इस्तीफ़ा
''अध्यक्षजी इस्तीफा देना चाहता हूँ.''
''अच्छा ! दे दिए?''
''नहीं, अभी ट्विटर पर दिया है.''
''यूं अचानक कैसे ?''
''बस शास्त्रीजी की याद आ गयी.''
''तुम भी न, कांग्रेसी ढंग की बात करते हो.तुम्हें इसीलिये शिवसेना से मंगाए थे?अरे कहीं हादसों से इस्तीफ़ा दिया जाता है?''
''जी सर जानता हूँ मगर.''
''अगर ऐसा होता तो नोटबंदी में कितने लोग मरे.जेटलीजी ने इस्तीफा दिया?नहीं ना?''
''नहीं.''
''जेटलीजी को रक्षामंत्री का भी चार्ज दिया है, क्यों पता है?वे हादसों और मृत्यु से विचलित नहीं होते.''
''जी.''
''अगर हादसों पर इस्तीफ़ा होता तो शास्त्रीजी के नाती न दे दिए होते?और तो छोड़ो जरा कान इधर ले आओ.''
''जी.''
'' अरे हादसों पर इस्तीफा होता तो अपने प्रधानमंत्रीजी 2002 में ही दे दिए होते.समझे.''
''जी.''
''हादसे तो हमें मजबूत बनाते हैं.हादसे हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं.ओह !आइये आइये प्रधानमंत्रीजी ! कहिये कैसे आना हुआ?''
''और अध्यक्षजी रेल मंत्रीजी के कान में क्या फुसफुसा रहे हैं?और किस स्टेट में सरकार बनाने का इरादा है सरकार का?''
''कुछ नहीं, मैं बोल रहा था कि प्रधानमंत्रीजी का तो रेलों से पुराना रिश्ता है.चाय की दूकान रेलवे स्टेशन पर ही तो थी.हिन्दी भी उन्होंने मालगाड़ी में ही चाय बेचते हुए सीखी.''
''अच्छा अच्छा.अरे रेल मंत्रीजी आप अध्यक्षजी की उस बात पर गौर कीजिये जब इन्होंने कहा था कि.''
''क्या?''
''अरे वही कि बड़े-बड़े देशों में छोटे-छोटे हादसे होते रहते हैं.जाइए निश्चिन्त रहिये.ट्विटर पर सक्रिय रहिये.और दूध,दही, चाय, बिस्किट की सप्लाई पर ध्यान दीजिये.चाय बेचने आता है?''
''नहीं सर.वह भी तो एक ललित कला है.''
''बिलकुल.देखो ऐसे बोलते हैं-चाय ले लो,चाय, चाय, चाय, चाय, गरम चाय.''
No comments:
Post a Comment