Friday, 6 October 2017

आत्मनिर्भर शशि कुमार सिंह

आत्मनिर्भर

''रोको रोको  जल्दी रोको नहीं तो गाय-गाय चिल्लाऊंगा फिर समझ लेना.दिखाओ ट्रक में क्या है?''
''कुछ नहीं साहब कचरा है.फेंकने जा रहा हूं.''
''ठीक है दिखाओ.''
''ठीक है साहब.''
''अरे ये तो नेताजी लोग लग रहे हैं.तुम कह रहे हो कचरा है.''
''एक ही बात है सर.''
''तुम इनका महत्व नहीं समझोगे.हम 'मेक इन इंडिया' के तहत कचरे से बिजली बनायेंगे.देश को बिजली की तत्काल आवश्यकता है.''
''मगर साहब ये लोग तो भ्रष्ट और देशद्रोही पार्टी में रहे हैं.आप भ्रष्ट और देशद्रोहियों को अपनी पार्टी में लेकर अपनी पार्टी को क्यों अशुद्ध कर रहे हैं.''
''देखो मूल चीज है आत्मा.अब अगर इनकी आत्मा कह रही है कि वह पार्टी इनके लिए ठीक नहीं थी.हमारी पार्टी ठीक है तो हम इनका स्वागत करते हैं.हम इनका हल्का सा बौद्धिक करेंगे.फिर तुम भी नहीं पहचान पाओगे.ये हमसे भी बड़े देशभक्त और ईमानदार हो जायेंगे.देशभक्ति और ईमानदारी भी एक नशा है, बस लगने की देर है.इन्हें भी लग जायेगा.''
''बिलकुल साहब आप जैसा देशभक्त और ईमानदार मैंने नहीं देखा.....ठीक है साहब जल्दी ट्रक से कचरा ले जाइए और बिजली बनाइये.''
''बिलकुल हम कचरे से बिजली बनाकर समूचे देश में तेजी से आत्मनिर्भर हो रहे हैं.''

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