Friday, 20 April 2018

बलात्कार के विरुद्ध शिवांगी चौबे की कविताएं

1

सुना है तुम्हारे घर के भीतर,
तुम्हारे ही भक्त,
तुम्हारी ही बेटी को
तुम्हारे ही सामने,
खा गए!
सुना है तुमने आँखें बंद कर ली थीं,
मुँह छुपा लिया था,
हथियार डाल दिये थे,
शेर पर बैठी रही थी,
बिलखती रही थी!
सुना है तुम भी औरत हो,
अबला, कमज़ोर, मुँहचोर!
सुना है तुम्हें देवी कहते हैं,
तुम भी जानती हो,
तुम देवताओं का बनाया हुआ सामान भर हो!
तुम एक योनि से बढ़ कर कुछ भी नहीं,
हम सब माँस के लोथड़े हैं,
कल हम न होंगे तो ये खाने वाले तुम्हें भी खा जाएंगे,
भाग जाओ मंदिरों से,
कल ये तुम्हारा बलात्कार करने आएंगे।

2

गर कल मैं ना रही,
तो उसे कहना कि मैं हूँ,
कि मैं हूँ हर बुलंद आवाज़ में,
मैं साड़ियों के तार में हूँ,
मैं अदालत की पेशी में हूँ,
मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हूँ,
मैं न्यूज़ चैनल के थ्रेड में हूँ,
मैं बॉर्डर पार उस देश में हूँ,
मैं मोमबत्तियों की लौ में हूँ,
मैं तिरंगे के रंग में हूँ,
मैं अपनी माँ के गर्भ में हूँ,
मैं फेसबुक के कमैंट्स में हूँ,
मैं रातों की नींद में हूँ,
मैं नुक्कड़ों के कोरस में हूँ,
मैं जंतर मंतर मार्च में हूँ,
मैं संघियों के कटाक्ष में हूँ,
मैं कपड़ों की लंबाई में हूँ,
मैं लड़कों की पढ़ाई में हूँ,
मैं पिताजी की मौत में हूँ,
मैं गीता और क़ुरान में हूँ,
मैं क्या कहूँ मैं कहाँ नहीं हूँ,
उसे कहना कि मैं गयी नहीं हूँ,
उसे कहना कि मैं यहीं कहीं हूँ।

3

बुरा हुआ!
बुरा हुआ जो आसिफ़ा मर गई,
इसलिए नहीं क्योंकि वो आठ साल की थी,
इसलिए भी नहीं क्योंकि वो मुसलमान थी,
पर इसलिए कि अब जब भी
हम 'जय श्री राम' का नारा सुनेंगे,
दुपट्टा और भींच के समेटेंगे,
दरवाज़े में दो सिटकनियाँ लगाएंगे,
खिड़कियों में छेद कर के झाँकेंगे,
और देखेंगे अपनी मौत का तमाशा।
देखेंगे अपने भाई और बाप को,
जो अब हमें नहीं पहचानते,
वो अब सिर्फ़ 'मर्द' होंगे,
देह में आग लिए, ख़ून के प्यासे कुछ 'मर्द',
अब मंदिरों की घंटियों में चीख सुनाई देगी,
हम जैसों की बेबसी की कराहें गूँजेंगी,
अब देवस्थान में भी पाबंदी होगी,
हम अपनी बेटियों को फिर से कोख में मार देंगे,
अब हम में प्रेम न उमड़ेगा,
न धर्म के प्रति, न देश के प्रति,
हम लाशें हैं, जला दो हमें,
भारत के सपूतों, जला दो हमें।

4

"आप पांडेय जी की बीवी हैं न?"
"अरे ये तो किशोर की माँ है!"
"नारी तो साक्षात देवी का रूप है।"
मुझे देवी कह कर जंगल में छोड़ने वालों,
आज मैं अपना हिस्सा माँगने आयी हूँ।
मुझे मेरी बारिश, मेरी रातें, मेरा चाँद वापस करो।
मुझे मेरे संदूक की चाभियाँ लौटाओ,
जिसमें रखे हैं मैंने अपने ख़्वाब, अपने सपने।
आज मैं तुम्हारे कागज़ी फ़रमान के टुकड़े उड़ाना चाहती हूँ।
चले जाओ, कि तमाशा नहीं हैं मेरी टाँगें अब,
हाथों में हथौड़ा लिए ज़ंजीर से मिल कर आई हूँ।
किवाड़ खटखटाया मैंने, तुमने सुना नहीं,
आग लगा दी, लकड़ी राख हो गयी है।
अब भी थोड़ी आग मैंने बचा कर रखी है।
वो सारी सड़कें जो मेरे पाँव तले पड़ी नहीं,
वो सारे तारे जो मेरी खिड़कियों तक पहुँचने न पाए,
वो टेढ़ी रोटियाँ जो पकती गयीं गोल होने तक,
उन सब के ज़िम्मेदार तुम हो।
आज हम सब हिसाब माँगते हैं, जवाब दो।
जवाब में चूड़ी, पायल, कँगन हो तो खुद पहन लेना,
मैं मेरा जवाब मेरे साथ ले कर आई हूँ।
और सुनो,
मैं तुम्हारी गालियों में प्रयोग की हुई माँ नहीं हूँ।
ना ही मैं तुम्हारे बाद खाना खाने वाली बहन हूँ।
नहीं हूँ बेटी, नहीं हूँ बीवी।
मैं इंसान हूँ,
मुझसे इंसानियत का रिश्ता रखो।

5

क्या मुझे मौसम की आज़ादी भी नहीं?
रात के शायद तीन बजे हैं,
बाहर झमाझम बारिश हो रही है,
मैं बूंदों के गिरने की खनक सुन पा रही हूँ,
मिट्टी की सोंधी खुशबू बेचैन कर रही है,
चलो सूँघने की आज़ादी अब तक न छिनी।
लंका पे चाय मिलती होगी क्या अभी?
लोग ठंडे पानी और गरम चाय में डूब रहे होंगे क्या?
मेरे कमरे का दरवाजा छोड़, मेरे लिए कोई और द्वार नहीं खुला,
कितने खोलूँ? सब बन्द हैं।
पँखे की आवाज़ के साथ झिमझिम कि आवाज़ मिल गयी है,
आज नींद कैसे आएगी?
उसने कहा वो दोस्तों के साथ बाहर जा रहा है।
मैं क्या कहूँ मेरे दोस्तों को?
हम सब मौसमहीन एक ही कमरे में बैठे हैं,
चाय पीने की इच्छा जताने पर हँस रहे हैं,
जैसे चाँद उतार लाने को कह दिया हो।
पर कोई बात नहीं,
हम सो जाएंगे,
इस आवाज़, इस खुशबू को लिए,
हम सो जाएंगे।


शिवांगी चौबे की यह तस्वीर
स्त्रियों पर हो रहे पुरुषों के अत्याचारों के विरुद्ध एक प्रतीक के रूप में है

*शिवांगी चौबे बीएचयू में स्नातक की छात्रा हैं । छात्र आंदोलनों और नुक्कड़ नाटकों का अहम हिस्सा रही हैं। शिवंगी एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं।




2 comments:

  1. दर्द है तुम्हारी कविता में शिवांगी

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  2. कविताओं के बारे कहूं तो वाह।
    पहली कविता बेबाक।- कल ये तुम्हारा बलात्कार करने आयेंगे
    शिवांगी जवाब नहीं आपका!!

    ReplyDelete

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