अगला स्टेशन गोडसे चौक है
दृश्य एक
''सुनिए न गोबर के बाबू !मैं बुलेट ट्रेन में बैठूंगी.''
''अरे श्रीमती धनिया देवी ! पैसे कहाँ हैं, हमारे पास?क़र्ज़ चुकाने के लिए तो पैसे हैं नहीं, और ये मैडमजी बुलेट ट्रेन में बैठेंगी.''
''पैसे तो ज़हर खाने के लिए भी नहीं हैं.हे भगवान् मेरे बाप ने मुझे ये किस आदमी के साथ भाठ दिया.न कभी ढंग का खाने को मिला न पहनने को.''
''अच्छा ठीक है.तुमसे बहस कौन करे?चलो जल्दी तैयार हो जाओ.''
''तैयार होने के लिए तो ऐसे कह रहे हैं जैसे बहुत पोशाक बनवा के रख दी हो.अरे यही फटी पैबंद वाली साड़ी है.''
''ठीक है भाई इस साल बनवा देंगे.चलो, मोदीजी से कर्जमाफी के लिए बात भी कर लूँगा.एक पंथ दो काज.''
दृश्य दो
''साहब टिकट देना बुलेट ट्रेन का.''
''क्या नाम है?कहाँ से आये हो?''
''साहब होरी महतो.सरकार टिकट के लिए कहाँ जाना है, पूछा जाता है न कि आये कहाँ से?आने से क्या मतलब?''
''बहुत चालाक लग रहे हो.मूर्ख आदमी तुम्हें ट्रेन में तो बैठना आता नहीं, बुलेट ट्रेन में बैठने चले हो.बुलेट ट्रेन तुम्हारे लिए चल रही है?तुम दरिद्रों के लिए?बुलेट ट्रेन अमीरों के लिए है, अमीरों के लिए.बुलेट ट्रेन तुमसे बहुत दूर है, बहुत दूर.''
''कहाँ चल रही है?वहीं दूर का ही टिकट दे दीजिये.''
''क्यों जाना बहुत जरूरी है क्या?''
''साहब हमरी जो घरवाली है वो बहुत जिद कर रही है.अब उसको तो मना नहीं न कर सकते.इतने तो महान नहीं हैं न हम.''
''ठीक है.पैसे दो.''
''कितने सरकार?''
''कितने हैं तुम्हारे पास?''
''सरकार सवा रुपये हैं, सुतली बेचने से मिले थे.''
''इतने में टिकट मिलेगा?इतने में तो प्लेटफार्म टिकट भी न मिलेगा.बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे हैं.भाग जाओ स्टेशन से जल्दी.'न्यू इंडिया' के नाम पर कलंक.ये सब बुलेट ट्रेन की भी इन्सल्ट कर देंगे.कोई है भगाओ इनको जल्दी.कहाँ कहाँ से चले आते हैं.''
''क्या हुआ जी टिकट मिला?''
''नहीं टिकट वाले साहब ने नहीं दिया.बोले सवा रुपये में प्लेटफार्म का भी टिकट नहीं मिलता.''
''मैं कुछ नहीं जानती.मैं ऐसे घर चली गयी तो हीरा और सोभा की बीवी ताना मारेंगी.मैं बोल कर आई हूँ कि मैं बुलेट टीरेन पर बैठने जा रही हूँ.कुछ भी करो मगर मैं जाऊंगी.''
''ठीक है चलो पैदल चलते हैं.सुना है बहुत दूर है बुलेट ट्रेन.टिकट बाबू कह रहे थे.''
''ठीक है गांधी महात्मा भी तो पैदल चलते थे न.हम लोग भी चल लेंगे.''
''ठीक है, चलो.''
दृश्य तीन
''भाइयो और बहनो ! बुलेट ट्रेन बिलकुल मुफ्त है.कहीं सुना है कि कोई बैंक इतना सस्ता लोन देता है.मगर मेरे व्यवहार पर जापान ने दिया है.मेरे मित्र शिंजो आबे ने दिया है.जापान ने हमें बुलेट ट्रेन सौगात में दी है.''
''मोदीजी तो कह रहे हैं कि बुलेट ट्रेन मुफ्त है.जापान ने सौगात में दी है.''
