Friday, 6 October 2017

पैंतरा - शशि कुमार सिंह

पैंतरा

''गोली मार भेजे में ये तो शोर करता है.''
''मगर गोली तो मिसफायर हो जा रही है.
''दूसरा पैंतरा आजमाता हूँ.आ गले लग जा.''
''ना ना कोई दूसरा गाइए ना.''
''ठीक है फ़िल्मी दुनिया से बुलाते हैं.''
''फिल्मी कि टेलीविजन?''
''आप भी न अध्यक्ष जी !''
''आइये आइये सांसद महोदया.जी आप तो शिक्षामंत्री रही हैं.आपको पता है किस गीत का असर इन कश्मीरियों पर होगा.''
''क्यों गोली नहीं चलाएंगे?''
''नहीं दो साल गले लगाने का पैंतरा आजमाते हैं.''
''आप लोगों से गोली चलेगी भी नहीं.''
''क्या कहा? क्या कहा? फिर से कहो.''
''कुछ नहीं बाद में बताऊँगी.अभी क्या करना है?बोलिए.''
''कोई बढ़िया गाना..''
''अच्छा अच्छा सुनाती हूँ.'लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो.शायद  फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो.''
''एकदम चौपट हो.ये क्या मनहूस गाना गा रही हो.अरे मुलाकात २०१९ में भी होगी.२०२४ में भी होगी.२०२९ में भी होगी और २०३४ में भी होगी.जाओ घर जाओ 'ऐट होम' की तैयारी करो.''
''ठीक है.''

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...