एक गुलाब था खिला खिला ,
पंखुरियों में जिस की ,कुछ ख्वाब थे ,
कुछ नज़ाकत, कुछ शरारत थी,
कुछ मुस्कान भी
कभी कभी खिल उठती थी |
वो ज़रा नाज़ुक सा,लेहराता था
हवाओं के झोंकों के साथ,
खिलखिलाता था
जब आंगन में धूप की एक किरन
उसे गुदगुदाती, उसे बेहलाती ,
उस के किनारों पे मचलती ओस को
बाहों में उठाती|
आज वो गुलाब कहाँ है?
मैं जो धूप से सवाल करूँ ,
तो वो बादल के पीछे छुप जाती है |
मैं जो पूछती हूँ शबनाम से
तो वो चुपके से बेह जाती है ,
आसुओं की तरह, कुछ दर्द समेटे |
तभी उस बूढ़े पेड़ से एक ध्वनि आती ,
“जिसे ढूँढती हो तुम ,कल रात उसे
एक जानवर ने नोचा , खाया ,
उसकी नाज़ुक पंखुरियां अब भी
वहां कुचली पड़ी हैं, पड़ी हैं
हमें एहसास दिलाने को
हमारे सर को झुकाने को
हमारे ज़मीर को जगाने को ,
देखो , वो गुलाब , नाज़ुक सा ,
आज कुचला पड़ा है
हमारी आँखों के सामने ”
वो शबनाम जो छूपी थी
अब मेरी आँखों से बेह पड़ी ,
काश ऐसा ना हुआ होता ,
काश मेरा आँगन सूना ना हुआ होता,
काश यह सिसकी तुम तक पहूँचे ,
काश तुमसे फिर मुलाकात हो ,
एक बेहतर जगह , जहां धूप भी हो ,
ओस भी , तुम भी , और मैं भी !
ज़रिश नज़ीर
ज़रिश नज़ीर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से रसायन विज्ञान में स्नातक अंतिम वर्ष की छात्रा है।
*पाकिस्तान में 8 साल की बच्ची जैनब को किडनेप किया गया और फिर उसका रेप किया गया। जैनब को इंसाफ दिलाये जाने की मांग करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छात्रा ने यह कविता जैनब को समर्पित करते हुए लिखी है।
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