'''ये तो उनकी शैली है.ये पैसा क़र्ज़ दिया है जापान ने.''
''वापस भी करना है?''
''और नहीं तो क्या?''
''इनके दातादीन कितने अच्छे हैं.इतना ज्यादा क़र्ज़ दे दिया.मगर हमें तो कोई एक पैसा नहीं देता.क़र्ज़ चुकाते-चुकाते जिंदगी बीत जाती है.हमारा तो क़र्ज़ भी माफ़ नहीं होता.''
''हुआ ना, दस पैसा.''
''तुम लोग कहाँ से आ गए?ये किसान, मजदूर, भिखमंगा सम्मेलन नहीं है.इसके लिए गांधी के पास जाओ.साबरमती.''
''ठीक है साहब.''
दृश्य चार
''मोदीजी गांधी महात्मा के यहाँ क्या कर रहे हैं?''
''ये यहाँ भी आ गए?''
''इतने प्रसन्न क्यों हो नरेंद्र ?''
''चरखाधारी मोहनजी बधाई हो बुलेट ट्रेन चलवाने जा रहा हूँ.''
''ये कौन है?''
''ये शिंजो आबे हैं.''
''बेटा शिंजो तुम उधर किम जोंग की चिंता करो.कहाँ इसके साथ घूम रहे हो?ठीक है तुम लोग बैठो.हमें अभी दूसरे लोगों से बात करनी है.''
''इतनी फुर्सत नहीं है हमारे पास.वो तो मैं मित्र शिंजो के कहने पर आ गया था.मित्र शिंजो आबे चलो, मैं तुमको परमपूज्य गोडसेजी के स्मारक पर ले चलता हूँ.हमारे असली महापुरुष तो वे ही हैं.ये गांधी, क्या कहूं इनके बारे में.अभिनय की भी हद होती है.चलो जल्दी चलो.थक गया हूँ, मैं ये डबल रोल करते- करते.''
''तुम लोग कौन?''
''बापू हम रोहिंग्या लोग है.हमें शरण दीजिये.''
''ठीक है नरेंद्र से बात करूंगा.''
''तुम लोग?''
''बापू हम बच्चों को ऑक्सीजन चाहिए.''
''क्यों ?''
''बापू हम जापानी बुखार से पीड़ित हैं.''
''अच्छा ठीक है, नरेंद्र से बात करूंगा.''
''तुम लोग?''
''बापू मैं होरी हूँ.और ये धनिया.हम लोग बुलेट ट्रेन देखने आये थे.हमें भगा दिया बापू , बोला ये तुम्हारे लिए नहीं है.''
''अच्छा देखता हूँ.नरेंद्र से बात करता हूँ.दातादीन और झिंगुरी सिंह का क़र्ज़ चुक्ता हुआ?''
''कहाँ हुआ बापू?इस जनम में हो भी नहीं पायेगा.हमें बचाइये नहीं तो हम आत्महत्या कर लेंगे बापू.''
''ठीक है नरेंद्र से बात करूंगा.''
''ठीक बापू.''
''देखो नरेंद्र कहाँ है.उस जापानी को लेकर घूम रहा था.''
''इधर तो नहीं हैं बापू.लगता है चले गए.''
''हाँ, वो जापानी बुखार से पीड़ित है.रुको फोन करता हूँ.हेलो ! नरेन्द्र कहाँ हो?''
''कौन मोहनजी, चरखाधारी?बुलेट ट्रेन में बैठा हूँ.बाद में बात करिए.हा हा हा बहुत मज़ा आ रहा है.अभी हम और हमारे दोस्त शिंजो, साथ में भाभीजी भी दीनदयाल चौक से गुजर रहे हैं.और ये हेडगेवार चौक पहुँच गए.और गोलवलकर नगर ...अगला स्टेशन गोडसे चौक, मगर दरवाजे सबके लिए नहीं खुलेंगे.सुना?''
होरी, धनिया पैदल गाँव के लिए निकल पड़े थे.रास्ते में बचे हुए सवा रुपयों का ज़हर खरीद लिया था.रोहिंग्या शरणार्थियों को बर्मा के शांतिप्रिय बौद्ध घसीट ले गए.बच्चे जापान और इण्डिया के झंडे लेकर सड़क किनारे खड़े हो गए.
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