कर्मठता
''भारतीय जनता से किये गए सारे वादे पूरे हो गए.पर मेरा कर्मठ मन अभी भी कुछ करने को बेताब है.क्या करूं प्रभु मेरा मार्गदर्शन करो.''
''हे भक्त तुम्हारा जन्म सिर्फ भारत भूमि का कष्ट हरने के लिए नहीं हुआ था.यहाँ तो शत-प्रतिशत तुमने अपना वादा निभा दिया.''
''फिर क्या करूं प्रभु?मैं कर्म के अभाव में मृत हो जाऊँगा.मुझे अविलम्ब कुछ करना है.मेरे हाथ पैर कर्म के अभाव में काँप रहे हैं.''
''भक्त तुम श्रीलंका जाओ और वहाँ 10 हज़ार मकान बनाओ क्योंकि अच्छे मकान के अभाव में सीताजी को अशोक वाटिका में रहना पड़ा था.यही तुम्हारी मेरे प्रति सच्ची भक्ति होगी.''
''जो आज्ञा प्रभु.''
''तथास्तु.''
No comments:
Post a Comment