Thursday, 5 October 2017

बिसनाथ गल्ली शशि कुमार सिंह

बिसनाथ गल्ली

''मैं प्रेस कांफ्रेंस करूंगी.''
''ऐसी क्या जल्दी है.विदेश मंत्री को आने तो दो.बात करेंगे.''
''कह दिया न करूंगी तो बस करूंगी.उसकी हिम्मत कैसे पड़ी बोलने की?''
''ठीक है चाम की जीभ है, फिसल जाती है.''
''मैं आपकी बात नहीं कर रही हूँ.मैं उसकी बात कर रही हूँ.उसकी जीभ को भी यहीं फिसलना था.उसका फेवर कर रहे हो.''
''मैं किसी का फेवर नहीं कर रहा हूँ.कह रहा हूँ न बात करूंगा.''
''बात तो मैं करूंगी.आने दो उसको.''
''लो आ गयीं, करो बात.''
''क्या बोल के आई हो?''
''कहाँ?''
''अरे ऊ.अन.ओ.में.''
''क्या बोली हूँ?कुछ गलत बोली हूँ?''
''देखिये आप कह रहे थे, कि बात करेंगे?सुन रहे हैं न, कह रही हैं कि क्या गलत बोली हूँ.एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी.''
''ठीक है विदेश मंत्री को थोड़ा आराम कर लेने दो.''
''ठीक है आराम नहीं करूंगी.बोलो.''
''इनकी बात काटकर आई हो?''
''किनकी?''
''किनकी तुम खुद जानती हो.मैं नाम नहीं लेती.''
''किनकी?''
''प्रधानमंत्रीजी की.''
''क्या बात काटी हूँ?''
''प्रधानमंत्रीजी बोलते हैं कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ.तो मतलब कुछ नहीं हुआ.तुमने वहाँ झूठ क्यों बोला?''
''झूठ कौन बोला?''
''मतलब प्रधानमंत्री जी को झूठा बोल रही हो?अब मैं एक्को बाकी नहीं छोडूंगी.''
''झोंटा छोडिये.''
''नहीं छोडूंगी.अडवानी की तरह मार्गदर्शक मंडल न भेजवाँ दूं तो मेरा नाम भी स्मृति नहीं.''
''स्मृति क्यूँ भड़क रही हो?पहले झोंटा छोड़ो.अरे पागल औरत मीडिया के लोग देख रहे हैं.झोंटा छोड़ो.''
''चुप रहिये कहे देती हूँ.नहीं अच्छा नहीं होगा.आपने ही सर चढ़ाकर रखा है.मैं पूछती हूँ आपने इनको अमेरिका क्यूँ भेजा?''
''कैसी औरत हो कुछ सुनती नहीं हो?ये विदेश मंत्री हैं.कभी-कभार तो जाना होगा.''
''देखिये मुझे मत सिखाइए.देस की सिच्छा मंत्री रही हूँ.सब जानती हूँ.क्या पक रहा है.''
''क्या पक रहा है?''
''ये गयीं तो शोपिंग-वोपिंग करके लौट आना चाहिए.मैं भी तो जाती हूँ.''
''अच्छा ठीक है.शांत हो जाओ.और विदेशमंत्रीजी तुम्हारा भाषण तो लिखा था न, फिर ऐसी गलती कैसे हो गयी?''
''सर भाषण तो लिखा हुआ था.सब तो मैं वही पढ़ी थी.....मगर पाकिस्तान पर जब मैं बोल रही थी.वहीं गलती हो गयी.अचानक मेरे मुंह से निकल गया.आपकी गरिमा को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था.''
''हाँ, मगर अब तो पहुँच गयी है.थोड़ा पार्टी लाइन का ख्याल रखना चाहिए.''
''हाँ सर इसीलिये मैं नहीं जा रही थी.मैं जानती हूँ सारा दोष मेरा होगा.आप तो जबरदस्ती भेजे.''
''क्या कहा, क्या कहा फिर से कहो?जबरदस्ती भेजे?''
''आप जबरदस्ती भेजे और मुझसे खेलवाड़ कर रहे थे.''
''अरे मेरी बात तो सुनो.''
''इनको पद से हटाइये.मैं कुछ नहीं जानती.मुझे चार्ज चाहिए बस.''
''हटायेंगे मगर इधर चुनाव है मध्य प्रदेश वगैरह में, तो हटाना ठीक नहीं रहेगा.''
''मैं इसकी सकल नहीं देखना चाहती.''
''देखिये मोदीजी इनको समझा दीजिये.बहुत बढ़-बढ़कर बोल रही हैं.नहीं तो एक्को बाकी नहीं छोडूंगी.''
''क्या कर लोगी?मैं डरती नहीं हूँ तुमसे.''
''डरोगी क्यों?सैयां भये कोतवाल तो फिर डर काहे का.''
''तुम लोग बंद नहीं करोगी?''
''इनकी कमाई थोड़ी खा रही हूँ.''
''तो मैं भी तुम्हारी नहीं खा रही हूँ.''
''तुम लोग नहीं मानोगी?''
''नैहर तक मत जाओ.देखो कहे देती हूँ.''
''धमकी मत दो.मोदीजी आप ही बताइये कि क्या सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ?आई.आई.टी.,आई.आई.एम.,एम्स......''
''ये भी तो तीन साल में बने हैं, ये तो बोल सकती थी.''
''हाँ, तो मैंने सन थोड़ी बताया.''
''अच्छा सन नहीं बताया?तब तो ठीक है.''
''स्मृति सुन रही हो, बेवज़ह नाराज़ हो रही थी.अब एक प्रेस कांफ्रेंस कर लो और कहो कि सारे आई.आई.टी.,आई.आई.एम.,एम्स इन्हीं तीन सालों में बने हैं.''
''ठीक है.....दीदी मुझे माफ़ कर देना.''
''ठीक है, ठीक है कोई बात नहीं.चलो चांदनी चौक घूमने चलेंगे.''
''ना, मैं तो बनारस घूम के आयी हूँ....बिसनाथ गल्ली गयी थी.''
''वो गल्ली कौन सी थी जी, जिससे होकर हम दुर्गाजी के दरसन करने गए थे?''
''पता नहीं, मगर खूब कूंची है पुलिस उन चुड़ैलों को.''
''अच्छा.....मैं भी न्यूज़ में देखी.मगर वो तो मेरे विभाग का मामला ही नहीं है.''
''ठीक है तुम लोग जाओ नहीं तो वो देखो उमा भारती हरहराती हुई आ रही हैं.''

शशि कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...