Thursday, 5 October 2017

ताजमहल के बहाने ( व्यंग्य) शशि कुमार सिंह

ताजमहल के बहाने

एक दिन वे सनके और ताजमहल को पर्यटन सूची से निकाल बाहर किया.बेचारे ताजमहल की किस्मत में बस रोना ही लिखा है.एक तो शाहज़हां के आंसुओं के दाग अभी छूटे भी न थे कि  यू.पी.के पर्यटन विभाग ने उसे खून के आंसू रुला दिए.जब से 'एंटी रोमियो स्क्वायड' गठित हुआ है तब से ताजमहल का धंधा वैसे भी मंदा चल रहा था.छुप-छुपाकर प्रेमी युगल किसी तरह यहाँ पहुँचते तो रही-सही कसर नोटबंदी और जी.एस.टी.ने पूरी कर दी.प्रेमिकाएं खुद प्रेमियों को डांट देतीं.इससे कम खर्च में तो हम रामरहीम के डेरे हो आते.रामरहीम के पास भी तो अपना ताजमहल है.
कई कहावतों का रिश्ता ताजमहल से है.ताजमहल की हालत देखकर ही किसी ने यह कहावत कही थी कि 'घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध'.होगा ताजमहल आन गाँव का सिद्ध.मगर यू.पी.का तो वह जोगी नहीं बल्कि जोगड़ा है.यू.पी.में सिर्फ एक जोगी है.गलती सरासर ताजमहल की है.ताजमहल प्रेमियों के दिल की बात भले समझ जाता है मगर इत्ती सी बात उसके भेजे में न आई कि अगर यू.पी.में रहना है तो योगी योगी कहना है.नहीं कहोगे तो निकालकर फेंक दिया न.आखिर क्या हासिल हो गया ताजमहल को?ताजमहल ने कितनों के मन में प्रेम पैदा किये होंगे.उनका पालन-पोषण किया होगा.मगर संहार पर तो उसका कोई वश नहीं.सो संहार हो गया.ताजमहल के प्रति हो रहे इस व्यवहार को देखकर तमाम प्रेमी खुश भी हैं.उनका पैसा बच रहा है.भुक्खड़ प्रेमिकाएं कुछ ही घंटों में हज़ारों का वारा-न्यारा कर देतीं.करोड़ों के पेठे इन निर्मम प्रेमिकाओं ने ताजमहल के इसी परिसर में चट कर दिए होंगे.मगर ताजमहल को क्या पता था कि कभी ऐसे भी कठोर ह्रदय के लोग उसकी किस्मत का फैसला करेंगे, जिनके पास अपनी पत्नी तक नहीं होगी, प्रेमिका तो दूर की बात.

'प्यार हमारा अमर रहेगा याद करेगा जहां, तू मुमताज़ है मेरे ख़्वाबों की मैं तेरा शाहज़हां'.प्रेमिका ने प्रेमी को जोर की डांट लगाई.कोई भारतीय संस्कृति का गीत सुनाओ.प्रेमी अभी अपने दिमाग पर जोर डाल ही रहा था कि प्रेमिका ने आव देखा न ताव आनन फानन में ब्रेक-अप कर लिया.प्रेमी पूछता ही रहा कि मुझे बिन बताये तूने ये कब कर लिया?मगर देशभक्तिन प्रेमिका ने दो टूक शब्दों में कह दिया, 'अगर तुम अपनी  संस्कृति के नहीं हुए तो मेरे क्या होगे.'

ताजमहल और अनेक ऐतिहासिक महत्व के पर्यटक स्थलों के पर्यटक सूची से हट जाने से विद्यार्थियों के बस्ते का वज़न भी कम होगा.बेचारे किसी तरह ऑक्सीजन से संघर्ष करके बड़े होते हैं तो उन्हें वजनी बस्ता मार डालता है.वह भी बाबर के परिवार का इतिहास ही इतना वजनी है कि उनके नाज़ुक कंधे छिल जाते हैं.इतिहास बदल जाएगा, तो पाठ्यक्रम छोटा हो जाएगा.पूरा मुग़ल पीरियड सिलेबस से बाहर हो जाए, गुरु गोलवलकर, गुरु हेडगेवार पाठ्यक्रम में आ जाएँ तो पाठ्यक्रम भी कितना सुसंस्कृत हो जाएगा.

लाल किले से पिछले सत्तर सालों से झंडा फहर रहा है और देश जहां का तहां खड़ा है.विकास हिल-डुल नहीं पा रहा.बाधित है.संभव है इस बहिष्कार में कोई अदृश्य दैवीय संकेत छिपा हो.हो सकता है भारत का विकास बुलेट ट्रेन पर चढ़कर आये.उसके शिलान्यास का चमत्कारी दैवीय प्रभाव पड़ा हो और ताजमहल अपने आप ही पर्यटक सूची से बाहर हो गया हो.ताजमहल का नाम टाइप न होना भी माँ सरस्वती की गुप्त कृपा हो सकती है.हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि बुलेट ट्रेन देश के लिए शुभ होगा.संभव है जब विकास बुलेट ट्रेन पर सवार होकर आये तो नागपुर नए पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो और इस विकास की वज़ह से देश की राजधानी भी परिवर्तित हो.परिवर्तन का हमें स्वागत करना चाहिए क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का नियम है.विकसित देश की अतिविकसित राजधानी में प्रधानमंत्रीजी झंडा फहराएं(तिरंगा ही, भगवा नहीं)और देशवासियों के रुके हुए 'अच्छे दिन' आ जाएँ.जी.डी.पी.तीन अंकों में पहुँच जाए.इसलिए देशवासियों का यह कर्तव्य है कि वे सरकार का साथ दें और देश के विकास में साझीदार बनें.इसके सांस्कृतिक पुनरुत्थान में सहायक बनें.ताजमहल का क्या है, बनेगा, बिगड़ेगा.मगर देश तो सुविकसित और सुसंस्कृत हो जाएगा.एक सच्चे देशभक्त की प्राथमिकता देश का कल्याण होना चाहिए न कि गैर सांस्कृतिक पर्यटन स्थल के लिए क्षोभ प्रकट करना.अगर क्षोभ प्रकट करना ही है तो 'समझौता एक्सप्रेस' पकड़िये और चुपचाप नापाकिस्तान निकल लीजिये.हां, इस बार 'समझौता एक्सप्रेस' में कोई बम विस्फोट नहीं होगा.इसकी हम जिम्मेदारी लेते हैं.

शशि कुमार सिंह

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