल्यों और सिद्धांतों को समेटे है।व्यक्ति ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है परन्तु सदा से ही दुनिया में ऐसे लोग होते आये हैं जिन्होंने अपने कृत्यों से मानवता को शर्मशार किया है। ये अपने महात्वाकांक्षा और जिद के आगे मनुष्य और मनुष्यता की अहमियत को कुछ नहीं समझते। तानाशाह किसी की आवाज नहीं बनते बल्कि लोगों की आवाज को दबाते हैं।परन्तु एक कवि लोगों की आवाज बनता है। उनकी समस्याओं और भावनाओं को स्वर देता है। इसलिए निसंदेह कवि उस अंतिम आदमी को भी इंकलाब के लिए तैयार कर सकता है जिससे तानाशाह को सबसे अधिक खतरा है। लोकतांत्रिक समाज में तानाशाह का होना काफी ख़तरनाक होता है क्योंकि उसे लोकतंत्र पर भरोसा नहीं होता। उसके दिमाग में एक प्रकार का पागलपन सवार रहता है जिसकी वजह से वह सही और गलत की शिनाख़्त नहीं पाता। वह अपने मार्ग में आने वाली हर चीज को रौंदता चला जाता है। लेकिन समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के पास सही और गलत के चयन की समझ होती है।ये अपने विचारों से समाज में लोकतात्रिक और मानवीय मूल्यों की स्थापना कर तानाशाह के मनसूबों को चूरचूर कर सकते हैं।ऐसे में यह कविता तानाशाही सोच के खिलाफ प्रगतिशील विचारों को मोर्चे पर आने का निमंत्रण देती है।
इस क्रम में अरमान आनन्द की एक और कविता ' बजरडीहा ' का जिक्र मैं जरुर करना चाहूंगा। यह बहुत ही ख़ास कविता है। ख़ास इस अर्थ में कि यह कविता बनारस शहर के बजरडीहा इलाके और वहां के बुनकरों की बदहाल जिन्दगी का सच बयां करती कविता है। बजरडीहा विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ियों का केन्द्र है परन्तु वहा रहने वाले लोगों की समस्याएं देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। तमाम मुश्किलों को झेलते हुए भी यहां के
मोहन |
लोग दुनियां को अपने बेहतरीन हुनर और नायाब कारीगरी से कायल करते हैं। लेकिन कवि को इस बात का दुःख है कि देश-दुनिया में बनारस की पहचान बनाने वाला बनारस का यह बजरडीहा इलाका बनारस में ही बदहाल और गुमनाम है। और इसकी तरक्की की राह अभी तक कोसों दूर है।
कवि के लिए यह जरुरी है की उनके भीतर रचनाशीलता के प्रति ललक , समर्पण और उत्साह का भाव गहराई तक भरा हो। अरमान आनन्द को कविता पढ़ते हुए देख-सुनकर आप इसका अनुमान कर सकते है । आप जितनी शिद्दत से कविता लिखते हैं उतनी ही शिद्दत से काव्यपाठ भी करते हैं।
आप अभी रचनाकर्म में सक्रिय हैं । आपके भीतर जितनी कविताई है अभी उसका आधा भी हमारे सामने नहीं आया है।
परन्तु फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि अरमान आनन्द हिन्दी कविता के स्थापित युवा कवि हैं।
मेरा यह लेख उनकी चार चयनित कविताओं पर है जो मैंने उनके फेसबुक वाल पर पढ़ी। उनकी कविताओं पर लिखकर मैंने न चाहते हुए भी एक दु:साहस किया है। परन्तु अपने लेख में यदि मुझसे उनकी कविता की गहराई के एक भी सोपान तय हुए हों तो मैं अपना प्रयास सार्थक समझूंगा ।
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