फेसबुक पर वही भीड़ है जो ट्रेन पर थी
हम कातिल भी हैं
हमीं शिकार भी
कोई है
जो दूर बैठा हमें चाकू थमाता है
फिर छीन लेता है
एक और है
जो अफवाह है
वह दूर बैठा यह सब देख रहा है
ये
सारे साजिशें
उसी अफवाह का नाम लेकर की जा रही हैं।
अरमान
व्याकरण भाषा का हो या समाज का व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना जिनके अधिकार क्षे...
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