Sunday, 8 October 2017

चिड़िया की आँख- शशि कुमार सिंह

चिड़िया की आँख

''अर्जुन तुम्हें चिड़िया की आँख दिख रही है?''
''हाँ गुरुजी दिख रही है.''
''और कुछ दिख रहा है?''
''ना गुरुजी.आपने कहा कि चिड़िया की आँख देखनी है तो बस मुझे चिड़िया की आँख ही दिख रही है.''
''बहुत खूब.मेरा आशीर्वाद है.बहुत आगे जाओगे.''
''धन्यवाद गुरुजी.''
''दुर्योधन तुम आओ.तुम्हें क्या दिख रहा है?''
''गुरुजी मुझे पेड़, डाली, पत्ते, फल, चिड़िया,घोंसले और आप लोग.सब कुछ दिख रहा है.''
''आँख नहीं दिख रही है?''
''आँख बहुत छोटी है न गुरुजी.इसलिए नहीं दिख रही है.''
''अर्जुन इसको समझाओ.इसकी आँख में ही कुछ खराबी है.प्रश्न भी ठीक से नहीं समझ रहा है.''
''देख भाई दुर्योधन गुरुकुल की भी पार्टी लाइन होती है.गुरुजी जो सुनना चाहते हैं, वही बोलना चाहिए.उनकी हाँ में हाँ मिलाना चाहिए.आगे जाने का यही मूल मन्त्र है.''
''मगर भाई सचमुच मुझे पेड़, डाली,पत्ते, फल, चिड़िया,घोंसले और आप लोग, सब कुछ दिख रहा था.चिड़िया भी दिख रही थी.मगर उसकी आँख तो बहुत छोटी थी.''
''तुम्हें कैसे समझाऊँ, जैसे मान लो, राजा धृतराष्ट्र कहें कि हस्तिनापुर में विकास दिख रहा है कि नहीं, तो मैं कहूँगा 'नहीं'.तुम क्या कहोगे?''
''मैं कहूँगा पिताजी अगर आपको दिख रहा है तो मुझे भी दिख रहा है.मैं साफ़-साफ़ देख रहा हूँ, दूर तक विकास हुआ है.पूरा हस्तिनापुर खुशहाल है.कहीं कोई समस्या नहीं है.''
''मगर क्या यह सच है?''
''ना.''
''सब समझते हो फिर भी.''
''क्या?''
''लोकतंत्र का गूढ़ रहस्य समझते हो.''
''हाँ, अब तो मैं  गुरुकुल में आगे जाऊंगा ना?''
''अब कोई नहीं रोक सकता.''

शशि कुमार सिंह

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