Thursday 26 April 2018

शैलजा पाठक की भोजपुरी में अनुदित कविताएं

1
" मेहरारु "
मेहरारुन के बुझे खाति शायद जरुरी बा ओह लो के मेहरारुन के ही आंखि से देखल । शैलजा पाठक जी के कविता मे खास बात ई होला कि हिन्दी शब्द ओतना कडेर ना होला जवना के मांग एह घरी हिन्दी साहित्य मे लोग करता भा जोहता , एहि से हमरा खाति कविता के मरम के बुझल तनी आसान हो जाला । एह कविता के भी हम शैलजा जी भा अपना माई बहिन या मेहरारु के आंखि से देखे के कोशिश कईले बानी अनुवाद करत घरी .. पता ना कतना सफल बानी बाकि कोशिश ईमानदार बडुवे ।
घाव प शीत लगावत
जरल बा, फुंकत , फुंकि के उडावत
खउलत फफात के चिटुकी मे धरत
भींजल हाँथ से सुख के चार गो कवर खियावत
कईसे एह लो के धान आ खोइया लेखा फटक दिहल जाला
अलगा दिहल जाला
दु गो हिस्सा मे मेहरारुन के बांट दिहल जाला
पनपे ली लो
बंजर माटी मे नेह छोह के रोपत बढावे ली लो घर परिवार
नून के सही अनुपात ना मिलला प लानत मलानत
सीखत बाडी सीखि जईहे , रोवत बाकि मुस्कियात
मेहरारु ।
तनकी सा गलती प
संवसे नईहर मुडि नवा के खडा हो जाला
ससुराल के आंगन मे
कांच आम लेखा भींजा दिहल जाला एह लो के तेल मे
बरिसन तक चटक स्वाद छोडि देला लो जुबान प
पहिला बेरि सरौता पंहसुल प आपने हाँथ आजमावे ला लो
माई के सिखावल गीत बुद-बुदाला लो
तहरा उजर कालर प बुरुस रगरत , कालर के के उजर
अपना हाँथ के लाल कई ले लो
मेहरारु
गिल बार भींजल माथ प झट से लगा लेली चिपका ले ली
तहरा नाव के सेनुर आ टिकुली
अन्नपुर्ना बनि के चुहानी गमका देली
मेहरारु
टुटल चपल के सेप्टीपिन
फटला मे कढाई रफू के , पेवन लेखा नजर आवेली
बीमार , टुटल ओरचन वाली खटिया प खतम हो चुकल अपना उर्जा के
बिटामिन के गोली घोंटत
हठुआर बनि के लाल पिअर उजर टिकिया गोली से अपना संतुलित करत
बढल खुन के तेजी अबर दुबर चक्कर आ
मेहरारु
आ तू कहत रहेलs कि
कमाल के होली स ,
दवाई , इलाज प का जाने कतना लुटा देली स
मेहरारु !
2
" बेटी , माई लेखा "
हाँथ जरे से पहिले , माई
सम्हार ले ले
आंच आ सिँउँठा के सही पकड
अउरी आग से सही दुरी
आ दे देले हडबडा गईला से जरि जाये सीख
फुलत रोटी महीन पातर आटा से बनावत बेटी
सीख गईल,
आग , दुरी , पकड आ रोटी के सही ब्याकरण
स्कूल से भाग के आवत एह बेटी के
बडहन बैग के माई उठा ले ओकरा पीठ से
बेटी तितली लेखा उडल रहे
माई तनि रिसियाईले बोललस ,
निरमोहिया ,  कतना भारी बा बैग
मय बिसय सम्हार के राखे ली स लइकी
ओकनी के पातर अंगुरी मे पकडा के सुई
माई सीखावत रहली तुडपे मसके रफू करे के
उजर कपडा प लाल फूल
बाद कसि के लगावे के , कंहि खुल ना जाये सियाई
अपना अंगुरी दांत आंखि सुई के ताम मेल से लइकी
सिअतिया अपना जिनगी के फाटल उघरल मय रंग.
ये जादूगरनी सी लड़कियां
जिंदगी सीखती सिखाती सी
ना जाने कौन से देश उड़ जाती हैं.
ई कवन जादू ह लईकिनियन के
जिनगी से सीखत सीखावत
का जाने कवना देस मे उड जाली सs, 
आगि के सओझा बईठ लाल टिकुली लगा के
एक दम से एकनी के माई लेखा बन जाली सs ...
- शैलजा पाठक
अनुवाद - नबीन चंद्रकला कुमार
शैलजा पाठक जी के एह कविता के पढत आ अनुवाद करत , शायद हमरा पहिला हाली एहसास भईल ह बेटिन के लईकिनियन के सोच आ एहसास के । शैलजा जी खुद लईकी आ बेटी हई एह से हो सकेला उँहा खाति एह भाव के राखत शब्दन के जगहि देत आ शब्दन के परतोख के रुप मे राखल , चाहे ऊ सिउंठा आंच रोटी फुलल महीन पातर के ब्याकरण होखे भा आग के सोझा लाल टिकुली आ फेरु ओकर माई बनल ... एह अनुवादित कविता के शीर्षक हम देले बानी , हो सकेला सटीक ना होखे ...
- नबीन चंद्रकला कुमार
शैलजा पाठक

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