गिफ्ट
''मैडम आन सान सू की ! आपका नाम गुजराती में है क्या?''
''नहीं तो !''
''नहीं सूं आया तो मुझे लगा कि ''
''नहीं नहीं.हमारा गुजरात से कोई रिश्ता नहीं.''
''मगर मेरा तो म्यांमार से है.पुराने ज़माने में यहाँ से चाय के व्यापारी जाते थे.मैं स्टेशन पर उनसे बर्मा की कहानियां सुना करता था.आप समझ गयीं? बर्मा से हमारा बड़ा पुराना रिश्ता है.''
''ये तो आपका बड़प्पन है.''
''मैडम सू की मैं ये कह रहा था कि हम अपने यहाँ मुगलों के नाम पर जो स्थान हैं ना..''
''हाँ हाँ.''
''उनका नाम बदलकर शुद्धीकरण कर रहे हैं.''
''जी सुना, मगर ये तो गलत है.''
''सही गलत छोड़िये.वो पहले की सरकार थी बुजदिल.28 इंच सीने वाली.ये......''
''हाँ तो आप कुछ कह रहे थे?''
'' मैडम सू की, मैं ये कह रहा था कि बहादुर शाह ज़फर की मज़ार का नाम अगर हम बदल दें तो..''
''क्या ! ''
''कुछ नहीं ऐसे ही.''
''ठीक है मगर रक्खें क्या?''
''है ना.एक से बढ़कर एक स्वतंत्रता सेनानी हैं हमारे पास.नाम की कोई कमी थोड़ी है.''
''ठीक है जैसा आप कहें.वैसे तो हमारा देश भी मुसलमानों से उतनी ही नफरत करता है.आप हमारे मेहमान हैं.हम आपकी बात टाल ही नहीं सकते.बोलिए क्या रक्खा जाय?''
''मैडम सू की ! गुरु गोलवलकर बहादुर शाह ज़फर से मिलता हुआ नाम है.''
''ये कौन हैं?नाम नहीं सुना इनका कभी.''
''ये हमारे महान स्वतत्रता संग्राम सेनानी हैं.''
''ठीक है.मगर मज़ार का मज़ार ही रहेगा या ?''
''नहीं नहीं, बलिदान स्थल होगा.''
''मगर लोग पूछेंगे नहीं ? बहादुर शाह ज़फर का समय तो सभी जानते हैं.और ये जो गुरूजी का नाम आप ले रहे हैं, वे भी क्या उसी समय के थे?अब आप ही जानिये.मैं तो उनके बारे में कुछ नहीं जानती.नाम ही पहली बार सुन रही हूँ.''
''धन्यवाद मैडम ये आप हमारे ऊपर छोड़ दीजिये.सब मैनेज हो जाएगा.अब हमारे गुरूजी बहुत प्रसन्न होंगे.नहीं तो एक बार आडवाणीजी जिन्ना की मज़ार पर गए थे.लौटने पर मत पूछिए क्या हुआ.''
''ठीक है नहीं पूछूंगी.''
''आप नहीं समझ सकती मैडम सू की, आपने हमें कितना कीमती गिफ्ट दिया है.''
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